सीबीआई ने 156 करोड़ रुपये के हीरा आयात मामले में हांगकांग से मदद को अनुरोध पत्र भेजा

Edited By PTI News Agency,Updated: 16 May, 2022 06:15 PM

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नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने हांगकांग को एक न्यायिक अनुरोध भेजकर कालाधन छिपाने के लिए हीरा आयात का बढ़ा हुआ बिल मंगवाने वाले एक आपराधिक गिरोह की जांच में सहायता मांगी है। इस गिरोह ने 156 करोड़ रुपये मूल्य के...

नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने हांगकांग को एक न्यायिक अनुरोध भेजकर कालाधन छिपाने के लिए हीरा आयात का बढ़ा हुआ बिल मंगवाने वाले एक आपराधिक गिरोह की जांच में सहायता मांगी है। इस गिरोह ने 156 करोड़ रुपये मूल्य के आयात बिल तैयार करवाए थे।
सीबीआई ने हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के न्याय सचिव को भेजे गए अनुरोध पत्र में इस मामले की जांच में मदद मांगी है। सीबीआई ने जांच के दौरान चिह्नित किए गए लेनदेन और खातों के बारे में विवरण मुहैया कराने में मदद मांगी है।

सीबीआई ने हांगकांग को अनुरोध भेजने के लिए गृह मंत्रालय से मंजूरी मांगी थी। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 166 ए के तहत यह मंजूरी मिलने के बाद आवेदन को मुंबई की एक विशेष अदालत में जमा किया गया। इस अदालत ने ही सीबीआई को न्यायिक अनुरोध करने का आदेश दिया था।

न्यायिक अनुरोध पत्र के जरिये एक देश की अदालत से दूसरे देश में मामले की जांच में सहायता की मांग की जाती है।
एजेंसी ने जनवरी, 2020 में मुंबई के तीन वरिष्ठ सीमा शुल्क अधिकारियों सहित 17 लोगों एवं कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उनपर 156 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के बिल वाले हीरे का आयात कर कालेधन को छिपाने वाले रैकेट का हिस्सा होने का आरोप है।

सीबीआई अधिकारियों ने कहा कि आयात किए गए हीरे के बिल बढ़ा-चढ़ाकर बनाए गए थे। हीरे हांगकांग से आयात किए गए थे। लिहाजा लेनदेन से जुड़ा ब्योरे मुहैया कराने में उससे मदद मांगी गई है। हालांकि, मांगी गई जानकारी का ब्योरा देने से सीबीआई ने मना कर दिया।

राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई) की जांच में इस साजिश में सीमा शुल्क विभाग के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता पाए जाने के बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। डीआरआई ने कहा था कि हांगकांग के व्यवसायी गिरीश कदेल ने अपनी चार कंपनियों के नाम पर स्विट्जरलैंड से हांगकांग में कच्चे हीरे आयात किए थे।

कदेल ने इनमें से कुछ हीरे दो कंपनियों के नाम से 14 खेपों में भारत भेजे थे जिसका मूल्य 156.28 करोड़ रुपये से अधिक था। जबकि डीआरआई ने जांच में पाया था कि निर्यात खेप की असली कीमत सिर्फ 1.03 करोड़ रुपये थी।



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