एनसीएलएटी ने अंसल प्रोपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही पर लगायी रोक

Edited By PTI News Agency,Updated: 14 Aug, 2020 11:47 PM

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नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने शुक्रवार को अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही को रद्द कर दिया।

नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने शुक्रवार को अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही को रद्द कर दिया।

उसने फैसला सुनाया कि कंपनी का प्रबंधन उसके निदेशक मंडल को वापस सौंप दिया जाये।

एनसीएलएटी की तीन सदस्यीय पीठ ने माना कि किसी कंपनी के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने में आज्ञप्ति (डिक्री) धारक को वित्तीय देनदार नहीं माना जा सकता है।

आम तौर पर, एक डिक्री संबंधित प्राधिकारण द्वारा जारी एक आधिकारिक आदेश होता है।

अपीलीय न्यायाधिकरण ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की दिल्ली पीठ के आदेश पर रोक लगा दी।
एनसीएलटी की दिल्ली पीठ ने 17 मार्च को अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया था और कंपनी के निदेशक मंडल को हटाकर उसकी जगह एक अंतरिम समाधान पेशेवर नियुक्त किया था।

एनसीएलटी का उक्त आदेश दो फ्लैट खरीदारों की याचिका पर आया था, जिन्होंने संयुक्त रूप से लखनऊ में अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के सुशांत गोल्फ सिटी में एक फ्लैट बुक किया था। एनसीएलटी ने उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (यूपी रेरा) द्वारा जारी रिकवरी सर्टिफिकेट के आधार पर कंपनी के खिलाफ दिवाला याचिका को स्वीकार कर लिया था।

हालांकि, अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि एनसीएलटी ने दो खरीदारों की याचिका स्वीकार करने में गंभीर त्रुटि की।

एनसीएलएटी के कार्यवाहक अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी एल भट की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "हमारा यह मानना है कि कॉरपोरेट कर्जदार के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला शोधन समाधान प्रक्रिया शुरू करने को लेकर 17 मार्च 2020 को दिया गया आदेश टिक नहीं सकता है।’’
एनसीएलएटी का यह फैसला सुशील अंसल की याचिका पर सुनवाई के क्रम में आया। सुशील अंसल कंपनी में निदेशक हैं तथा शेयरधारक हैं। उन्होंने एनसीएलटी के फैसले को एनसीएलएटी में चुनौती दी थी।

एनसीएलएटी ने कहा कि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत डिक्री धारक निश्चित तौर पर कर्जदाता की परिभाषा के दायरे में आते हैं, लेकिन उन्हें वित्तीय कर्जदाता नहीं माना जा सकता है। अत: उनकी याचिका पर दिवालिया कार्यवाही नहीं शुरू की जा सकती है।


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