Raksha Bandhan 2021: कच्चे धागों का पक्का बंधन, जानें विभिन्न स्वरूप

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Aug, 2021 09:22 AM

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प्राचीन काल में यज्ञ के आयोजन के समय उपस्थित रहने वाले सभी व्यक्तियों की कलाइयों में मंत्रों से पवित्र किया हुआ एक सूत्र (धागा) बांधा जाता था। यह सूत्र एक ओर तो उस व्यक्ति की यज्ञ में

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Raksha Bandhan 2021: प्राचीन काल में यज्ञ के आयोजन के समय उपस्थित रहने वाले सभी व्यक्तियों की कलाइयों में मंत्रों से पवित्र किया हुआ एक सूत्र (धागा) बांधा जाता था। यह सूत्र एक ओर तो उस व्यक्ति की यज्ञ में उपस्थिति का प्रतीक होता, दूसरी ओर यज्ञ में प्राप्त शक्ति के आधार पर सूत्र के माध्यम से उस व्यक्ति की रक्षा की कामना की जाती। इसीलिए इस सूत्र को पहले यज्ञ-सूत्र और बाद में रक्षा सूत्र कहा जाने लगा। समय के साथ यही सूत्र रक्षाबंधन के रूप में परिवर्तित हो गया और एक निश्चित दिन श्रावण की पूर्णिमा को त्यौहार के रूप में इसका आयोजन किया जाने लगा। श्रावण माह में आयोजित होने के कारण इसे कहीं-कहीं श्रावणी भी कहते हैं। दक्षिण भारत में नारली पूर्णिमा, महाराष्ट्र में श्रावणी पूर्णिमा, बंगाल और बिहार में गुरु पूर्णिमा तथा पड़ोसी देश नेपाल में जनै पुणे या जनेऊ पूर्णिमा कहा जाता है।

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लगभग पूरे उत्तर भारत में रक्षाबंधन के नाम से ही इस त्यौहार को पुकारा और मनाया जाता है। नाम की भिन्नता के साथ ही इस त्यौहार को मनाने के तरीकों में भी कुछ भिन्नताएं हैं। उत्तर भारत में रक्षाबंधन भाई और बहन के स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसे मिष्ठान्न खिलाती है। इसके बदले भाई परम्परानुसार बहन की रक्षा का आश्वासन देता है। 

नारली पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारत में व्यक्ति निराहार रहकर सवा लाख गायत्री मंत्र का जाप करते हैं, उसके बाद ब्राह्मणों के हाथों सेे नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। संध्या को ये लोग तरह-तरह के मिष्ठान्न और पकवानों से युक्त स्वादिष्ट भोजन करके अपना उपवास समाप्त करते हैं। रात्रि को संगीत, नृत्य और नाटक आदि के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस पर्व के साथ प्राचीनकाल से अनेकों मान्यताएं और घटनाएं जुड़ी हैं। 

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रक्षाबंधन के विभिन्न स्वरूप

कुछ भारतीय समुद्री इलाकों में इस दिन को ‘नारियल पूर्णिमा’ या ‘कोकोनट फुलमून’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन समुद्र देव को नारियल चढ़ा कर पूजा की जाती है। नारियल की तीन आंखों को भगवान शिव के तीन नेत्रों की उपमा दी जाती है।उत्तरांचल के चम्पावत जिले के ‘देवीधूरठ’ मेले में ‘बाराही देवी’ को प्रसन्न करने के लिए बग्वाल परम्परा का विधान है।

दक्षिण भारत में ‘अवनि अवित्तम’ के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व पर ब्राह्मण नया पवित्र यज्ञोपवीत धारण करते हैं व प्राचीन ऋषि-मुनियों को फल अर्पित करते हैं। इस प्रकार अनेक मान्यताओं के साथ रक्षाबंधन की शुरूआत हुई। तब से आज तक हर बहन अपने भाई को राखी बांध कर हर परेशानी और मुश्किल में साथ देने का वचन लेती है। यदि भाई या बहन दूर-दूर रहते हैं तो इसके लिए डाक विभाग अपनी अलग भूमिका निभाता है। डाक विभाग इस पर्व के उपलक्ष्य में आकर्षक कलरफुल लिफाफे उपलब्ध कराता है, जिसमें तीन-चार राखियां भेजी जा सकती हैं। यह लिफाफा वाटरप्रूफ होता है ताकि बरसात के मौसम में इसे सुरक्षित व तेजी से नियत स्थान पर पहुंचाया जा सके। यह सुविधा केवल रक्षाबंधन तक ही सीमित रहती है।   

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