Edited By Jyoti,Updated: 25 Oct, 2020 04:19 PM
एथेंस देश में सोलन नामक एक विद्वान संत रहते थे। उनकी विद्वता तथा त्याग से सभी प्रभावित थे। सोलन भ्रमण करते-करते लीबिया देश जा पहुंचे। वहां के राजा कारूं को संत सोलन के आगमन का पता चला तो उसने आदरपूर्वक संत को महल में बुलवाया।
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एथेंस देश में सोलन नामक एक विद्वान संत रहते थे। उनकी विद्वता तथा त्याग से सभी प्रभावित थे। सोलन भ्रमण करते-करते लीबिया देश जा पहुंचे। वहां के राजा कारूं को संत सोलन के आगमन का पता चला तो उसने आदरपूर्वक संत को महल में बुलवाया। कारूं ने अपने महल और संपत्ति की ओर संकेत कर कहा, ‘‘महाराज, क्या मुझसे सुखी और सम्पन्न इस क्षेत्र में दूसरा कोई है?’’ संत सोलन ने सहज भाव से उत्तर दिया, ‘‘संसार में सुखी उसी को कहा जा सकता है जिसका अंत सुखमय हो।’’ संत की स्पष्ट कथनी से कारूं नाराज हो गया।
कुछ दिनों बाद कारूं ने फारस राज्य पर आक्रमण कर दिया। राजा साइरस ने उसे हराकर गिरफ्तार कर लिया तथा उसे जीवित जला डालने की सजा सुना दी। अब कारूं को संत सोलन के वाक्य याद आए कि ‘जिसका अंत सुखमय है वही सुखी है’। उसने प्राण दंड दिए जाने से पूर्व ‘हाय सोलन-हाय सोलन’ कह कर संत का स्मरण किया।
राजा साइरस संत सोलन का भक्त था। उसने पूछा, ‘‘तुम सोलन का स्मरण क्यों कर रहे हो?’’ कारूं ने बताया कि, ‘‘मैं उनके सत्य कथन को याद कर अपनी वाणी को उनके नाम से पवित्र कर रहा हूं।’’ साइरस ने कारूं को तुरन्त जीवन दान दे दिया।