दिवाला समाधान योजना से बाहर के बकाया सरकारी/सांविधिक शुल्क समाप्त माने जाएंगे: न्यायालय

Edited By PTI News Agency,Updated: 13 Apr, 2021 11:04 PM

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नयी दिल्ली, 13 अप्रैल (भाषा) उच्चम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि रुग्ण कंपनियों पर केंद्र, राज्यों तथा कर प्राधिकरणों के बकाया शुल्क और सांविधिक देनदारियां अगर ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) प्रक्रिया के तहत...

नयी दिल्ली, 13 अप्रैल (भाषा) उच्चम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि रुग्ण कंपनियों पर केंद्र, राज्यों तथा कर प्राधिकरणों के बकाया शुल्क और सांविधिक देनदारियां अगर ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) प्रक्रिया के तहत इकाई को पटरी पर लाने की मंजूरी प्राप्त समाधान योजना का हिस्सा नहीं हैं, तो वे समाप्त माने जाएंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि आईबीसी का मकसद कंपनी को कर्ज से उबारना और उसे परिचालन में बनाये रखना है। साथ ही कर और अन्य प्राधिकरण ऐसी कंपनियों से अपने बकाये के भुगतान की मांग जारी रखते हुए जो ‘बदमाशी’ करते हैं, उससे ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे समाधान योजना आगे नहीं बढ़ पाती। यह कानून इसका भी समाधान करता है।
न्यायाधीश आर एफ नरीमन, न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायाधीश हृषिकेश राय की पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के विभिन्न आदेशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर विचार करने के बाद अपने निर्णय में कहा कि 2019 में आईबीसी के प्रावधान में संशोधन की प्रकृति संदेह को दूर करने और चीजों को स्पष्ट करने से जुड़ी है। इसीलिए यह 2016 से आईबीसी के प्रभाव में आने के समय से प्रभावी होगा।
आईबीसी की धारा 31 में 2019 में किये गये संशोधन के तहत किसी भी कानून के अंतर्गत आने वाले बकाये के भुगतान के संबंध में कोई ऋण, जिसमें केंद्र सरकार, किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी का बकाया हो, अगर अनुमोदित समाधान योजना का एक हिस्सा नहीं बनता है, वह समाप्त हो जाएगा।

फैसला लिखने वाले न्यायाधीश गवई ने कहा, ‘‘निर्णय देने वाले उचित प्राधिकरण द्वारा समाधान योजना की विधि के अनुसार मंजूरी मिल जाती है...समाधान योजना में उपलब्ध दावे बने रहेंगे और कंपनियों, कर्जदारों तथा उसके कर्मचारियों, सदस्यों, केंद्र सरकार, कोई राज्य सरकार या अन्य किसी स्थानीय प्राधिकरण समेत ऋणदाताओं, गारंटी देने वालों एवं अन्य पक्षों पर बाध्यकारी होंगे।’’
कुल 139 पृष्ठ के आदेश में कहा गया है कि समाधान योजना की मंजूरी के दिन से जो भी दावे उसका हिस्सा नहीं रहे हैं, वह खत्म हो जाएंगे और कोई भी व्यक्ति उस दावे के संदर्भ में कार्यवाही शुरू करने या जारी रखने का हकदार नहीं होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘अत: केंद्र सरकार, कोई राज्य सरकार या कोई स्थानीय प्राधिकरण का सांविधिक बकाया समेत कोई भी बकाया अगर समाधान योजना का हिस्सा नहीं है, वह खत्म हो जाएगा। और इसको लेकर...कार्यवाही जारी नहीं हो सकती।’’
शीर्ष अदालत के सामने यह सवाल था कि क्या केंद्र या राज्य सरकारों या उनके प्राधिकरण समेत कोई भी कर्जदाताता समाधान योजना की विधि सम्मत मंजूरी के बाद उससे बंधे है।

दूसरा मामला यह था कि क्या समाधान योजना की मंजूरी के बाद कर्जदाता कोई अन्य बकाया को लेकर कर्जदार कंपनी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने की हकदार है, जो उचित प्राधिकरण द्वारा मंजूरी समाधान योजना का हिस्सा नहीं है।

न्यायालय ने 2019 में आईबीसी प्रावधान में संशोधन के इरादे का जिक्र किया। उसने कहा कि इसका मकसद उन कुछ कर्जदाताओं की ‘बदमाशी’ को रोकना है जो समाधान योजना की मंजूरी के बाद रुग्ण कंपनियों से बकाये की मांग करते हैं।
न्यायालय का यह फैसला घनश्याम मिश्रा एंड संस प्राइवेट लि. की एडलवाइस एसेट रिकंसट्रक्शन कंपनी लि. के खिलाफ याचिका समेत विभिन्न याचिकाओं पर आया।



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