जानिए, कलयुग के भगवान शनि देव कैसे देते हैं सुख और दुख

Edited By ,Updated: 02 Sep, 2016 03:43 PM

shani dev

शनि से सुख और दुख शनि की पश्चिम दिशा है, स्वभाव तीक्ष्ण है और गुण तमो है। सूर्य, चंद्र और मंगल शनि के शत्रु हैं। शनि जिस भाव में होते हैं, उससे तीसरे, सातवें

शनि से सुख और दुख 

शनि की पश्चिम दिशा है, स्वभाव तीक्ष्ण है और गुण तमो है। सूर्य, चंद्र और मंगल शनि के शत्रु हैं। शनि जिस भाव में होते हैं, उससे तीसरे, सातवें तथा दसवें भाव पर अपनी दृष्टि डालते हैं।  
 
वायु तत्व प्रधान भगवान कलियुग में भी निष्पक्ष न्याय में विश्वास करने वाले माने जाते हैं और संतुष्ट एवं प्रसन्न होने पर अच्छी किस्मत तथा भाग्योन्नति के साथ अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करके मनवांछित फल प्रदान करते हैं और जातक को न्याय प्रिय, सुखी, संपन्न, अतुलनीय धन-संपदा का स्वामी बना देते हैं। 
 
परंतु शनि के कुपित होने से जीवन में धन का अभाव, कष्ट, मानसिक व शारीरिक रोग जैसे टांगों में दर्द, जोड़ों में दर्द, कैंसर, तपेदिक, दांत व दाढ़ में दर्द, पैरालाइसिस, मानसिक चिंता, तनाव, कलह, दुर्बलता, अकारण विवाद, पदावनति, बनते कार्यों में व्यवधान आदि का सामना करना पड़ सकता है। शनि के वक्री होने पर भी इसके अशुभ फल मिलते हैं। 
शनि का कुप्रभाव कम हो सकता है
नौ ग्रहों में शनि एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसे सबसे क्रूर माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैया का नाम सुनकर अच्छे-भले जातकों पर भी प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। यह सही है कि यदि शनि ग्रह मारकेश या अष्टमेश में हो जाए तो जातक के जीवन में अनिष्ट या अशुभ फल मिलते देखे गए हैं, लेकिन शनि के शुभ ग्रह से युत या दुष्ट होने से शनि की साढ़ेसाती या ढैया जातक पर कम कुप्रभाव देती है। कई बार जातक को लाभ भी मिलता है। 
 
अशुभ प्रभाव निवारण
शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए पक्षियों को दाना चुगाना, अपनी छाया (परछाईं) देख कर शनिवार के दिन तेल का दान , महामृत्युंजय मंत्र का शुद्ध उच्चारण के साथ निष्ठापूर्वक जाप, शनि स्तोत्र का पाठ, प्रत्येक शनिवार को उपवास करके हनुमान जी की उपासना करना सर्वाधिक उपयुक्त माने गए हैं। 
 
लाल चंदन की अभिमंत्रित माला धारण करने, श्रवण नक्षत्र में शनिवार के दिन काले रंग के धागे में शमी की अभिमंत्रित जड़ धारण करने, शनि से संबंधित वस्तुएं यथा तेल, लोहा, काले तिल, कुलथी या काली मसूर की दाल, काला जूता, कस्तूरी, नीलम रत्न आदि दान करने से भी शनि के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।  
 
शनि से संबंधित लघु मंत्र ' ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:’ का निरंतर पूर्ण श्रद्धाभाव से जाप करते रहने से शनि प्रसन्न होते हैं और जातक के दुख व कष्टों का निराकरण होने लगता है। 

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