अमित शाह पर बनेगी बॉयोपिक

Edited By ,Updated: 09 Jun, 2019 03:32 AM

amit shah will set up biopic

शाह सियासत के नए शहंशाह बन कर उभरे हैं, उनके सियासी आभामंडल का हालिया विस्तार इस बात की चुगली खाता है कि उनके इस नए अभ्युदय से भाजपा के कई पुराने सूरमाओं के रंग फीके पड़ गए हैं। अत: आने वाले दिनों में शाह के जीवन पर पुस्तकों और फिल्मों का नया दौर...

शाह सियासत के नए शहंशाह बन कर उभरे हैं, उनके सियासी आभामंडल का हालिया विस्तार इस बात की चुगली खाता है कि उनके इस नए अभ्युदय से भाजपा के कई पुराने सूरमाओं के रंग फीके पड़ गए हैं। अत: आने वाले दिनों में शाह के जीवन पर पुस्तकों और फिल्मों का नया दौर शुरू हो सकता है। शाह से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पहले शाह की एक बॉयोग्राफी मार्कीट में आएगी, फिर बॉयोग्राफी को आधार बना कर एक बॉयोपिक फिल्म के निर्माण की योजना है। इस चुनावी वर्ष में एक के बाद एक कई बॉयोपिक फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर दस्तक दी, सबसे ज्यादा बॉयोपिक और वैब सीरीज प्रधानमंत्री मोदी पर बनीं। पर इनमें से ज्यादा ने बॉक्स ऑफिस सफलता का स्वाद नहीं चखा। 

आंध्र के बड़े नेताओं में शुमार होने वाले एन.टी.आर. यानी नंदमूरी तारक रामा राव पर उनकी ऑफिशियल बॉयोपिक दो खंडों में बनी थी, जिसमें बाहुबली फेम राणा डुग्गुबाती ने चंद्रबाबू का रोल किया और विद्या बालन एन.टी.आर. की पत्नी की भूमिका में नजर आईं। एन.टी.आर. की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के जीवन पर राम गोपाल वर्मा ने एक बॉयोपिक बनाई है, जिसमें चंद्रबाबू को एक खलनायक के तौर पर दिखाया गया है। वर्मा की इस फिल्म ‘लक्ष्मी एन.टी.आर.’ से चंद्रबाबू इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने राज्य का मुख्यमंत्री रहते आंध्र में इस फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी, तब यह फिल्म केवल तेलंगाना में ही रिलीज हो सकी, जहां इन चुनावों में नायडू की पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। जगन मोहन रैड्डी ने भी अपने पिता वाई.एस.आर. रैड्डी के जीवन को उकेरने के लिए एक बॉयोपिक बनवाई ‘यात्रा’। इस फिल्म ने आंध्र के लोगों के मन में राजशेखर रैड्डी की यादें ताजा कर दीं, नतीजन यह फिल्म भी आंध्र के चुनावी नतीजों की तरह जगन को हिट दे गई। 

ममता बनर्जी के जीवन से प्रेरित फिल्म ‘बाघिन’ पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी थी। तेलंगाना में वहां के मुख्यमंत्री के.सी.आर. के जीवन पर बनी बॉयोपिक रिलीज होने से पहले ही डिब्बे में बंद हो गई, कहते हैं ऐसा के.सी.आर. ने अपने ज्योतिषी के कहने पर किया। जयललिता के जीवन पर तीन बॉयोपिक बन रही हैं। राहुल गांधी पर भी ‘माई नेम इज रागा’ आने वाली है। बाल ठाकरे के जीवन पर बनी फिल्म ‘ठाकरे’ पहले ही रिलीज हो चुकी है। नितिन गडकरी के जीवन पर बन रही फिल्म ‘गडकरी’ भी चर्चा में है, जिसे नागपुर के ही रहने वाले अनुराग भासुरी बना रहे हैं। अमित शाह की बॉयोग्राफी आने वाले एक-दो महीनों में बाजार में आ सकती है, इसके बाद ही इस पर बॉयोपिक बनाने का काम शुरू हो सकता है। 

