गोबर से जमीन पोतना बहुत अच्छी बात, मिलता है शुभ लाभ

Edited By ,Updated: 03 Oct, 2016 01:34 PM

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गोबर से विशेषकर गाय के गोबर से घर, आंगन, रसोई आदि की जमीन पोतना हर प्रकार से उत्तम है। इससे हम शुद्धता पाते हैं। टी.बी. के

गोबर से विशेषकर गाय के गोबर से घर, आंगन, रसोई आदि की जमीन पोतना हर प्रकार से उत्तम है। इससे हम शुद्धता पाते हैं। टी.बी. के वायरस और रोगाणु मर जाते हैं। गर्मी का प्रकोप कम होता है। ठंडक महसूस होती है। 


मक्खी, मच्छर या अन्य कीड़े-मकौड़े जो गंदगी छोड़ते हैं वे सब गोबर लीपने से नहीं रहते। गाय के ‘पंच गव्य’ हमारे शरीर के लिए वातावरण के लिए तथा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत उत्तम हैं। पंच गव्य में दूध, दही, मक्खन, घी, गोबर तथा गौमूत्र गिने जाते हैं। इनसे शुद्धता, शक्ति, निरोगता, पवित्रता तथा पर्यावरण सुधरते हैं। धार्मिक दृष्टि से वह स्थान अति पवित्र माना जाता है जहां गाय के गोबर से पुताई की गई है। ऐसे स्थान पर बैठकर कोई भी पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, मंत्रोच्चारण, नाम सिमरन करना अति शुभ माना जाता है जो ईश्वर तथा अन्य देवताओं को सहर्ष स्वीकार हो जाता है। 


वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका महत्व बहुत अधिक है, इसलिए पढ़े-लिखे लोग भी इसे उत्तम मानते हैं और तो और अमेरिका, जर्मनी तथा इटली में भी वैज्ञानिक गोबर से लीपे गए स्थान के महत्व को खूब समझने लगे हैं। वे इसे हाइजीनिक मानते हैं।


ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात लक्ष्मी का वास माना गया है। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी का जो व्यक्ति नित्य तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है। 


जिस घर या मंदिर में गौ माता का निवास होता है उस जगह को साक्षात देवभूमि ही कहा गया है और जिस घर में गौ माता नहीं होती, वहां कोई भी अनुष्ठान व सत्कार्य सफल नहीं होता। जहां गौ माता हो, यदि ऐसे स्थान पर कोई भी व्रत, जप, साधना, श्राद्ध, तर्पण, यज्ञ, नियम, उपवास या तप किया जाता है तो वह अनंत फलदायी होकर अक्षय फल देने वाला हो जाता है।


वेदों में स्पष्ट लिखा है कि गौ रुद्रों की माता और वसुओं की पुत्री है। अदिति पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है। इसलिए र्निलिप्त भाव से पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए व्यक्ति को नित्य गौ माता की सेवा करनी चाहिए। महाभारत कहता है-


यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नर:।
तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च।।


अर्थात सारे यज्ञ करने में जो पुण्य है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल मिलता है वह फल गौ माता को चारा डालने से सहज ही प्राप्त हो जाता है।


 

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