भाव ऊंचा बोले जाने से पिछले सप्ताहांत पामतेल कीमतों में सुधार, मूंगफली के दाम टूटे

Edited By PTI News Agency,Updated: 23 Aug, 2020 03:15 PM

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नयी दिल्ली, 23 अगस्त (भाषा) देश में बढ़ते सस्ते आयात के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह सरसों, सोयाबीन और पामोलीन तेलों के भाव पूर्ववत बने रहे जबकि पिछले साल के बचे स्टॉक और अगली बम्पर पैदावार की संभावना के साथ सस्ते आयात के आगे...

नयी दिल्ली, 23 अगस्त (भाषा) देश में बढ़ते सस्ते आयात के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह सरसों, सोयाबीन और पामोलीन तेलों के भाव पूर्ववत बने रहे जबकि पिछले साल के बचे स्टॉक और अगली बम्पर पैदावार की संभावना के साथ सस्ते आयात के आगे मांग प्रभावित होने से मूंगफली तेल तिलहनों के भाव में गिरावट दर्ज हुई।
बाजार सूत्रों ने कहा कि कच्चे पामतेल और सोयाबीन डीगम का देश में जुलाई माह में रिकॉर्ड आयात हुआ है और विदेशों में इस बार अच्छी पैदावार की संभावना तथा अर्जेन्टीना के अलावा तुर्की और रूस से इस तेल का आयात शुरु होने के कारण अगस्त में आयात और बढ़ सकता है।
उसने कहा कि विदेशों में पहले से पाम तेल का भारी स्टॉक है जबकि इसकी वैश्विक मांग अधिक नहीं है। दूसरी तरफ देश में जरुरत से कहीं ज्यादा पामतेल का आयात किया जा रहा है।

देश में प्रतिमाह 12 लाख टन खाद्य तेल को आयात करने की आवश्यकता होती है जबकि बैंकों में अपने साख पत्र (लेटर आफ क्रेडिट) को चलाते रहने के लिए कुछ देशी आयातक बैंकों के ऋण के बल पर विदेशों से महंगे दाम में पामतेल की खरीद कर देश के बाजार में इसे बेपरता यानी कम कीमत पर बेच रहे हैं।

सूत्रों ने कहा कि इससे केवल बैंक के पैसे डूबते हैं, देश के विदेशीमुद्रा की हानि होती है और देशी तेल मिलों और किसानों को भारी नुकसान उठाना होता है।
उसने कहा कि अगर सरकार तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की मंशा रखती है तो उसे इन बेपरता कारोबार करने वाले आयातकों पर लगाम लगाने के पुख्ता उपाय करने होंगे।

सूत्रों ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि जो देश, अपनी 70 प्रतिशत खाद्यतेल की आवश्यकता के लिए आयात पर निर्भर हो, उस देश में देशी तिलहन उत्पादन की बाजार में खपत नहीं हो पा रहा। हकीकत यह है कि सस्ते आयातित तेलों की देश में बाढ़ के बीच अधिक लागत के कारण देशी तेलों के भाव ऊंचा होने से देशी तेल तिलहन बाजार में खप नहीं पाते और किसानों के पास बचे रह जाते हैं जिन्हें जरुरत के वक्त मजबूरन औने पौने दाम पर अपनी उपज मंडियों में बेचना पड़ता है।
उसने कहा कि किसानों के पास पिछले साल का मूंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी का लाखों टन का स्टॉक बचा है जो सस्ते आयात की वजह से बाजार में खप नहीं रहे। इसके लिए सरकार को आयातित तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाकर देशी तेलों के भाव को प्रतिस्पर्धी बनाना होगा ताकि स्थानीय किसानों की आय को बढ़ाया जा सके।

