न्यायालय ने सभी राज्यों के विद्युत नियामक आयोग को शुल्क दरें तय करने के नियम बनाने को कहा

Edited By PTI News Agency,Updated: 23 Nov, 2022 09:11 PM

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नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सभी राज्यों के बिजली नियामक आयोग को कानून के तहत तीन महीने के भीतर विधान बनाकर बिजली दरें तय करने के नियम और शर्तें तय करने को कहा।

नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सभी राज्यों के बिजली नियामक आयोग को कानून के तहत तीन महीने के भीतर विधान बनाकर बिजली दरें तय करने के नियम और शर्तें तय करने को कहा।

न्यायालय ने यह निर्देश एक फैसले में दिया जिसमें उसने टाटा पावर कंपनी लिमिटेड ट्रांसमिशन (टीपीसी-टी) की अपील खारिज कर दी। कंपनी ने बिजली अपीलीय न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की थी। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में अडाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई इन्फ्रा लि. (एईएमआईएल) को बिजली पारेषण का लाइसेंस दिये जाने के निर्णय को बरकरार था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम सभी राज्यों के विद्युत विनियामक आयोग को बिजली कानून की धारा 181 के तहत फैसले की तारीख से तीन महीने के भीतर शुल्क दर निर्धारित करने के नियम एवं शर्त को लेकर विधान बनाने का निर्देश देते हैं।’’
न्यायालय ने कहा कि बिजली दरों के निर्धारण पर दिशानिर्देश तैयार करने में आयोग धारा 61 की बातों को ध्यान में रखेगा, जिसमें एनईपी (राष्ट्रीय बिजली नीति) और एनटीपीसी (राष्ट्रीय शुल्क नीति 2006) भी शामिल है।

अडाणी समूह की कंपनी को राहत देते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश ए एस बोपन्ना तथा न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने कहा, ‘‘एमईआरसी (महाराष्ट्र राज्य विद्युत विनियामक आयोग) ने निर्धारित सीमा को अधिसूचित नहीं किया है। ऐसे में एमईआरसी के लिये यह खुला हुआ है कि वह एचवीडीसी (हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट) परियोजना विनियमित शुल्क व्यवस्था (आरटीएम) या फिर शुल्क आधारित प्रतिस्पर्धी बोली (टीबीसीबी) मार्ग के जरिये आवंटित करे।’’
विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण ने 18 फरवरी, 2022 को टाटा की कंपनी टीपीसी-टी की याचिका खारिज कर दी थी। याचिका महाराष्ट्र विद्युत विनियामक आयोग द्वारा 21 मार्च, 2021 को बिजली पारेषण का लाइसेंस अडाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई इन्फ्रा को दिये जाने के खिलाफ दायर की गयी थी।
टाटा की कंपनी का कहना था कि एमईआरसी का अडाणी समूह की कंपनी को लाइसेंस देने का निर्णय शुल्क आधारित प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के अनुकूल नहीं था जो जनहित और वैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है।


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