Edited By ,Updated: 23 Jun, 2016 11:17 AM
एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अपने सभी भक्तों को उनकी इच्छा के अनुसार श्रीविष्णु के सभी अवतारों के रूप दिखाए। साथ ही साथ जिसने जो मांगा
एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अपने सभी भक्तों को उनकी इच्छा के अनुसार श्रीविष्णु के सभी अवतारों के रूप दिखाए। साथ ही साथ जिसने जो मांगा, वो वर भी प्रदान किया। बहुत समय हो जाने पर भी जब भगवान श्रीमहाप्रभुजी ने अपने भक्त श्रीमुकुन्द दत्त को वर देने के लिए नहीं बुलाया, तो भक्तों को इसका कारण जानने की इच्छा हुई।
उत्तर में श्रीचैतन्य महाप्रभु ने कहा, 'मुकुन्द खड़जाटिया बेटा है । ये भक्ति में दीनता भी दिखाता है और कभी लाठी भी चलाता है। उसकी मति स्थिर नहीं है । वह कभी भक्तों के दल में मिल जाता है और कभी अभक्तों के दल में मिलकर मेरे अंगों पर प्रहार करता है। इसलिए वह मेरे दर्शनों का अधिकारी नहीं है।'
श्री महाप्रभु जी से इस प्रकार के कठोर वचन सुनकर व खेदयुक्त होकर आपने देह त्याग का संकल्प ले लिया। किंतु देह त्यागने से पहले श्रीवास पंडित जी के माध्यम से आपने श्रीमहाप्रभु के पास अपना ये प्रश्न भिजवाया कि क्या आपको (मुकुन्द जी को) भी कभी भगवान के दर्शन होंगे?
श्री महाप्रभु जी बोले - 'हां करोड़ जन्म के बाद वह दर्शन पाएगा।'
'करोड़ जन्म के बाद दर्शन पाऊंगा' , 'करोड़ जन्म के बाद दर्शन पाऊंगा' , 'महाप्रभु का वचन कभी झूठा नहीं होगा' इस प्रकार बोलते-बोलते श्रीमुकुन्द आनंद में विभोर होकर नाचने लगे ।
आपके ये भाव देखकर अन्तर्यामी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उसी समय आपके सभी अपराध क्षमा कर, आपको अपने ईश्वर रूप के दर्शन कराए।
साथ ही साथ श्रीचैतन्य महाप्रभु जी बोले, 'हे मुकुन्द ! सुनो ! जहां- जहां पर मेरा अवतार होगा, वहीं-वहीं पर तुम मेरे गायक के रूप में रहोगे।'
आपने साथ ही साथ भक्ति शून्यता के लिए अपने आपको धिक्कार दिया तथा भक्ति योग के शुभ-प्रभाव और भक्ति हीनता के भयावह परिणामों का वर्णन करने लगे। प्रातः स्मरणीय, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि यही श्री मुकुन्द दत्त जी, भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में श्री मधुकण्ठ के रूप में रहते हैं।
श्रीचैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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