Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Feb, 2018 11:44 AM
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि बुद्धिमान व्यक्ति पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है यानी उनसे आजाद हो जाता है। इसलिए तुम हर हाल में एतक जैसा व्यवहार करने वाले योग में लग जाओ।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि बुद्धिमान व्यक्ति पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है यानी उनसे आजाद हो जाता है। इसलिए तुम हर हाल में एतक जैसा व्यवहार करने वाले योग में लग जाओ। यह अभ्यास ही तुम्हें कर्म के बंधन से बाहर निकलने का उपाय देगा।
जब कोई व्यक्ति कर्म करता है तो उस कर्म का फल मिलता है। अच्छे काम पुण्य व बुरे काम पाप फल देते हैं। हम एक दिन में ही कई काम कर लेते हैं। इससे अंदाजा लगाइए कि पूरे जीवन में कितने कर्म जमा हो जाते होंगे। ये ढेरों कर्म हमारे मन-मस्तिष्क में जमा रहते हैं। कर्मों के फल से बचने के लिए हमेशा एक जैसा बर्ताव करने के भाव में आना ही समाधान देगा। इसके जरिए ही हम पाप-पुण्य दोनों से ऊपर उठ सकेंगे।
वैसे तो कर्म हमारे द्वारा होते हैं लेकिन वास्तव में इसे हम नहीं करते। हमारे भीतर मौजूद सामर्थ्य से ही कोई काम होता है लेकिन अहंकार सोचता है कि कर्म हम कर रहे हैं। हकीकत में सामर्थ्य के बिना अहंकार किसी काम का नहीं। हम इस शरीर को चलाने वाली शक्ति को नहीं समझते और महत्व अहंकार को देते हैं। यही कारण है कि हर कर्म का फल हमें मिलता है।
देखा जाए तो हम सोने-जागने, खाने-पीने, नहाने, दांत साफ करने जैसे काम अहंकार भाव से नहीं करते। यही कारण है कि यह काम हमारे मन-मस्तिष्क में जमा नहीं होते। ठीक ऐसे ही आम जनजीवन में भी कामों को बिना उनसे बंध कर कुशलता से करने की कोशिश करनी चाहिए।