तीर्थ यात्रा की इच्छा रखने वाले, धन न होने पर घर बैठे कमाएं पुण्य

Edited By ,Updated: 10 Aug, 2016 12:45 PM

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एक साधु की तीर्थ यात्रा की इच्छा हुई। वह रात-दिन पैसा इकट्ठा करने की जुगत में लगे रहते। एक दिन उन्होंने स्वप्न में देखा और सुना कि

एक साधु की तीर्थ यात्रा की इच्छा हुई। वह रात-दिन पैसा इकट्ठा करने की जुगत में लगे रहते। एक दिन उन्होंने स्वप्न में देखा और सुना कि यदि किसी व्यक्ति में परोपकार की भावना हो तो घर बैठे ही उसे तीर्थ यात्रा का पुण्य मिल सकता है, जैसे कि हिमाचल के एक गांव में जूता गांठकर आजीविका चला रहे श्यामू भक्त में है।

कहीं आप भ्रम में आकर गलत चारधाम यात्रा तो नहीं कर रहे

नींद खुलने पर साधु ने श्यामू भक्त से मिलने की ठानी। खोजते-खोजते वह श्यामू भक्त के घर पहुंचे और उनसे तीर्थ यात्रा न करने का कारण पूछा। श्यामू ने बताया कि तीर्थ यात्रा पर जाने की तो मन में तीव्र इच्छा थी, कुछ पैसे भी जमा कर लिए थे लेकिन एक घटना ऐसी घटी कि तीर्थ यात्रा पर जाने का विचार त्याग देना पड़ा। 
उसकी पत्नी गर्भवती थी। एक दिन उसे पड़ोस से मेथी के साग की सुगंध आई। उसे यह साग खाने की इच्छा हुई। उसने पड़ोसी के घर जाकर पत्नी के लिए थोड़ा साग मांगा। पड़ोसी संकुचाते हुए बोला कि 4 दिन से बच्चे भूखे थे। इसलिए आज ही श्मशान से मेथी की पत्तियां तोड़कर साग बनाया है। उसकी ऐसी दयनीय दशा देखकर श्यामू ने वह रुपए उसे दे दिए जो उसने व उसकी पत्नी ने पेट काटकर तीर्थ यात्रा के लिए जोड़े थे। यह सुन साधु के जीवन की दिशा ही बदल गई। किसी जरूरतमंद की मदद करने से तीर्थ यात्रा का वह पुण्य मिल जाता है जो चारों धाम की यात्रा से भी प्राप्त नहीं होता। 
 
आज हर व्यक्ति तनाव में जी रहा है। मनुष्य को इस तनाव से मुक्ति के लिए अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना आवश्यक है। परिवर्तित दृष्टिकोण से ही मन तनाव से बचकर स्वस्थ रह सकता है। हम जीवन के चारों तरफ के घटनाक्रम को साक्षी भाव से देखें, कर्ता भाव से नहीं। हम अतीत में की गई गलतियों के लिए न तो ग्लानि करें और न ही भविष्य की आशंकाओं से चिंतित या भयभीत हों। 
 
इस संसार में हम अद्वितीय हैं। इसलिए अपनी तुलना किसी से न करें। अपनी निंदा से विचलित न हों अपितु अपनी कमजोरियां जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास करें। अपनी समस्याओं के समाधान का क्रम तय करें। जो पहले जरूरी है, उसे उसी क्रम में सुलझाएं। एक साथ सभी समस्याएं सुलझाने का प्रयास न करें। अपनी छोटी-छोटी चिंताओं का रोना छोड़कर अन्य लोगों का सहयोग करें। उनकी मदद करना तीर्थाटन से किसी मायने में कम नहीं। 

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