विधानसभा हलका संगरूर: सड़कों की हालत दयनीय

Edited By ,Updated: 15 Dec, 2016 04:09 PM

sangrur assembly area

संगरूर सीट देश की आजादी से लेकर अब तक किसी भी सियासी पार्टी की पैतृक सीट नही बन सकी व न ही किसी पार्टी के उम्मीदवारों को लगातार संगरूर हलके के लोगों ने जिताकर विधानसभा में पहुंचाया है।

संगरूर: संगरूर सीट देश की आजादी से लेकर अब तक किसी भी सियासी पार्टी की पैतृक सीट नही बन सकी व न ही किसी पार्टी के उम्मीदवारों को लगातार संगरूर हलके के लोगों ने जिताकर विधानसभा में पहुंचाया है। इन रियासती शहरियों ने हलका संगरूर से 1957 से अब तक संगरूर सीट पर 4 बार अकाली, 5 बार कांग्रेसी, कामरेड व अन्य सियासी पार्टियों के नेताओं को विधानसभा में भेजा है।

मुख्य मुद्दा
-बरसाती पानी व सीवरेज की समस्या का नहीं हुआ हल
-शहर में गंदे नाले की समस्या वहीं
-शहर में फिरते आवारा पशुओं की समस्या जस की तस
वायदे जो निभाए
-नए बस स्टैंड का नवीनीकरण
-गंदे नाले की समस्या का पक्का हल
वायदे जो किए
-नए बस स्टैंड का निर्माण
-गंदे नाले की समस्या का स्थाई हल
-सीवरेज सिस्टम में सुधार व नवीनीकरण

लोगों ने ऐसे जताई प्रतिक्रिया
जिस विधायक से उनकी गठबंधन वाली पार्टी के नेता संतुष्ट नहीं फिर  कैसे उससे आम जनता संतुष्ट होगी। पंजाब में नशा तस्करी ज्यादा होने के कारण नौजवान पीढ़ी नशों की दलदल में धंस चुकी है। ’’ -हरविंद्र सिंह सेखों, प्रधान भट्ठ एसोसिएशन पंजाब

 

रियासती शहर होने के बावजूद संगरूर शहर की सड़कों की हालत दयनीय है। चाहे अब विधानसभा चुनाव नजदीक आते देख कुछ सड़कें बनीं हैं परन्तु बहुत सी सड़कों का पैचवर्ककरके ही काम चलाया जा रहा है। राजनीतिक पाॢटयों ने लोगों से जितनी वोटें विकास कार्यों के नाम पर बटोरीं, उतने विकास कार्य दिखाई नहीं दे रहे। -हरिन्द्रपाल सिंह खालसा, सूबा प्रधान फ्रीडम फाइटर उत्तराधिकारी संगठन, पंजाब।


चुनावों के समय हर पार्टी वायदों के लॉलीपोप देकर वोटरों को भ्रमित करती  है परन्तु बाद में वायदे पूरे न होने पर वोटर अपने आप को ठगा सा महसूस करता है।
सत्तासीन पार्टी की तरफ  से बेरोजगारी की समस्या का हल करने का भरोसा दिया गया था परन्तु बेरोजगारी का संताप भोग रहे नौजवान रोजगार प्राप्ति के लिए परेशान हैं।  
-मोहन शर्मा, डायरैक्टर नशा छुड़ाओ केंद्र संगरूर।


अकाली सरकार की तरफ  से शहर में आधुनिक बस स्टैंड बनाना सराहनीय है।  यह बहुत सुंदर लगता है परन्तु इसके अलावा कुछ भी नहीं हुआ। सरकारी अस्पताल में एमरजैंसी के लिए सुविधा नहीं, वहीं  बेरोजगारी की समस्या का सरकार ने कोई हल नहीं किया।’’ -बलदेव सिंह गोसल, वृद्धाश्रम बड़रूखां

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