कृष्णावतार

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2016 03:13 PM

krishna

भीम सेन ने इतना कह कर कुछ देर रुके और फिर कहने लगेे, ‘‘अच्छा, अब तुम अपने आप हटते हो यहां से या मैं तुम्हें उठा कर यमपुरी पहुंचा दूं?’’

भीम सेन ने इतना कह कर कुछ देर रुके और फिर कहने लगेे, ‘‘अच्छा, अब तुम अपने आप हटते हो यहां से या मैं तुम्हें उठा कर यमपुरी पहुंचा दूं?’’
 
 
‘‘रोष न करो भैया। मुझ से तो हिला भी नहीं जाता। तुम मेरी पूंछ पकड़ कर हटा दो और आगे निकल जाओ।’’ वानर देवता ने कहा।
 
 
यह सुन कर भीमसेन लापरवाही से बाएं हाथ से श्री हनुमान जी की पूंछ पकड़ कर उठाने लगे परंतु वह टस से मस भी न हुई। तब उन्होंने अपने दोनों हाथों से पूंछ को पकड़ कर पूरा जोर लगाया और फिर सिर झुका कर खड़े हो गए तथा हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘श्री बजरंग बली के सिवाय इस संसार में दूसरा ऐसा कोई भी नहीं है जो मुझसे अधिक बलवान हो। प्रभु आप निश्चय ही हनुमान जी हैं। मेरे और संसार के सब बलवान पुरुषों के आराध्य देव। सभी तो अखाड़े में उतरते, शत्रु के सामने युद्ध भूमि में लड़ते समय सबसे पहले आपका ही स्मरण करते हैं। अत: मेरा अपराध कृपा करके क्षमा करें।’’ 
 
भीम सेन द्वारा क्षमायाचना करने पर श्री हनुमान जी उठ कर खड़े हो गए। अब वह दुर्बल और पहले की भांति हड्डियों का ढांचा नहीं थे। अपने बजरंगी रूप में वह भीमसेन के सामने खड़े थे। उन्होंने भीमसेन की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘भैया, अनाचार का भाव मन में उत्पन्न होने पर ही मैं अपने भक्त को दंड देता हूं। सो ऐसा भाव तुम्हारे मन में कभी उत्पन्न ही नहीं हुआ। वैसे मैं श्री राम का सेवक हूं यह तुम जानते ही हो। श्री राम से द्वेष रखने वाले और उनके प्राणों के शत्रु भी जब स्वर्ग में गए तो फिर मैं श्री राम के भक्तों पर या मुझे कड़वी बातें कह डालने वालों पर रोष कैसे कर सकता हूं? लोग अनजाने में ही शत्रु से युद्ध करते समय मेरा स्मरण करते हैं।’’ 
 

(क्रमश:) 

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