वास्तु संस्कृत भाषा का शब्द है । महान् विद्वान् वामन शिवराम आप्टे द्वारा रचित संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष में वास्तु शब्द का विश्लेषण इस ....
वास्तु संस्कृत भाषा का शब्द है । महान् विद्वान् वामन शिवराम आप्टे द्वारा रचित संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष में वास्तु शब्द का विश्लेषण इस प्रकार बताया गया है । पुल्लिंग, नपुंसकलिंग तथा वस् धातु में तुण प्रत्यय लगकर वास्तु शब्द का निर्माण हुआ है । इसका अर्थ है - घर बनाने की जगह, भवन, भूखण्ड, स्थान, घर, आवास, निवास, भूमि । वस् धातु, तुण प्रत्यय से, नपुंसक लिंग में वास्तु शब्द की निष्पत्ति होती है।
हलायुद्ध कोष के अनुसार:
वास्तु संक्षेपतो वक्ष्ये गृहदो विघ्नाशनम्।
इसानकोणादारम्भ्य हयोकार्शीतपदे प्यज्येत्।।
अर्थात्, वास्तु संक्षेप में इशान्यादि कोण से प्रारम्भ होकर ग्रह निर्माण की वह कला है, जो घर को विघ्न, प्राकृतिक उत्पातों और उपद्रवों से बचाती है।
अमरकोष के अनुसार
गृहरचना वच्छिन्न भूमे।
गृहरचना के योग्य अविछिन्न भूमि को वास्तु कहते हैं। तात्पर्य यह है कि किसी भी प्रकार के भवन निर्माण के लिए उपयुक्त जगह को वास्तु कहते हैं। वास्तु वह विज्ञान है जो भूखण्ड पर भवन निर्माण से लेकर उस निर्माण में उपयोग होने वाली वस्तुओं के बारे में उचित जानकारी देता है।
समरांगणसूत्र अनुसार
समरांगणसूत्र धनानि बुद्धिश्च सन्तति सर्वदानृणाम्।
प्रियान्येषां च सांसिद्धि सर्वस्यात् शुभ लक्षणम्।।
यात्रा निन्दित लक्ष्मत्र तहिते वां विधात कृत्।
अथ सर्व मुपादेयं यभ्दवेत् शुभ लक्षणम्।।
देश पुर निवाश्रच सभा विस्म सनाचि।
यद्य दीदृसमन्याश्रम तथ भेयस्करं मतम्।।
वास्तु शास्त्रादृतेतस्य न स्यल्लक्षणनिर्णयः।
तस्मात् लोकस्य कृपया सभामेतत्रदुरीयते।।
अर्थात्, वास्तुशास्त्र के अनुसार भली-भाँति योजनानुसार बनाया गया घर सब प्रकार के सुख, धन-सम्पदा, बुद्धि, सुख-शांति और प्रसन्नता प्रदान करने वाला होता है और ऋणों से मुक्ति दिलाता है। वास्तु की अवहेलना के परिणामस्वरूप अवांछित यात्राएँ करनी पड़ती है, अपयश दुख निराशा प्राप्त होती है। सभी घर, ग्राम, बस्तियाँ और नगर वास्तुशास्त्र के अनुसार ही बनाए जाने चाहिए। इसलिए इस संसार के लोगों के कल्याण और उन्नति के लिए वास्तुशास्त्र प्रस्तुत किया गया है।
चीन, हांगकांग, सिंगापुर, थाईलैण्ड, मलेशिया आदि देशों में वास्तुशास्त्र को फेंगशुई के नाम से जाना जाता है। लेटिन भाषा में वास्तुशास्त्र को ‘जियो मेशि’ कहा जाता है । तिब्बत में वास्तुशास्त्र को बगुवातंत्र कहते हैं। अरब में इसे रेत का शास्त्र कहते हैं।
वृहत्-संहिता और मत्स्यपुराण में वर्णित वास्तु के आचार्यों के नाम :
प्राचीनकाल के प्रसिद्ध आचार्यों के नाम विश्वकर्मा, भृगु, अत्रि, वशिष्ट, अग्निरुद्ध, मय, नारद, विपालाक्ष, पुरंदरें, ब्रह्मा, कुमार, शौनक, गर्ग, वासुदेव, वृश्पिति, मनु, पराशर, नंदीश्वर, भरद्वाज, प्रहलाद, नग्नजित, अगस्त और मार्कण्डेय हैं। वर्तमान समय में विश्वकर्मा और मय सर्वाधिक चर्चित आचार्य हैं।
वास्तु के प्राचीन ग्रन्थ :
मनसार में 32 वास्तु ग्रन्थों का उल्लेख है उनमें से कुछ ग्रन्थों के नाम इस प्रकार है - समरांगणसूत्रधार, मनुष्यालय-चन्द्रिका, राजवल्लाभम् रूपमण्डम् वास्तु विद्या, शिल्परन्तम, शिल्परत्राकर मयवास्तु, सर्वार्थ शिल्पचिन्तामणि। मयभत, विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र, मानसार, वृहसंहिता, विष्णु धर्मोत्तर, अपराजित पृच्छ, जय पुच्छ, प्रसाद मण्डन, प्रमाण पंजरी, वास्तुशास्त्र, वास्तु मण्डन, कोदण्ड मण्डन, शिल्परत्न, प्रमाण मंजरी आदि। अर्थवेद का उपवेद स्थापात्य वेद को प्राचीनतम वास्तु-शास्त्र में गणना की जाती है। ऋग्वेद में अनेकों स्थान पर वास्तुपति नामक देवता का उल्लेख किया गया है।
- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@yahoo.co.in
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