महामारी के बाद की भारत की वृद्धि में शहरों की भूमिका महत्वपूर्ण: डब्ल्यूईएफ अध्ययन

Edited By PTI News Agency,Updated: 10 Jan, 2021 03:08 PM

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नयी दिल्ली, 10 जनवरी (भाषा) कोविड-19 महामारी का शहरों पर ज्यादा असर हुआ है। लेकिन इस संकट के बाद वृद्धि के लिहाज से इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनका योगदान करीब 70 प्रतिशत है। एक नये अध्ययन में यह...

नयी दिल्ली, 10 जनवरी (भाषा) कोविड-19 महामारी का शहरों पर ज्यादा असर हुआ है। लेकिन इस संकट के बाद वृद्धि के लिहाज से इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनका योगदान करीब 70 प्रतिशत है। एक नये अध्ययन में यह कहा गया है।
जिनेवा स्थित विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि हर एक मिनट में 25 से 30 लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं।

डब्ल्यूईएफ ने कहा, ‘‘अनुमान के अनुसार, भारत के जीडीपी का 70 प्रतिशत हिस्सा शहरों से आता है और हर एक मिनट में 25 से 30 लोग गांवों से शहरों की तरफ पलायन करते हैं। हालांकि, भारत के ज्यादातर बड़े शहरों में आर्थिक विषमता काफी ज्यादा है और झुग्गी झोपड़ी बस्तियों के बढ़ने के साथ ही बड़ी संख्या में शहरी गरीब आबादी बढ़ी है।’’
अध्ययन के अनुसार तमाम शहरी परिवारों का 35 प्रतिशत यानी करीब 2.5 करोड़ परिवार बाजार मूल्य पर मकान लेने की स्थिति में नहीं हैं। यह समय एक नया शहरी प्रतिमान बनाने का है जो शहरों को स्वस्थ, अधिक समावेशी और सुदृढ़ बनाये।

‘महामारी के बाद की दुनिया में भारतीय शहर’ शीर्षक से जारी डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में शहरी चुनौतियां, महामारी के बाद और अधिक बढ़ गई हैं। यह रिपोर्ट महामारी से मिले सबक को शहरी सुधार के एजेंडे में बदलने के लिए दृष्टिकोण प्रदान करती है।

महामारी का प्रभाव विभिन्न आबादी वाले समूह पर गहरा और भिन्न रहा है। वंचित तबकों समेत कम आय वाले प्रवासी श्रमिकों को दोहरा झटका लगा। एक तरफ उनकी आय प्रभावित हुई जबकि दूसरी तरफ सामाजिक सुरक्षा का दायरा कमजोर हुआ। साथ ही देश के शहरी इलाकों में महामारी के कारण सार्वजनिक और निजी जीवन में स्त्री-पुरूष असमानता भी बढ़ी है।

यह रिपोर्ट मुंबई स्थित आईडीएफसी संस्थान के साथ मिलकर तैयार की गयी है। इसमें प्रमुख वैश्विक और भारतीय शहरी विशेषज्ञों के विचारों को शामिल किया गया है। ये विशेषज्ञ नियोजन, आवास, परिवहन, पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों से जुड़े हैं।
रिपार्ट में विभिन्न जानकारियों, आंकड़ों के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। इसमें कहा गया है कि यह शहरों को संकट के दौरान आपात परिचालनों के प्रबंधन और उसे बनाये रखने में मदद कर सकता है।

डब्ल्यूईएफ ने कहा, ‘‘हालांकि, आंकड़ा अकेले सभी समस्या का हल नहीं है। शहरों की क्षमता का पूर्ण रूप से उपयोग करने के लिए सशक्त और सक्षम राजकाज, शहरी अर्थव्यवस्थाओं को गति देने के लिये परिवहन और बुनियादी ढांचे में निवेश और पुराने नियोजन मानदंडों तथा नियमों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

इसमें सिफारिशों के तहत कहा गया है कि पुराने शहरी नियोजन नियमन पर पुनर्विचार की जरूरत है जो शहरों को बेहतर, परिवहन अनुकूल और हरित बनाएगा।
इसके अलावा, इसमें कम लागत में सस्ते मकान बनाने को लेकर आपूति संबंधी बाधाओं के समाधान का सुझाव दिया गया है। साथ ही श्रमिकों की गतिशीलता के लिये किराया मकान के बाजार को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की गयी है।

इसके अलावा अध्ययन में परिवहन समाधान में निवेश करने और बेहतर पर्यावरण के लिये कार्यों को प्राथमिकता देने का भी सुझाव दिया गया है।
विश्व आर्थिक मंच की कार्यकारी समिति के सदस्य और भारत और दक्षिण एशिया के प्रमुख विराज मेहता ने कहा, ‘‘बेहतर रूप से तैयार और संचालित शहर एक गतिशील केंद्र बन सकते हैं। ये शहरें नवप्रवर्तन को गति देंगे, आर्थिक उत्पादकता को बढ़ाएंगे तथा नागरिकों को बेहतर जीवन उपलब्ध करा पाएंगे। महामारी शहरी चुनौतियों के समाधान और सकारात्मक दीर्घकालीन बदलाव के लिये एक अवसर है।’’

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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