टिड्डी नियंत्रण नीति केवल रासायनिक स्प्रे पर केंद्रित है: कृषि विशेषज्ञ

Edited By PTI News Agency,Updated: 01 Jun, 2020 07:49 PM

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नयी दिल्ली, एक जून (भाषा) देश में तीन दशक के रेगिस्तानी टिड्डी दल के सबसे बड़े प्रकोप के बीच एक कृषि विशेषज्ञ का मानना है कि इस पर नियंत्रण के लिए मात्र रासायनिक छिड़काव पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा और इस कीट की रोकथाम के अन्य प्राकृतिक...

नयी दिल्ली, एक जून (भाषा) देश में तीन दशक के रेगिस्तानी टिड्डी दल के सबसे बड़े प्रकोप के बीच एक कृषि विशेषज्ञ का मानना है कि इस पर नियंत्रण के लिए मात्र रासायनिक छिड़काव पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा और इस कीट की रोकथाम के अन्य प्राकृतिक तरीकों की अनदेखी की जा रही रही है।
   टिड्डियों ने - राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे पांच राज्यों को प्रभावित किया है - और केंद्र ने सीमावर्ती राज्यों को चेतावनी जारी की है।
केंद्र की योजना ड्रोन और हेलीकॉप्टरों का उपयोग कर हवाई स्प्रे को बढ़ाने की है।
हरियाणा स्थित कुदरती खेती अभियान के सलाहकार राजिंदर चौधरी ने एक बयान में कहा, "कीटनाशकों के हवाई मार्ग से छिड़काव के ज्ञात दुष्प्रभावों के बावजूद, सरकार की टिड्डी नियंत्रण नीति केवल रासायनिक स्प्रे पर केंद्रित है और अन्य गैर-रासायनिक उपायों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है।" उन्होंने इस संबंध में कृषि मंत्रालय में एक ज्ञापन दिया गया है।
उन्होंने कहा कि बगैर किसी दुष्प्रभावों के टिड्डियों को नियंत्रित करने के संदर्भ में, भारत और विदेश के विशेषज्ञों द्वारा कई प्रभावी गैर-रासायनिक उपचार सुझाए गए हैं, जिसमें तेलंगाना के एक पद्म श्री पुरस्कार विजेता, जैविक खेती करने वाले किसान चिंताला वेंकट रेड्डी भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि चिंताला ने जैविक और गैर-रासायनिक तरीकों के माध्यम से टिड्ढियों के नियंत्रण के लिए सरकार को सुरक्षित और प्रभावी उपाय बताये हैं।
चौधरी ने कहा कि अगर रासायनिक तरीकों को एक साथ पूरा छोड़ा नहीं जा सकता है, तो कम से कम आबादी वाले क्षेत्रों में और जल भराव वाले क्षेत्रों के करीब, सरकार को रासायनिक उपायों को अपनाने के बजाय सुरक्षित गैर-रासायनिक उपायों को अपनाना चाहिये।
गैर-रासायनिक उपायों में से कुछ के बारे में बताते हुए, उन्होंने कहा कि टिड्डे जो रात के दौरान यात्रा या भोजन नहीं करते हैं। उन्हें पकड़ ककर एकत्रित किया जा सकता है और उन्हें पोल्ट्री फीड के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इस पद्धति की आर्थिक और भौतिक व्यवहार्यता स्थापित हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति एक रात में 10 क्विंटल टिड्डे को पकड़ सकता है और मुर्गी और बत्तख के चारे के रूप में उपयोग कर सकता है, जिससे टिड्डियों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
चौबीस घंटों के भीतर टिड्डियों को नियंत्रित करने का एक अन्य तरीका अलसी के तेल, खाद्य सोडा / सोडियम बाइकार्बोनेट और लहसुन का निचोड़, जीरा और नारंगी के अर्क का छिड़काव करना है। इस मिश्रण का फसलों पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है। उन्होंने कहा कि टिड्डियों के चक्र को समझते हुए इसका समय पर उपयोग किया जा सकता है और उपलब्ध परजीवी कवक का उपयोग किया जा सकता है जो टिड्डों को मार सकता है।
इसके अलावा, टिड्डियों को, फसलों पर किसी ऐसी चीज का छिड़काव करके भी नियंत्रित किया जा सकता है जो वनस्पति पदार्थ को अखाद्य बनाता हो।
चिंताला ने पृथ्वी से चार फीट नीचे से 30-40 किलोग्राम मिट्टी लेकर इसे 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से घोलकर 10-20 मिनट के लिए छोड़ दिया जाना चाहिये। पानी को तब छानकर फसलों पर छिड़का जाना चाहिए। यह सभी वनस्पतियों को टिड्डियों के लिए अखाद्य बना देगा।
यह रेतीला-पानी एक सामान्य स्प्रे पंप के साथ छिड़का जा सकता है। टिड्डी का खतरा खत्म होने के बाद, सादे पानी के साथ फसल पर छिड़काव करने से पत्तियों से रेत की परत हट जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि शोर मचाना, टिड्डियों के झुंड के रास्ते पर 50 फुट ऊँचा जाल लगाना या झुंडो के बीच से विमान उड़ाने जेसे उपायों के जिए बड़ा नुकसान बचाया जा सकता है।


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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