अन्नाद्रमुक में उठापटक से द्रमुक को फायदा, भाजपा के लिए नयी संभावना

Edited By PTI News Agency,Updated: 11 Jul, 2022 07:28 PM

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चेन्नई, 11 जुलाई (भाषा) तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक में जारी कलह और उठापटक के मद्देनजर जहां सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) चुनावी लिहाज से काफी फायदेमंद स्थिति में है, वहीं फिलहाल हाशिये पर खड़ी भाजपा चुनावी राजनीति में अधिक हिस्सेदारी...

चेन्नई, 11 जुलाई (भाषा) तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक में जारी कलह और उठापटक के मद्देनजर जहां सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) चुनावी लिहाज से काफी फायदेमंद स्थिति में है, वहीं फिलहाल हाशिये पर खड़ी भाजपा चुनावी राजनीति में अधिक हिस्सेदारी की आकांक्षा पाल सकती है।
हालांकि, अन्नाद्रमुक के अधिकतर पार्टी कार्यकर्ता और पदाधिकारी कद्दावर नेता ई.के़ पलानीस्वामी के समर्थन में खड़े दिखते हैं, लेकिन तमिलनाडु के चुनिंदा क्षेत्रा में पार्टी कार्यकर्ताओं के कई धड़ों में निष्कासित नेता ओ पनीरसेल्वम का भी प्रभाव है।
ठीक इसी समय वीके शशिकला, दिवंगत पार्टी दिग्गज जे जयललिता की भरोसेमंद, भी दिवंगत नेता की विरासत पर दावा कर रही हैं। शशिकला ने ऐलान किया है कि पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी, दोनों ही ‘छाया मात्र’ हैं, जबकि वह एक मात्र ‘सच’ हैं। यानी वह खुद को वास्तविक नेता बता रही हैं।
पन्नीरसेल्वम के निष्कासन और अन्नाद्रमुक मुख्यालय में हिंसा के बाद शशिकला का यह बयान आया है। पुदुकोट्टई जिले में अपने समर्थकों को एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने परोक्ष रूप से उन दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी कार्यकर्ता केवल उनके साथ हैं।
शशिकला ने इस बात को रेखांकित किया है कि वह पार्टी नेतृत्व पर काबिज होने की दौड़ में बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि वह अन्नाद्रमुक को एकजुट करके जीत की ओर ले जाएंगी।
शशिकला के साथ उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन, जो एक अलग संगठन के प्रमुख हैं, भी अन्नाद्रमुक समर्थक और द्रमुक विरोधी वोट हासिल करने की दौड़ में हैं। इससे अन्नाद्रमुक के वोट के लिए लड़ने के लिए प्रमुख नेता पलानीस्वामी सहित चार खिलाड़ियों के लिए मैदान खुला हुआ है।
दिनाकरन की अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों में अन्नाद्रमुक का खेल खराब करने का काम किया।
राजनीतिक टिप्पणीकार और कई दशकों तक अन्नाद्रमुक के इतिहासकार दुरई करुणा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि विभाजित अन्नाद्रमुक चुनावी लिहाज से केवल द्रमुक को काफी फायदा पहुंचाने का काम करेगी। अन्नाद्रमुक के मतदाताओं में 'द्रविड़ियन और एमजीआर-अम्मा वोट' शामिल हैं, जो द्रविड़ समर्थक विचारधारा के हैं, लेकिन द्रमुक और उसके नेतृत्व के खिलाफ हैं। अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचंद्रन को प्यार से एमजीआर कहा जाता है।
करुणा ने कहा कि द्रमुक जो पहले ही बहुत मजबूत हो चुकी है, उसने एक दशक बाद राज्य में सत्ता हासिल की और उसे कांग्रेस और वाम दलों सहित कई सहयोगियों का समर्थन प्राप्त है। वर्ष 2019 के बाद से लोकसभा और स्थानीय चुनाव सहित सभी चुनावों में द्रमुक और सहयोगियों ने ठोस जीत हासिल की है।
उन्होंने कहा कि भाजपा, जिसका अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन है, ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली संख्या में संसदीय सीट जीतने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होंने कहा कि एक कमजोर अन्नाद्रमुक भगवा पार्टी के लिए मददगार नहीं साबित होगी, इसलिए एक संयुक्त अन्नाद्रमुक केंद्र में सत्तारूढ़ दल के भी हित में है।
इस बाबत अपनी पार्टी के रुख के बारे में पूछे जाने पर भाजपा की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह अन्नाद्रमुक का आंतरिक मुद्दा है। हमारे पास इस पर टिप्पणी करने के लिए कुछ भी नहीं है।’’
एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि चुनावी गठबंधनों पर सिर्फ चुनाव के समय ही टिप्पणी की जा सकती है। राजनीतिक टिप्पणीकार एम भरत कुमार ने कहा कि विभाजित अन्नाद्रमुक ने द्रमुक को 13 साल के अंतराल के बाद वर्ष 1989 में सत्ता में वापस लाया।
उन्होंने कहा कि अब द्रमुक पहले से ही सत्ता में है और अन्नाद्रमुक में विभाजन का मतलब सत्तारूढ़ दल के लिए चुनावी स्थान को और मजबूत करना होगा।
कुमार ने कहा, ‘‘ वर्ष 2024 तक कोई चुनाव नहीं हैं। इसलिए तत्काल कोई हारा-जीता नहीं है। हालांकि धारणा यही है कि अन्नाद्रमुक में कलह और विखंडन काफी हद तक भाजपा के पक्ष में होगा और पार्टी को अधिक से अधिक द्रमुक विरोधी मत हासिल करने में मदद मिलेगी।’’
यह एक तथ्य यह भी कि के अन्नामलाई के नेतृत्व में भाजपा कई मुद्दों पर द्रमुक सरकार के रुख का विरोध करने के लिए जन केंद्रित मुद्दों के लिए जद्दोजहद कर रही है। इस प्रकार भाजपा द्रमुक समर्थक मतदाताओं का भी विश्वास जीतने के लिए काम कर रही है।
फिलहाल अन्नाद्रमुक पार्टी पर नियंत्रण हासिल करने के लिए कई लड़ाई चल रही है और शशिकला ने नेतृत्व के मुद्दे पर अदालत में याचिकाएं भी दायर की हैं।
कुमार ने कहा, ‘‘जंग का खाका अब स्पष्ट रूप से खींच दिया गया है। यह अब से कानून की अदालत में मुख्य रूप से ओपीएस बनाम ईपीएस होगा। शशिकला अपनी उपस्थिति साबित करने के लिए बेताब तरीके से मैदान में कूद पड़ी हैं।’’ कुमार के मुताबिक आज की आम सभा प्रभावशाली पलानीस्वामी खेमे की ताकत का प्रदर्शन है।



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