जिंदगी के आखिरी पलों में अधिकांश लोग ऐसी हकीकतों का करते हैं सामना

Edited By ,Updated: 16 Nov, 2015 05:28 PM

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सूक्ष्म शरीर धारी जीव इस लोक के सतत् अभ्यास के कारण परलोक में भी इंद्रियों के विषयों की अभिलाषा करता है परन्तु उन अभिलाषाओं की पूर्त ‘भोगयातन’ देह न होने के कारण नहीं कर पाता।

सूक्ष्म शरीर धारी जीव इस लोक के सतत् अभ्यास के कारण परलोक में भी इंद्रियों के विषयों की अभिलाषा करता है परन्तु उन अभिलाषाओं की पूर्त ‘भोगयातन’ देह न होने के कारण नहीं कर पाता। 

एकाएक लाला जी की हालत बिगड़ती देख सभी रिश्तेदार घर में जमा होने लगे। एक-दो रिश्तेदारों ने सहारा देकर लाला जी को चारपाई से उतारकर जमीन पर लिटा दिया। वैसे कई दिनों से खटिया पकड़े लाला जी ने भी अपने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। घरवालों को भी पता लग ही चुका था कि लाला जी अब जाएं कि तब जाएं।
पथराई नजरों से लाला जी रिश्तेदारों व घरवालों को देख रहे थे। तभी उनके मुख से उनके बड़े लड़के के लिए आवाज निकली-राजू-ओ-राजू।
 
राजू ने तुरंत भीड़ से आगे आकर पिता का हाथ थाम लिया और कहने लगा, पिता जी, आप चिंता न करें, मैं आप के पास हूं।
 
छोटु-ओ-छोटू- लाला जी के मुख से दबी सी आवाज निकली, दूसरा लड़का भी पिता जी के दूसरे हाथ को पकड़ कर बोला, पिता जी मैं भी आपके पास हूं।
 
बबलू-ओ-बबलूृ भर-भरी सी आवाज में अपने सबसे छोटे लड़के को लाला जी ने पुकारा।
 
पैरों को लगभग हिलाता हुआ बबलू बोला- बापू-बापू मैं भी आपके पास ही हूं। 
 
दर्द से कराहते लगभग अंतिम श्वास छोड़ते हुए लाला जी ने बड़ी ताकत लगाकर रुद्ध कण्ठ से शब्द निकालते हुए कहा- अरे मूर्खो मेरा तो बचना मुश्किल है अभी एक मिनट भी जी पाऊंगा कि नहीं। अरे मैंने तो मरना ही है,परंतु तुम तीनों के तीनों मेरे पास क्या कर रहे हो, क्या सारी दुकान लुटा डालोगे। अरे,कोई तो दुकान में जाओ।
 
गीता जी के आठवें अध्याय के पांचवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जीवन के अन्त में जो मेरा स्मरण करता हुआ शरीर छोड़ता है वह निश्चय ही मेरे भाव को प्राप्त कर लेता है, परंतु ये एकाएक नहीं होगा। हमें जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हीं भावों का स्मरण होगा जिन भावों में हम सारी जिंदगी डूबे रहते हैं।
 
जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत में पूर्णत: लीन रहता है, उसे अपने आध्यात्मिक कर्मों के योगदान के कारण अवश्य ही भगवद्धाम की प्राप्ति होती है क्योंकि उसमें हवन भी ब्रह्म है और हवि भी उस ब्रह्म की होती है।
 
श्री चैतन्य गौड़ीय मठ की ओर से
श्री बी.एस.निष्किंचन जी महाराज

 

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