धार्मिक स्थान पर जाने से नहीं, ऐसे तय होता है स्वर्ग और नर्क का अधिकारी

Edited By ,Updated: 18 Feb, 2016 09:56 AM

hell heaven

सद्गुरु कबीर साहब की आयु एक सौ बीस वर्ष के करीब थी। अपनी वाणी के द्वारा वह रुढि़वादियों को झकझोरते रहे पर अंतिम आघात अभी रहता था।

सद्गुरु कबीर साहब की आयु एक सौ बीस वर्ष के करीब थी।  अपनी वाणी के द्वारा वह रुढि़वादियों को झकझोरते रहे पर अंतिम आघात अभी रहता था। उन्होंने घोषणा की कि उनका अंतिम समय आ गया है और वह मगहर में प्राण त्यागेंगे। मगहर को अशुभ व दुर्भाग्यपूर्ण शहर माना जाता था।  कहा जाता था कि जो मगहर में प्राण त्यागता है उसे गति नहीं मिलती और नरक मिलता है। दूसरी तरफ जो काशी में प्राण त्यागता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
 
 
विद्वानों ने सद्गुरु कबीर जी को समझाया कि लोग अंतिम समय में बनारस आते हैं ताकि मुक्ति प्राप्त हो फिर आपने सारी उम्र कई धर्मशास्त्रों व पूजा-पाठ की आलोचना की है इसलिए इससे बचने के लिए काशी में प्राण त्यागना ही उचित होगा। कबीर जी ने इसका साफ उत्तर दिया कि अगर कठोर हृदय पापी काशी में मरेगा तो नरक से बच नहीं सकता पर अगर परमात्मा की भक्ति करने वाला मगहर में मरता है तो वह मुक्त होगा।
 
मनहु कठोर मेरे बानारिस, नरकु न बांचिया जाई।
हरि का संतु मेरे हाड़बै, त समली सैन तराई।
 
 
सद्गुरु कबीर जी ने कहा कि यह शरीर स्थिर नहीं है। इसे एक दिन अवश्य नष्ट होना है। जैसे कच्चे बर्तन में कब तक जीव रूपी पानी रख पाओगे। कच्चा घड़ा तो एक दिन टूटेगा ही।
 
 
आज काल दिन एक में स्थिर नाहिं सरीर।
कह कबीर कस राखिहौ, कांचे बासन नीर।
 
 
सद्गुरु कबीर जी कहते हैं कि जिस मृत्यु से संसार डरता है वह मृत्यु मेरे लिए आनंद का विषय है और प्रतीक्षा कर रहा हूं कि कब मरूं और पूर्ण, परम आनंद स्वरूप परब्रह्म के दर्शन करूं।
 
 
जिस मरने यै जग डरै, सो मेरे आनंद।
कब मरिहूं कब देखिहूं पूरन परमानंद।
 
मगहर के साथ दो दुखत बातें जुड़ी हैं। पहली, वहां बहती आमी नदी बारिश के दिनों को छोड़ कर सूखी रहती थी और दूसरा वहां मरने वालों का नरक में जाने का कलंक था। कबीर जी के आने पर नदी में सारा साल पानी आने लगा और मगहर में मरने वालों का नरक का कलंक भी मिट गया। कबीर जी ने कहा कि न तो बनारस स्वर्ग का दाता है और न ही मगहर नरक का कारण। सभी स्थान बराबर हैं और अपने कर्मों से अच्छाई और बुराई मिलती है। 

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