जलियांवाला बाग नरसंहार के चश्मदीद गवाह थे सरदार जोध सिंह

Edited By vasudha,Updated: 11 Apr, 2019 03:30 PM

the eyewitnesses of the jallianwala bagh massacre were sardar jodh singh

बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में घटित नरसंहार की घटना के बारे में सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब बिना किसी चेतावनी के खूंखार अंग्रेज कमांडर जरनल डायर ने निर्दोष लोगों को भून दिया था...

अंबालाः बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में घटित नरसंहार की घटना के बारे में सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब बिना किसी चेतावनी के खूंखार अंग्रेज कमांडर जरनल डायर ने निर्दोष लोगों को भून दिया था। इस घटना से तीन दिन पहले 10 अप्रैल को हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों के हाथों कुछ अेग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिए जाने पर ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर की कमान जालंधर बिग्रेड के एक खूंखार कमांडर जनरल डायर को सौंप दी थी। जनरल डायर अमृतसर की गलियों और सड़कों पर मार्च करके अपनी शक्ति प्रदर्शन करते हुए आम जनता के समक्ष घोषणाएं करवा रहा था कि कोई भी शख्स बिना अनुमति शहर से बाहर नहीं जाएगा। रात को आठ बजे के बाद यदि कोई शख्स बाहर गली अथवा बाजार में दिखाई दिया तो उसे गोली मार दी जाएगी। 
PunjabKesari
...जब अपनी फौज लेकर आ धमका जनरल डायर 
जरनल डायर ने यह भी चेतावनी दी कि एक जगह एकत्रित होकर जलसा करने वालों को बिना चेतावनी दिए गोलियों से भून दिया जाएगा। इस तरह की घोषणाएं करते अंगेजों के पिटठू अभी आगे बढ़े ही थे कि सरदार जोध सिंह तथा उनके मौसेरे भाई सोहन सिंह ने कुछ लोगों को यह बातचीत करते हुए सुना कि आज शाम चार बजे जलियांवाला बाग में आजादी के संघर्ष से जुड़ा एक जलसा होने जा रहा है। वो दोनों अमृतसर की संकरी गलियों से गुजरते हुए जलियांवाला बाग के भीतर दाखिल हो गए। लोगों का अच्छा खासा हुजूम वहां एकत्रित हो चुका था। दोनों एक जगह खड़े होकर देशभक्तों के भाषण सुनने लगे। ठीक उसी वक्त जनरल डायर अपनी फौज लेकर वहां आ धमका। उसके साथ आए पचास बदूंकधारी जवानों ने पोजीशन लेकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस तरह के कत्लेआम की कल्पना किसी ने नहीं की थी। बिना चेतावनी जब निरीह जनता को घेर कर उस पर इस तरह गोलियां चलाई गई तो जान बचाने के लिए लोग जिधर भी भाग सकते थे, भागे। 

PunjabKesari

लाशों के ढेर के नीचे दबे जोधसिंह ने अपनी आंखों से देखा नरसंहार
जोध सिंह ने देखा कि उसका मौसेरा भाई सोहन सिंह भी गोली लगने से चीखते हुए नीचे गिर रहा है, जब वे उसकी मदद को आगे बढ़े तो एक गोली उनके कान के पास से दनदनाती हुई निकल गई। उन्होंने बचने के लिए समझदारी से काम लेते हुए खुद को भी सोहन सिंह के साथ नीचे गिरने दिया। उनके नीचे गिरते ही कई अन्य लोग गोलियों का शिकार होकर उन पर गिरते गए। उनमें से कुछ घायल थे और कुछ मरे हुए। चारों ओर हाहाकार मची हुई थी। अगिनत लाशें खून से लथपथ इधर-उधर बिखरी पड़ी थी। अपने मौसेरे भाई के साथ लाशों के ढेर के नीचे दबे दबे सरदार जोध सिंह ने 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में घटी इस भंयकर नरसंहार की घटना को अपनी आंखों से देखा था।

नरसंहार ने दिए एक क्रांतिकारी को जन्म
इस घटना ने उस नवयुवक को एक गंभीर आंदोलनकारी के रूप में परिवर्तित कर दिया और वे आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप कूद पड़े और अंग्रेजों के खिलाफ बगागत का बिगुल बजा दिया। अपने जीवन के दो दशक से ज्यादा का समय तक वह जेल, गांव तथा घर में बंदी रहे। आखिर वक्त ने करवट बदली और अंग्रेजों को देश छोडऩा पड़ा और देश आजाद हुआ। केंद्र तथा हरियाणा सरकार ने ताम्र पत्र तथा फैमिली पेंशन देकर ‘स्वन्त्रतता सेनानी’ के रूप में उन्हें सम्मानित किया।  
PunjabKesari
बेटा भी उन्हीं के पदचिन्हों पर
विभाजन के बाद सरदार जोधसिंह पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर शरणार्थी के रूप में भारत आ गए और जिला नैनीताल के हलद्वानी में कुछ समय व्यतीत करने के बाद अंबाला शहर के पटेल रोड पर कपड़े की दुकान खोल ली जो आज भी बाबे दी हटृी के नाम से उनके बेटे त्रिचोलन सिंह द्वारा संचालित की जा रही है जिसे वे अपने पिता सरदार जोध सिंह की याद में पिछले 60 वर्षों से चला रहे हैं। वृद्ध हो जाने के कारण अब उनका बेटा कंवरजीत सिंह शैली भी उनके पदचिन्हों पर चलते हुए इस काम में उनकी मदद कर रहा है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!