जेएनयू अपने परिसर में ढाबा व कैंटीन के खिलाफ नहीं, लेकिन उन्हें नियमों का पालन करना होगा:कुलपति

Edited By PTI News Agency,Updated: 07 Jul, 2022 05:54 PM

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नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा अपने परिसर में स्थित कई ढाबों और कैंटीन को जगह खाली करने के लिए नोटिस दिये जाने के कुछ दिनों बाद कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन...

नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा अपने परिसर में स्थित कई ढाबों और कैंटीन को जगह खाली करने के लिए नोटिस दिये जाने के कुछ दिनों बाद कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन यहां इस तरह के प्रतिष्ठानों के खिलाफ नहीं है लेकिन उन्हें नियमों का पालन करना होगा और अपने-अपने बिल का भुगतान करना होगा।

उन्होंने कहा कि परिसर में संचालित हो रहे इस तरह के प्रतिष्ठानों के मालिक ‘अवैध रूप से काबिज’ हैं जिन्होंने वर्षों से अपना किराया या बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय उन्हें अपना बकाया किस्तों में चुकाने की अनुमति देने को तैयार है।
कुलपति ने बुधवार को पीटीआई-भाषा को दिये एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हम सिर्फ इसे कानूनी रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। हम आपसे कहना चाहते हैं कि आप किराया और बिजली बिल का भुगतान करें। लेकिन वे कुछ भी भुगतान करना नहीं चाहते हैं। वे हर चीज मुफ्त में चाहते हैं। ’’
पिछले महीने विश्वविद्यालय ने परिसर में स्थित कई कैंटीन और ढाबा मालिकों को जगह खाली करने का नोटिस भेज कर उनसे 27 जून तक किराया अदा करने और 30 जून तक परिसर खाली करने को कहा था। हालांकि, विश्वविद्यालय ने अब तक इन प्रतिष्ठानों के मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।
पंडित ने इन ढाबों के स्वामित्व और वहां कार्यरत श्रमिकों से जुड़ी अस्पष्टता को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि किसी भी कैंटीन या ढाबा के मालिक, जिन्हें नोटिस जारी किया गया है, आवंटन की उपयुक्त प्रक्रिया से नहीं गुजरे थे।

कुलपति ने कहा, ‘‘ये सब अवैध ढाबे हैं। कोई भी व्यक्ति समिति (जेएनयू परिसर विकास समिति) की प्रक्रिया से नहीं गुजरा। उनसे कहिये कि वे मुझे मालिकाना हक का दस्तावेज दिखाएं। हालांकि, यह सरकार की संपत्ति है। ’’
अधिकारियों के मुताबिक, परिसर में दुकानों का आवंटन जेएनयू परिसर विकास समिति (सीडीसी) द्वारा किया जाता है।
कुलपति ने इन प्रतिष्ठानों में साफ-सफाई और वहां बाल मजदूरी या बंधुआ मजदूरी को लेकर भी चिंता जताई।
उन्होंने जोर देते हुए कहा, ‘‘ढाबा बेहद गंदे हैं। उन्होंने बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है। वे पानी के बिल का भुगतान नहीं करते। मेरे पास प्रतिवर्ष 36 करोड़ रुपये का बिजली बिल आ रहा है, कौन भुगतान करेगा। ’’
उन्होंने इस बात का जिक्र किया, ‘‘मैं यहां काम करने वाले किसी श्रमिक के बारे में नहीं जानती--मैं नहीं जानती कि वे बाल मजदूर या बंधुआ मजदूर रखे हुए हैं। हम कुछ नहीं जानते। ’’
विश्वविद्यालय प्रशासन के नोटिस से कैंटीन के संचालक दहशत में हैं, जिनका कहना है कि वे बकाया चुकाने की स्थिति में नहीं हैं और उनकी आजीविका पूरी तरह से खत्म होने का खतरा है।
यह पूछे जाने पर कि बिल लाखों रुपये में है और ढाबा मालिक इसे लेकर चिंतित हैं कि वे इसे नहीं चुका सकते, कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय उन्हें किस्तों में भुगतान करने की अनुमति देने को तैयार है लेकिन उन्होंने अब तक नोटिस के जवाब नहीं दिये हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि मैं सचमुच में उन्हें परिसर से बाहर निकालना चाहती तो मैंने 30 जून तक ऐसा कर दिया होता। मैंने पुलिस बुलाई होती और उन्हें निकाल दिया होता।’’
कुलपति ने कहा, ‘‘मेरा सवाल यह है कि आप (ढाबा/कैंटीन मालिक) जेएनयू के कानून का पालन क्यों नहीं करते? हम आपके यहां होने के खिलाफ नहीं हैं। हम उन्हें व्यवस्थित करना चाहते हैं। उन्हें भुगतान करना शुरू करने दीजिए। उन्होंने अब तक एक पैसा भी भुगतान नहीं किया है। हम उन्हें किस्तों में रकम अदा करने की अनुमति देने को तैयार हैं। ’’


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