Edited By ,Updated: 01 Jun, 2016 01:33 PM
खलीफा उमर का सारा जीवन धार्मिक सेवा में बीता था। अंत में तो उन्हें धर्म के लिए तलवार भी उठानी पड़ी। एक दिन उनका अपने प्रतिद्वंद्वी से सामना हो गया। दोनों में गुत्थमागुत्था हो गई। उमर ने उसे पछाड़ दिया और छाती पर चढ़ बैठे। जैसे ही उसका सिर काट डालने
खलीफा उमर का सारा जीवन धार्मिक सेवा में बीता था। अंत में तो उन्हें धर्म के लिए तलवार भी उठानी पड़ी। एक दिन उनका अपने प्रतिद्वंद्वी से सामना हो गया। दोनों में गुत्थमागुत्था हो गई। उमर ने उसे पछाड़ दिया और छाती पर चढ़ बैठे। जैसे ही उसका सिर काट डालने के लिए उन्होंने अपनी तलवार निकाली कि प्रतिद्वंद्वी ने उन्हें गाली दे दी। गाली सुनते ही खलीफा उमर उठकर खड़े हो गए और अपनी तलवार म्यान में बंद कर ली। उनके साथ जो सैनिक थे, उन्हें इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ।
उन्होंने कुछ स्पष्ट स्वर में कहा,"श्रीमान जी! आपने यह क्या किया? आपको तो इसे मार ही देना चाहिए था।"
खलीफा उमर गंभीर हो गए और बोले,"भाई! मैंने युद्ध न्याय के लिए बिना क्रोध के किया था किन्तु जब इसने मुझे गाली दी तो मुझे क्रोध आ गया। इस स्थिति में इसे मारने से पहले अपने क्रोध को मारना आवश्यक हो गया। अब मेरा क्रोध शांत हो गया है। इसलिए दोबारा युद्ध करूंगा।"
खलीफा उमर के यह निष्काम शब्द सुनकर प्रतिद्वंद्वी आप पराभूत होकर उनके पैरों पर गिर गया और सदैव के लिए उनका भक्त बन गया। बाहरी शत्रु से भी भयंकर हैं आंतरिक शत्रु इसलिए पहले उसको जीतना चाहिए।