बच्चों और मां-बाप में बढ़ता भावनात्मक अलगाव

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2024 06:34 AM

growing emotional disconnect between parents and children

बॉलीवुड की 23 जून को हुई एक हाई-प्रोफाइल शादी सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। देश के कानून के दायरे में हुई यह शादी कई कारणों से चर्चा में आई है। इसमें एक सवाल शादी करने वालों द्वारा मां-बाप की भावनाओं का सम्मान और सहमति पर संशय भी है।

बॉलीवुड की 23 जून को हुई एक हाई-प्रोफाइल शादी सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। देश के कानून के दायरे में हुई यह शादी कई कारणों से चर्चा में आई है। इसमें एक सवाल शादी करने वालों द्वारा मां-बाप की भावनाओं का सम्मान और सहमति पर संशय भी है। हम इससे थोड़ा आगे सोचें तो हम पूरे देश में पाएंगे कि आज-कल बच्चों द्वारा मां-बाप की अवज्ञा और भावनाओं का हर दूसरे बिन्दू पर हनन करना इतना अधिक ऊपर जा चुका है कि अनेक मां-बाप यह कहने पर मजबूर हैं कि इससे अच्छा हमने तुम्हें यानी बच्चों को पैदा ही न किया होता। भारतीय संस्कृति के विरोधाभास के रूप में उभर रही ऐसी स्थितियां क्यों उफान पर हैं इस पर हमें मंथन करना चाहिए। 

बच्चों और मां-बाप के बीच में भावनात्मक अलगाव का एक कारण संवाद की कमी भी है और जहां संवाद है भी वहां माध्यम बदल गए हैं। अब प्रत्यक्ष संवाद की जगह परोक्ष संवाद ज्यादा होते हैंं। समय की कमी या अन्य कई कारणों से बच्चे और माता-पिता के बीच आमने-सामने संवाद न होकर फोन या सोशल मीडिया के द्वारा होते हैं। इससे भावनात्मक विलगाव होता है। हालांकि आज भी कुछ परिवारों में माता-पिता और बच्चे साथ बैठकर आमने-सामने संवाद करते हैं, पर ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम है। किसी भी रिश्ते में बदलाव के पीछे कभी भी एक पक्ष सम्पूर्ण रूप से जिम्मेदार नहीं हो सकता है  क्योंकि एक हाथ से कभी ताली नहीं बज सकती है। 

बच्चों के साथ रिश्तों में बदलाव के पीछे परिवार और माता-पिता का भी काफी हद तक अपना योगदान है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बहुत सारे कारण ऐसे हैं जिनमें परिवार और माता-पिता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दोष होता है। अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जैसे कि बच्चों पर अत्यधिक प्यार दर्शाना जिससे कि वे कभी भी जीवन की वास्तविकताओं को समझ ही नहीं पाते और जीवन के युवा दौर में उनको समाज और परिवार में एडजस्ट होने में दिक्कत आती है। 

बच्चों से प्यार तो करना लेकिन उसे दर्शा नहीं पाना जिससे कि बच्चे को जीवन भर यह महसूस होता है कि मेरे माता-पिता मुझे प्यार नहीं करते  या बहुत कम करते हैं। उस प्यार को वह यारों-दोस्तों या बाहर वालों में ढूंढने की कोशिश करता है और बाहरी लोग उसका फायदा ही उठाते हैं। बच्चों पर अपने सपने थोपना, अत्यधिक अपेक्षाएं रखना, बच्चों में भेदभाव करना, परिवार में गृह क्लेश रखना, घर का वातावरण सही नहीं रखना, अत्यधिक घुटन भरा माहौल रखना या थोपा हुआ माहौल रूढि़वादी होना, समय के साथ बदलाव नहीं कर पाना, दिखावे की अत्यधिक भावना रखना, दूसरों को नीचा दिखाना या कमजोर साबित करना और हमेशा खुद को ही सर्वश्रेष्ठ साबित करना, सदैव अपने परिवार के पुराने इतिहास की ही बातें करते रहना, निर्णयों में पूरे परिवार को शामिल नहीं करना और राय नहीं लेना, खुद उदाहरण नहीं बनकर, हमेशा दूसरों के उदहारण देते रहना आदि अलगाव के कारण हो सकते हैं। 

यह तो बात है बच्चों के भावनात्मक अलगाव के कुछ कारणों की, दूसरी तरफ बच्चों की ओर से, खास तौर पर इश्क-मुश्क से मदमस्त युवा सिर्फ अपने लवर की परवाह करते हैं। एक बाहरी इंसान को प्यार करता है पर इतना विरोधाभास कि मां-बाप के प्यार की परवाह नहीं है। एक-दूसरे के लिए आत्महत्या कर लेंगे पर यह नहीं सोचेंगे, जिन्होंने इतने प्यार से उनको पाल-पोस कर बड़ा किया है उनके दिल पर क्या बीतेगी। ये भावनाएं क्यों खत्म होती जा रही हैं, शायद हमारी शिक्षा प्रणाली भी इसके लिए कहीं न नहीं जिम्मेदार है जो हमें भौतिक तरक्की के अलावा कुछ सिखा ही नहीं पा रही है। 

इस बिन्दू को, बच्चों के चश्मे से विचारें तो सामने आएगा कि यदि भावनात्मक रूप से माता-पिता बच्चों की उपेक्षा करते हैं तो बच्चे अंदर से टूट जाते हैं क्योंकि बच्चों में एक बात सामान्य होती है कि वे माता-पिता से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं परंतु यदि माता-पिता उनकी उपेक्षा करें तो फिर उस बच्चे में मानसिक तौर पर कई विकृतियां सामने आने लगती हैं क्योंकि अभी वह बच्चा है, उसमें कुछ भी समझ नहीं होती, क्या अच्छा है, क्या बुरा है, क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए परंतु वह उपेक्षा पा  अपनी मनमानी करना शुरू कर देता है या फिर गुमसुम हो जाता है जोकि दोनों ही एक बच्चे के विकास के लिए खतरनाक हैं। 

बच्चों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है मानसिक सपोर्ट और भावनात्मक रूप से उन्हें सशक्त बनाना परंतु ये चीजें यदि नहीं मिलतीं तो वह अंदर से रिक्त हो जाता है और यह खालीपन भरने के लिए वह गलत लोगों का साथ भी पकड़ सकता है या गलत लोगों का चयन कर सकता है या फिर गलत कामों में अपने आप को इनवॉल्व कर सकता है या फिर नशे का आदी हो सकता है। खास करके एक बच्चे को भावनात्मक रूप से सदैव सशक्त बनाना चाहिए। यदि उसमें बुद्धि का अभाव हुआ तब भी वह समाज में अपने आप को समायोजित कर लेगा परंतु यदि वह भावनात्मक रूप से कमजोर हो गया तो बुद्धिमान होते हुए भी वह समाज से कट जाता है।-डा. वरिन्द्र भाटिया
 

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