राजनाथ के समर्थन में आया संघ
यूं भी राजनाथ सिंह अपनी शालीन राजनीति के लिए जाने जाते हैं, पर जब पानी हद से ज्यादा गुजर जाए तो वह अपने अंदाज में हाथ-पांव मारते हैं। गुरुवार को जब 8 मंत्रिमंडलीय समितियों के गठन की घोषणा हुई तो उनमें से 6 में राजनाथ का कोई अता-पता नहीं था। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि बात यहां तक बिगड़ी कि इस ठाकुर नेता ने अपने पद से इस्तीफे की धमकी तक दे डाली। कहते हैं इसके बाद संघ का शीर्ष नेतृत्व हरकत में आया, सूत्रों की मानें तो मोहन भागवत के कहने पर संघ के नम्बर दो भैयाजी जोशी ने इस बारे में सीधे प्रधानमंत्री से बात की। उसके बाद आनन-फानन में कई कमेटियों में राजनाथ का नाम शामिल किया गया, पी.एम. आवास में देर रात तक चली बैठक में उन्हें शाह की जगह पार्लियामैंट्री अफेयर कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अत: राजनाथ ने भी अपने तेवर दिखाते हुए संसदीय कमेटी की पहली बैठक संसद भवन में बुलाने की बजाय इस शुक्रवार को अपने सरकारी आवास 17, अकबर रोड पर बुला ली। 

कायदे से यह बैठक लोकसभा के नए स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और प्रो टैम स्पीकर के नाम को तय करने को लेकर थी। इसमें शिवसेना की उस मांग पर भी विचार होना था जिसमें वे अपने लिए लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद मांग रहे हैं। इस बैठक में शामिल होने के लिए अमित शाह तो राजनाथ के निवास पर पहुंच गए, पर इस कमेटी के कई अन्य सदस्य बैठक से नदारद थे, मसलन-निर्मला सीतारमण, प्रकाश जावड़ेकर, थावर चंद गहलोत और रामविलास पासवान। हां, दो अन्य मंत्रीगण मुख्तार अब्बास नकवी और धर्मेन्द्र प्रधान की वहां उपस्थिति यकीनन चौंकाने वाली थी क्योंकि ये दोनों मंत्री उस संसदीय कमेटी के सदस्य भी नहीं हैं। भगवा सियासत में खींचतान का यह क्रम नई सियासी संभावनाओं को जन्म दे सकता है क्योंकि आधिकारिक तौर पर भले ही राजनाथ सिंह को मोदी सरकार में नम्बर दो का दर्जा हासिल हो, पर अब तो यह बात छुपी नहीं रह गई है कि मोदी सरकार 2.0 का असली नम्बर दो कौन है क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह नवगठित आठों मंत्रिमंडलीय कमेटियों में शामिल एक सर्वमान्य चेहरा हैं। 

अब संघ खोलेगा मदरसा
इस बार मोदी सरकार को बम्पर जीत दिलाने में संघ की कितनी महत्ती भूमिका थी, यह बात किसी से छुपी नहीं रह गई। कभी संघ भाजपा का चाल, चरित्र, चेहरा बदलने को कृतसंकल्प था, आज वह खुद को बदलने की कवायद में जुटा है। संघ से जुड़े विश्वस्त सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो अपने एकल विद्यालय की सफलता से उत्साहित संघ मुस्लिम बच्चों में शिक्षा का दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए मदरसों की शुरूआत करने जा रहा है। 

सूत्र बताते हैं कि इसकी शुरूआत देहरादून से होने जा रही है। सनद रहे कि उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत घोषित तौर पर संघ के अनन्य उपासकों में शुमार रहे हैं। इसके बाद बिहार का नम्बर आने वाला है। जहां मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी बसर करती है। सूत्रों की मानें तो वैसे भी संघ प्रमुख मोहन भागवत और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते बहुत मधुर हैं। जब बिहार में राजद का शासनकाल था तो राज्य के एक एम.एल.सी. ने नीतीश से भागवत की बात कराई थी और धीरे-धीरे इन दोनों की मित्रता प्रगाढ़ होती चली गई। सिर्फ नीतीश ही क्यों, संघ प्रमुख के कई विपक्षी नेताओं से बहुत अच्छे रिश्ते हैं, जैसे शरद पवार और प्रणव मुखर्जी। द्रमुक प्रमुख रहे करुणानिधि जब तक जीवित थे, भागवत से वह लम्बी बातें किया करते थे। अत: संघ की नई रणनीति में अब मुस्लिम समुदाय का दिल जीतना है। 

