संसार के हर महापुरुष का जीवन है इनसे प्रभावित, आप भी लें सीख

Edited By ,Updated: 18 Dec, 2015 12:31 PM

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ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक सुबह उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाए देख उनके मन में करुणा उमड़ी।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक सुबह उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाए देख उनके मन में करुणा उमड़ी। वे तुरन्त घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी मां से कहा कि वे उस भिखारी को कुछ दे दें। मां के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। 
 
उन्होंने अपना कंगन उतारकर ईश्वरचंद्र विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा, ‘‘जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे उस दिन मेरे लिए दूसरा बनवा देना, अभी इसे बेचकर जरूरतमंदों की सहायता कर दो।’’
 
बड़े होने पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर अपनी पहली कमाई से अपनी मां के लिए सोने के कंगन बनवाकर ले गए और उन्होंने मां से कहा, ‘मां! आज मैंने बचपन का तुम्हारा कर्ज उतार दिया।’ 
 
उनकी मां ने कहा, ‘बेटा! मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पाएगा जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे।’
 
मां की सीख ईश्वरचंद्र विद्यासागर के दिल को छू गई और उन्होंने प्रण किया कि वे अपना जीवन गरीब-दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट हरने में व्यतीत करेंगे और उन्होंने अपने सारे जीवन में ऐसे ही किया।
 

महापुरुषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढऩे के लिए वे कई कष्ट और कठिनाइयों के दौर से गुजरते हैं और हर महापुरुष का जीवन कहीं न कहीं अपनी मां की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित रहता है। 

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