Edited By ,Updated: 23 Sep, 2016 11:58 AM
दो मित्र अक्सर एक वेश्या के पास जाया करते थे। एक शाम जब वे वहां जा रहे थे तो रास्ते में किसी संत का आध्यात्मिक प्रवचन चल रहा था।
दो मित्र अक्सर एक वेश्या के पास जाया करते थे। एक शाम जब वे वहां जा रहे थे तो रास्ते में किसी संत का आध्यात्मिक प्रवचन चल रहा था। एक मित्र ने कहा कि वह प्रवचन सुनना पसंद करेगा। उसने उस रोज वेश्या के यहां नहीं जाने का फैसला किया। दूसरा व्यक्ति अपने मित्र को वहीं छोड़ कर उस वेश्या के यहां चला गया।
अब जो व्यक्ति प्रवचन में बैठा था वह अपने दूसरे मित्र के विचारों में डूबा हुआ था। सोच रहा था कि वह भी क्या आनंद ले रहा होगा और मैं इस खुश्क जगह में आ बैठा। मेरा मित्र ज्यादा बुद्धिमान है क्योंकि उसने प्रवचन सुनने की बजाय वेश्या के यहां जाने का फैसला किया।
जो आदमी वेश्या के पास बैठा था वह सोच रहा था कि उसके मित्र ने इसकी जगह प्रवचन में बैठने का फैसला करके मुक्ति का मार्ग चुना है जबकि मैं अपनी लालसा में खुद ही आ फंसा। प्रवचन में बैठे व्यक्ति ने वेश्या के बारे में सोच कर बुरे कर्म बटोरे। अब वही इसका दुख भोगेगा। गलत काम की कीमत आप इसलिए नहीं चुकाते क्योंकि आप वेश्या के यहां जाते हैं, आप कीमत इसलिए चुकाते हैं क्योंकि आप चालाकी करते हैं। आप जाना वहां चाहते हैं लेकिन सोचते हैं कि प्रवचन में जाने से आप स्वर्ग के अधिकारी बन जाएंगे। यही चालाकी आपको नरक में ले जाती है।
आप जैसा महसूस करते हैं वैसे ही आप बन जाते हैं। मान लीजिए कि आप जुआ खेलने के आदी हैं। हो सकता है कि अपने घर में मां, पत्नी या बच्चों के सामने आप जुए के खेल को खराब बताते हों। इसका नाम तक मुंह पर नहीं लाते हों लेकिन जैसे ही अपने गैंग से मिलते हैं, पत्ते फैंटने लगते हैं।
हर जगह ऐसा ही है। चोरों को क्या ऐसा लगता है कि किसी को लूटना बुरा है? जब चोर चोरी में असफल होते हैं तो वे सोचते हैं कि वे अच्छे चोर नहीं हैं। उनके लिए वह एक बुरा कर्म हो जाता है। कर्म ठीक उसी तरह से बनता है जिस तरह से आप उसे महसूस करते हैं। आप जो कर रहे हैं उससे इसका संबंध नहीं है। जिस तरीके से आप उसको अपने दिमाग में ढोते हैं, उसका संबंध केवल उसी से है।