बेहद निराश और सताए हुए लोग, सुंदर भविष्य का निर्माण करने के लिए ध्यान रखें

Edited By ,Updated: 21 Jun, 2016 11:09 AM

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एक पत्थर था। किसी जमाने में सिर उठाए खड़ा था। समय के चक्र ने उसे धरती के नीचे दबा दिया। फिर उसकी किस्मत पलटी। खुदाई में वह बाहर निकला।

एक पत्थर था। किसी जमाने में सिर उठाए खड़ा था। समय के चक्र ने उसे धरती के नीचे दबा दिया। फिर उसकी किस्मत पलटी। खुदाई में वह बाहर निकला। भूगर्म शास्त्रियों के लिए उसका कोई महत्व न था। फैंक दिया गया लेकिन उसका भी एक भविष्य था। एक दिन एक मूर्तकार की नजर उस पर पड़ी। मूर्तकार ने उसे अपनी कार्यशाला में लाकर रखा। पत्थर काफी बड़ा था। 

 

मूर्तकार ने उसे हिसाब से दो भागों में तोड़ दिया। अब दो पत्थर हो गए। उसने दोनों से दो अलग-अलग मूर्तियां बनाने की रूपरेखा अपने मन में तैयार की। निश्चित हो जाने के बाद उसने अपने हाथों में छेनी और हथौड़ा लेकर पत्थर को आकार प्रदान करने के लिए उस पर चोट करना प्रारंभ किया। पत्थर को दर्द महसूस होता। वह जोर से चिल्लाता। 

 

मूर्तकार उसकी चिल्लाहट से परेशान हो गया। उसने पत्थर को छेनी हथौड़ी की चोट से मुक्ति दे दी और एक कोने में रख दिया। फिर मूर्तकार ने दूसरे पत्थर को तराशना शुरू किया। चोट तो उसे भी लगी। उसे दर्द भी हुआ लेकिन दूसरे पत्थर ने सोचा, ‘‘समय कब एक समान रहता है। कितने दौर से गुजर चुका हूं। आज जीवन में पुन: एक नया दौर आया था। उसने मन को मजबूत किया। छेनी और हथौड़ी की चोट झेल-झेल कर एक दिन वह पत्थर से शंख चक्र-गदाधारी, आकर्षक और मनोहारी चतुरानन मूर्त में बदल गया।

 

अब उसकी सुंदरता की छटा देखते ही बनती थी। एक दिन एक सेठ, मूर्तकार की दुकान के सामने से गुजर रहे थे उनकी नजर सुंदर मनोहर मूर्त पर पड़ी। मोल पता किया और मूर्त को ले लिया। साथ ही उसने अनगढ़ पत्थर को भी ले लिया कि किसी और काम में यह प्रयोग हो जाएगा। 

 

सेठ ने एक भव्य मंदिर बनवाया। उसमें भगवान को स्थापित किया। फिर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की। पूजा-अर्चना प्रारंभ हुई। भक्तगण आने लगे। मंदिर में सेठ ने भगवान के चरणों में दूसरे पत्थर को स्थापित कर दिया।

 

एक रात की बात है मूर्त को नींद नहीं आ रही थी। उधर चरणों में पड़ा दूसरा पत्थर भी जाग रहा था और वह कराह रहा था। उसने पत्थर को बताया कि जब पहली बार उसके शरीर पर मूर्तकार ने हथौड़ा चलाया था तो उसे भी बड़ा डर लगा था लेकिन उसने इसे अपनी नियति नहीं माना। उसे लगा था कि कौन जाने इसी चोट में सुंदर भविष्य का सूरज छिपा हो, जो एक दिन उसके जीवन में एक नया उजाला लेकर उगे और यही हुआ। यही होता भी है। तकलीफ में सुंदर भविष्य छिपा होता है।

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