दुनिया में भोजन की बर्बादी का असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा

Edited By ,Updated: 01 Apr, 2024 05:06 AM

the wastage of food in the world is also affecting the environment

भारत समेत कई विकसित और विकासशील देशों में भोजन की बर्बादी एक बड़ी समस्या है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व में कुल जितना भोजन पैदा होता है हम उसका 17 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडैक्स-2024’ के अनुसार विश्व...

भारत समेत कई विकसित और विकासशील देशों में भोजन की बर्बादी एक बड़ी समस्या है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व में कुल जितना भोजन पैदा होता है हम उसका 17 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडैक्स-2024’ के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष एक अरब टन से अधिक भोजन बर्बाद हो जाता है। वर्ष 2022 में विश्व में प्रत्येक व्यक्ति ने प्रतिवर्ष औसतन 79 किलो भोजन बर्बाद किया जबकि अमीर देशों के मुकाबले में गरीब देशों में मात्र 7 किलो भोजन की बर्बादी कम हुई। भोजन की यह बर्बादी अमीर या बड़े देशों तक ही सीमित नहीं, बल्कि छोटे और गरीब देशों में भी लगभग उतने ही भोजन की बर्बादी हो रही है परंतु शहरों की तुलना में गांवों में भोजन की बर्बादी कम है। 

भोजन की यह बर्बादी तब है जब दुनिया भर में प्रतिदिन 78.3 करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं और दुनिया भर में लोगों की एक तिहाई जनसंख्या पर खाद्य संकट मंडरा रहा है। 2022 के दौरान विश्व में 1.05 अरब टन भोजन बर्बाद हो गया। इस हिसाब से जितना भोजन लोगों के लिए उपलब्ध हो सकता था, उसमें से 19 प्रतिशत भोजन बर्बाद हो गया। इस हिसाब से पूरे वर्ष में एक ट्रिलियन डालर अर्थात लगभग 84 लाख करोड़ रुपए का भोजन बर्बाद हो गया। बहुत से लोग विवाह-शादियों या अन्य सभा-समारोहोंं में प्लेटें भर-भर कर भोजन ले तो लेते हैं परंतु थोड़ा-बहुत चखने के बाद उसे कूड़ेदान में डाल देते हैं। यही नहीं, घरेलू जिंदगी में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपनी प्लेट में आवश्यकता से अधिक खाद्य पदार्थ रख लेते हैं और पेट भर जाने के बाद बाकी बचा भोजन कूड़ेदान के हवाले कर देते हैं। 

एक ओर इस तरह के लोग हैं जो जाने-अनजाने में बड़ी मात्रा में भोजन को बर्बाद कर देते हैं और दूसरी ओर कई लोग ऐसे भी हैं जो 2-2, 3-3 दिन भूखे रहते हैं और उन्हें एक समय की रोटी भी नसीब नहीं होती। ‘इंडियन कौंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ (आई.सी.ए.आर.) ने अपनी वर्ष 2022 की रिपोर्ट में लिखा था कि भारत में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन 3 समय की रोटी नसीब नहीं होने के कारण भूखे पेट सोने को मजबूर होते हैं और इनमें से 34 प्रतिशत तो 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं। भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 55 किलो खाना बर्बाद होता है इस हिसाब से भारत में प्रतिवर्ष 7.81 करोड़ टन से अधिक अनाज बर्बाद हो जाता है और भोजन की बर्बादी के मामले में चीन के बाद भारत विश्व में दूसरा देश है। 

वर्ष 2021 में ‘यूनाइटेड नेशन्स एन्वायरनमैंट प्रोग्राम’ और सहयोगी संगठन ‘फूड वेस्ट इंडैक्स’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत में खाने की बर्बादी का आंकड़ा 68,760,163 टन तक पहुंच चुका है जबकि विश्व भर में प्रतिवर्ष 250 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। इसी रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में जितना खाना बर्बाद होता है उससे 3 अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है। सर्वाधिक 61 प्रतिशत खाना घरों में, 23 प्रतिशत रैस्टोरैंटों में और 31 प्रतिशत रिटेल चेन में बर्बाद होता है। जहां तक इस समस्या के समाधान का संबंध है ‘ग्लोबल फूड बैंकिंग नैटवर्क’ की सी.ई.ओ. लिसा मून के अनुसार खाने की बर्बादी को कम करने के लिए फूड बैंक के साथ मिल कर काम किया जा सकता है क्योंकि यह फूड बैंक न सिर्फ निर्माताओं, किसानों, परचून विक्रेताओं और फूड सॢवस सैक्टर के साथ मिल कर काम करते हैं बल्कि वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि खाना जरूरतमंद तक पहुंचे। 

कुछ अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि लोगों को यदि सरकारी नीतियों, मीडिया और स्कूलों के माध्यम से समझाया जाए तो उनकी आदत में सुधार आएगा और वे भोजन को कम नष्ट करेंगे क्योंकि इससे उन्हें यह समझ आता है कि वह जितना भोजन खरीदते या बनाते हैं उसका कितना बड़ा हिस्सा बर्बाद हो रहा है। इसके साथ ही उन्हें यह भी समझाना जरूरी है कि भोजन नष्ट होने के साथ-साथ ही इसके उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले सभी संसाधन पानी, भूमि, ऊर्जा, श्रम और पूंजी सहित बहुत कुछ बर्बाद हो जाता है। अत: भोजन की बर्बादी रोक कर जहां हम पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं वहीं दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों को भूख और कुपोषण से बचाने में भी योगदान दे सकते हैं और पर्यावरण को भी सुरक्षित करते हैं। भोजन की बर्बादी के परिणामस्वरूप ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन 8 से 10 प्रतिशत तक बढ़ गया है। जिन देशों की जलवायु गर्म है वहां खाने की बर्बादी ठंडे देशों की तुलना में कहीं अधिक है। 

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