इसके अलावा देश में खाद्य तेलों में ‘ब्लेंडिंग’ की छूट को खत्म करने से भी देशी तिलहन उत्पादक किसानों को फायदा होगा क्योंकि ‘ब्लेंडिंग’ की आड़ में आयातित तेलें तो यहां खप जाती है और देशी तिलहनें बाजार में नहीं खपने के कारण किसानों के पास पड़ी रह जाती है। उन्होंने कहा कि तिलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के रास्ते में यह पहलु एक बड़ा रोड़ा है जिससे जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को इस महत्वपूर्ण पहलु की ओर भी ध्यान देना चाहिये कि जब पिछले लगभग 10 साल में किसानों के खेती की लागत बढ़ने के कारण तिलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में जिस रफ्तार से वृद्धि की गई है और ऐसा करना किसानों के लिए अच्छा भी है, सरकार को उसी हिसाब से तेल कीमतों में भी वृद्धि करना चाहिये लेकिन तेल कीमतें पिछले 10 साल में अपेक्षाकृत काफी कम बढ़ी हैं।
उसने कहा कि देशी तेलों का उपयोग बढ़ने से स्थानीय तेल मिलें पूरी क्षमता से काम कर सकेंगी, देशी तेलों की खपत बढ़ेगी, किसानों को फायदा होगा और उनकी ऊपज बाजार में आसानी से खपेंगे।
तिलहन की आगामी फसल आने में लगभग सात से आठ महीने की देर है और नाफेड पूरी सोच समझ के साथ बाजार में सरसों की सीमित मात्रा में बिकवाली कर रही है। लॉकडाऊन में स्वास्थ्य के लिए सजग उपभोक्ताओं में सरसों तेलों, विशेषकर सरसों कच्ची घानी की खपत बढ़ी है।

सस्ते आयातित तेलों की आवक बढ़ने के बावजूद सरसों दाना, सरसों दादरी तथा सरसों पक्की और कच्ची घानी तेलों की कीमतें क्रमश: 5,085-5,135 रुपये क्विन्टल, 10,280 रुपये क्विन्टल तथा 1,585-1,725 रुपये और 1,695-1,815 रुपये प्रति टिन पर अपरिवर्तित रहीं।
किसानों के पास पहले के बचे स्टॉक और सस्ते आयात के बढ़ने की वजह से मांग प्रभावित होने के कारण मूंगफली तिलहन और मूंगफली तेल गुजरात की कीमत में क्रमश: 25 रुपये और 30 रुपये प्रति क्विन्टल तथा मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल में 25 रुपये प्रति टिन की गिरावट आने से भाव क्रमश: 4,550-4,600 रुपये, 11,920 रुपये और 1,755-1,815 रुपये क्विंटल रहे।
पिछले महीने देशी तेलों में ‘ब्लेंडिंग’ के लिए सोयाबीन डीगम तेल का रिकॉर्ड आयात होने तथा किसानों के पास पहले का भारी स्टॉक बचा होने के साथ ही आगामी पैदावार बम्पर रहने की उम्मीद के बीच सोयाबीन दाना और लूज के भाव क्रमश: 10 -10 रुपये गिरकर क्रमश: 3,605-3,630 रुपये और 3,340-3,405 रुपये क्विन्टल पर बंद हुए। जबकि सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल क्रमश: 9,250 रुपये, 9,100 रुपये और 8,220 रुपये प्रति क्विन्टल पर अपरिवर्तित रहे।
विदेशों में मांग न होने, जरुरत से ज्यादा आयात बढ़ने तथा भाव ऊंचा बोले जाने के कारण समीक्षाधीन सप्ताहांत में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) कीमत 50 रुपये सुधरकर 7,450-7,500 रुपये क्विन्टल हो गये। जबकि पामोलीन आरबीडी दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल की कीमतें पिछले सप्ताहांत के स्तर पर ही बंद हुईं।
स्थानीय मांग के कारण पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बिनौला मिल डिलीवरी हरियाणा तेल की कीमत 80 रुपये के सुधार के साथ 8,180 रुपये क्विन्टल पर बंद हुई।


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