Edited By ,Updated: 31 Aug, 2016 10:16 AM
सूर्यग्रहण में चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी एक ही सीध में होते हैं और चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच होने की वजह से चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है।
सूर्यग्रहण में चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी एक ही सीध में होते हैं और चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच होने की वजह से चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। सूर्य ग्रहण की खगोलिए घटना अमावस्या के दिन घटित होती है। पूर्ण ग्रहण तब होता है जब खगोलीय पिंड जैसे पृथ्वी पर प्रकाष पूरी तरह अवरुद्ध हो जाए। आंषिक ग्रहण की स्थिति में प्रकाश का स्रोत पूरी तरह अवरुद्ध नहीं होता। पृथ्वी की एक निश्चित भूगौलीक स्थान पर 360 वर्षों तक सूर्य ग्रहण की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती। आंशिक सूर्य ग्रहण धरती की जिस जगह पर लगता है वहां से 3000 मील की दूरी से भी दृष्टिगोचर होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण तब तक दृष्टिगोचर नहीं होता जब तक चांद इसके लगभग 50 प्रतिशत भाग को नहीं ढंक लेता और जब यह 99 प्रतिशत भाग को ढंक लेता है तो सूर्यास्त जैसी स्थिति हो जाती है।
सूर्य ग्रहण से पहले चार पहरों में भोजन नहीं करना चाहिए। केवल वृद्ध जन, बालक और रोगी इस निषेध काल में भोजन कर सकते हैं, उनके लिए भोजन का निषेध नहीं है। ग्रहण काल में अपने आराध्य देव के जपादि करने से अनंतगुणा फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण काल की समाप्ति के पश्चात् गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
क्या करें, क्या नहीं
ग्रहण काल में सूर्य को सीधे न देखें। खुले में खाद्य सामग्री न रखें। संक्रमण व विकिरणों से बचने के लिए तुलसी का प्रयोग करें। ग्रहण लगने से पहले और दो दिन बाद तक के संक्रमण काल में कोई शुभ अथवा अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य, विवाह, निर्माण, नए व्यवसाय का आरंभ नहीं करना चाहिए।
सूतक तथा ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श, अनावश्यक खाना-पीना, संसर्ग आदि से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाएं अधिक श्रम न करें। मान्यता है कि गर्भस्थ शिशु या ग्रहण काल में गर्भवती होने से जन्म लेने वाली संतान पर शारीरिक प्रभाव पड़ता है।
आचार्य कमल नंदलाल
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