क्या खुद को बदलेगी कांग्रेस
इस लोकसभा चुनाव में मिली करारी पराजय के बाद कांग्रेसी खेमे में पसरा एक असहज सन्नाटा धीरे-धीरे छंटने लगा है। पार्टी में नित्य प्रति वैचारिक मंथनों के दौर जारी हैं कि कैसे कांग्रेस में फिर से एक नई जान फूंकी जाए। पुराने कांग्रेसी नेताओं की राय है कि सबसे पहले कांग्रेस का चेहरा-मोहरा बदलने की जरूरत है और संगठन को भी मजबूत बनाना दरकार है। कांग्रेसी नेताओं में एक पुरानी मांग नए कलेवर में उभर कर सामने आई है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेसियों के लिए सुगम और सुलभ होना ही होगा। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तो यहां तक कहते हैं कि ‘आप मोदी से तो मिल सकते हैं पर राहुल से नहीं क्योंकि वह हमेशा अपने खास पसंद के लोगों से ही घिरे रहते हैं।’ यू.पी. के एक कांग्रेसी नेता बताते हैं कि वहां तो कम से कम 40 जिलों में कांग्रेस का अध्यक्ष ही नहीं है। 

विपक्षी एकता पर सरकार की नजर
विपक्षी एकता में टूट की पटकथा कहीं पहले से लिखी जा रही थी। मायावती पर तो कहीं पहले से कई मामलों में सी.बी.आई. और ई.डी. की जांच चल रही थी। पर जैसे ही चॢचत चीनी मिल घोटालों की फाइलें बाहर आईं, मायावती ने केन्द्र सरकार की शक्ति के आगे घुटने टेक दिए और उन्होंने सपा के साथ संबंध विच्छेद का ऐलान कर दिया। पिछले दिनों शरद पवार और राहुल गांधी की एक भावुक मुलाकात हुई। सूत्रों की मानें तो इस मुलाकात में राहुल के समक्ष पवार बेहद भावुक नजर आए। कहते हैं उन्होंने राहुल से कहा कि चूंकि अब वह काफी उम्रदराज हो गए हैं,इसलिए अब पार्टी चलाने में भी उनकी असमर्थताएं आड़े आ रही हैं, अत: चाहते हैं कि अब वक्त आ गया है कि वह अपनी पार्टी एन.सी.पी. का विलय कांग्रेस में कर दें। 

सूत्रों की मानें तो राहुल ने भी इस प्रस्ताव पर सहर्ष सहमति जताई और पवार से कहा कि उन्हें इस बात से कोई एतराज नहीं, पर विलय से पहले पवार साहब अपने परिवारजनों, पार्टी नेताओं और कार्यकत्र्ताओं से भी राय शुमारी कर लें। कहते हैं पवार और राहुल की यह गुप्त मुलाकात की बात लीक हो गई और पवार के बेहद भरोसेमंद प्रफुल्ल पटेल को केन्द्रीय जांच एजैंसियों ने एयर बस घोटाले में तलब कर लिया। पवार को भी सरकार का इशारा समझ आ गया था। 

यू.पी. से कौन?
केन्द्रीय नेत्री स्मृति ईरानी द्वारा रिक्त की गई राज्यसभा सीट पर कौन काबिज होगा, इसको लेकर कयासों के बाजार गर्म हैं। इस सीट के लिए फिलवक्त दो नामों की सबसे ज्यादा चर्चा है, उसमें से एक नाम मोदी सरकार की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का है तो दूसरा नाम पूर्व टैलीकॉम मंत्री मनोज सिन्हा का है। सुषमा के बारे में माना जाता है कि उन्होंने मोदी की विदेश नीति को नई बुलंदियों पर पहुंचाया है और विदेश मंत्रालय को लोकोन्मुखी बनाने में अपनी महत्ती भूमिका निभाई है। इस बार स्वास्थ्यगत कारणों से वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाईं और मोदी सरकार 2.0 में भी उन्हें जगह नहीं मिली। बावजूद इसके माना जाता है कि मोदी से उनके व्यक्तिगत संबंध किंचित बहुत मधुर हैं। इसलिए मुमकिन है कि मोदी उन्हें राज्यसभा में लेकर आ जाएं। 

देश के अगले राष्ट्रपति के तौर पर भी उनके नाम की सुगबुगाहट है। मनोज सिन्हा भी मोदी के बेहद भरोसेमंदों में शुमार होते हैं, वह भले ही इस दफे गाजीपुर से लोकसभा का चुनाव हार गए हों पर मोदी दरबार में उनकी पूछ कम नहीं हुई है। अत: एक संभावना यह भी है कि उन्हें स्मृति ईरानी द्वारा रिक्त की गई सीट से राज्यसभा में लाकर फिर से केन्द्र में मंत्री बनाया जा सकता है। यू.पी. के नए भाजपा अध्यक्ष के तौर पर भी सिन्हा का नाम चल रहा है, पर इसके लिए फिलहाल वह तैयार नहीं बताए जाते।-त्रिदीब रमण 
                             

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