Edited By ,Updated: 17 Sep, 2015 11:18 AM
भगवान श्रीकृष्ण कलियुग में आए श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के रूप में। जब भगवान आते हैं तो अपने साथ अपने धाम, पार्षद, साथी, सभी को लेकर आते हैं। जब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी आए, तो उनके साथ उनके प्रिय श्रीअद्वैताचार्य भी आए।
भगवान श्रीकृष्ण कलियुग में आए श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के रूप में। जब भगवान आते हैं तो अपने साथ अपने धाम, पार्षद, साथी, सभी को लेकर आते हैं। जब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी आए, तो उनके साथ उनके प्रिय श्रीअद्वैताचार्य भी आए। उनके साथ उनकी शक्ति श्रीमती सीता देवी आईं। (ये श्रीमती सीता देवी, श्रीरामचन्द्र जी की शक्ति श्रीमती सीता देवी नहीं हैं) भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय पार्षद श्रीवास पण्डित जी वास्तव में श्रीनारद गोस्वामी जी के अवतार हैं।
श्रीवास पण्डित जी ने एक बार बताया कि श्रीअद्वैत प्रभु जी श्रीहरि के अभिन्न अंग हैं। जीवों के कल्याण के लिए ही आप पृथ्वी पर आए हैं। आपकी पत्नी श्रीमती सीता देवी जी योगमाया हैं व प्राकृत जन्म से रहित हैं अर्थात श्रीमती सीता देवी का जन्म साधारण बच्चों जैसे नहीं हुआ था।
श्रीमती सीता देवी जी के पिता जी श्रीनृसिंह भादुड़ी जी नारायण पुर में रहते थे। आप भगवान नारायण के भक्त थे व प्रतिदिन भगवान की पूजा करते थे। आप के गांव के पास बावड़ी (तालाब) था जो कमल के फूलों से भरा रहता था। एक दिन भगवान की पूजा के लिए आप कमल लेने गए। जब आपने उस बावड़ी में प्रवेश किया तो आपने वहां एक अद्भुत कमल देखा जिसके 100 पंख थे। उसमें एक कन्या थी। उसका आकार हाथ के अंगूठे जितना था। चार भुजा लिए, कमल के आभूषणों से सजी थी।
अद्भुत नज़ारा देख आप असमंजस में थे। आपको पता ही नहीं लगा की कब आपने उस विशाल कमल को तोड़ा व घर ले आए। भगवान की इच्छा से आपकी पत्नी ने उसी दिन एक अन्य कन्या को जन्म दिया था। पत्नी ने अद्भुत बालिका को देखा व कहा कि अगर यह कन्या भाव से हमारे पास रहे तो इसकी बड़ी दया होगी। देखते ही देखते वह कन्या नवजात कन्या के रूप में बदल गई। सबको यही लगा की श्रीनृसिंह जी के यहां दो कन्यायों का जन्म हुआ है।
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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