Edited By PTI News Agency,Updated: 20 Jun, 2022 09:24 PM
नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) कई क्षेत्रों में इंटरनेट-आधारित आर्थिक गतिविधियों के कुछ कंपनियों तक ही सिमटकर रह जाने पर चिंता जताते हुए सरकार ने सोमवार को कहा कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और उन्हें शोषण से बचाने की जरूरत है।
नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) कई क्षेत्रों में इंटरनेट-आधारित आर्थिक गतिविधियों के कुछ कंपनियों तक ही सिमटकर रह जाने पर चिंता जताते हुए सरकार ने सोमवार को कहा कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और उन्हें शोषण से बचाने की जरूरत है।
सरकार ने ऑनलाइन लेनदेन से संबंधित उपभोक्ता शिकायतें बढ़ने का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले महीने राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) पर पंजीकृत कुल शिकायतों में से 38-40 प्रतिशत ई-कॉमर्स व्यापार से संबंधित थीं।
खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने प्रभावी और त्वरित उपभोक्ता विवाद निवारण पर आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि उपभोक्ता आयोग ही उन उपभोक्ताओं के लिए एकमात्र आशा की किरण है। उन्होंने कहा कि लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और न्याय मिलने में देरी चिंता का कारण है जिससे ‘‘सामूहिक प्रयास’’ से निपटने की आवश्यकता है।
गोयल ने सुझाव दिया कि सुनवाई स्थगन की संख्या को कम करने, जिला अदालतों में बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, मध्यस्थता को बढ़ावा देने, ई-फाइलिंग और ई-निपटान से लंबित मामलों को कम करने में मदद मिलनी चाहिए।
इस अवसर पर उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि इंटरनेट आधारित आर्थिक गतिविधियों के बढ़ते केंद्रीकरण के बीच उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा में उपभोक्ता अदालतों की बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा, ‘‘इस केंद्रीकरण के साथ बड़ी कंपनियों की ताकत बढ़ रही है और उपभोक्ताओं के प्रति शक्ति का असंतुलन है।’’
उन्होंने कहा कि इंटरनेट के आने पर यह सोचा गया था कि इससे लोकतंत्रीकरण और विकेंद्रीकरण होगा लेकिन आज सभी आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे केंद्रित हो चली हैं। उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स, टैक्सी परिचालक कंपनियों, खाद्य एवं पेय व्यवसाय में दो-तीन प्रमुख कंपनियां ही रह गई हैं। इसी तरह दूरसंचार सेवाओं में भी चार प्रमुख कंपनियां हैं।
सचिव ने कहा कि प्रमुख कंपनियों के बढ़ते शक्ति असंतुलन को कम करने और उपभोक्ताओं के हितों को बचाने के लिए उपभोक्ताओं के साथ मजबूती से खड़ा होना जरूरी है ताकि उपभोक्ताओं को धोखा न दिया जाए और उनके अधिकारों का उल्लंघन न हो। इसमें उपभोक्ता आयोगों की भूमिका अहम है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल ने कहा कि लंबित मामलों के लिए न्यायाधीशों की अपर्याप्त संख्या, उपभोक्ता मंचों में रिक्त पदों को भरने में देरी, संसाधनों और जनशक्ति की कमी, मामूली आधारों पर वकीलों द्वारा किए गए अनावश्यक स्थगन आदि प्रमुख कारण हैं।
उन्होंने कहा कि 31 मार्च, 2022 तक राष्ट्रीय, राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों में कुल निपटान दर 89 प्रतिशत होने के बावजूद करीब छह लाख मामले लंबित थे।
कार्यशाला में उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और अतिरिक्त सचिव निधि खरे भी मौजूद थीं।
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