‘पश्चिम की खुली हवा में सांस लेना चाहती है हांगकांग की नई पीढ़ी’

Edited By ,Updated: 15 Jan, 2021 05:07 AM

new generation of hong kong wants to breathe in the open air of the west

चीन के अंदर जो जनविरोध और विद्रोह चल रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि चीन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। चाहे मामला चीन के मुस्लिम बहुल शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र का हो, अंदरुनी मंगोलिया में मंगोलियाई लोगों पर जबरदस्ती चीनी..

चीन के अंदर जो जनविरोध और विद्रोह चल रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि चीन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। चाहे मामला चीन के मुस्लिम बहुल शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र का हो, अंदरुनी मंगोलिया में मंगोलियाई लोगों पर जबरदस्ती चीनी भाषा थोपने का, तिब्बत में बौद्ध लोगों से उनकी धार्मिक आजादी छीनने का या फिर हांगकांग और मकाऊ को पूर्ण रूप से अपनी व्यवस्था में शामिल करने की जल्दबाजी का, हर जगह चीन की चाल उल्टी पड़ रही है और पूरी दुनिया में उसकी किरकिरी हो रही है। 

हांगकांग इस समय अंदर से सुलग रहा है। यहां के लोगों के लिए वर्ष 2019 याद रहने वाला साल था। सभी हांगकांग वासियों ने चीन की प्रभुत्ववादी नीतियों के खिलाफ खुलकर प्रदर्शन किया और दिखा दिया कि वे चीन की अत्याचारी नीतियों को सहने वाले नहीं। एक तरफ जहां बुजुर्ग माता-पिता चीन की सत्ता के मातहत रहना चाहते हैं वहीं उनके बच्चों का विश्वास सरकार पर से हटता जा रहा है और वह पश्चिम की खुली सोच और आबोहवा में सांस लेना चाहते हैं। इनमें से कुछ तो इतने नाराज हैं कि वर्तमान व्यवस्था को आग लगा देना चाहते हैं जिससे वह पुराने हांगकांग को वापस पा सकें और चीन की हांगकांग पर कब्जे वाली नीति से बच सकें। 

हालांकि हांगकांग को आज के हालात में ढालने की शुरूआत वर्ष 1997 से पहले ही हो चुकी थी। हांगकांग के लोग हमेशा से ही वैचारिक तौर पर बंटे रहे हैं, जिसमें उनकी पहचान और उनका इतिहास छिपा है। जहां बुजुर्ग लोग चीन की रूढि़वादी और सख्त साम्यवादी व्यवस्था को अपना मानते हैं, वहीं युवा वर्ग पश्चिम के खुले और ताॢकक वातावरण में ढल चुका है।

ब्रिटेन ने हांगकांग में छ: स्तरीय नागरिकता देने का प्रावधान बनाया है, दरअसल यह कानून वर्ष 1981 में बना था जिसके तहत शिक्षा और शिक्षण कार्यों से जुड़े लोगों, व्यवसाय, प्रबंधन योग्यता, उद्यमिता के साथ-साथ ब्रिटिश तंत्र से स्वामीभक्ति और जनसेवाओं को प्राथमिकता देना शामिल है, वहीं अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता भविष्य में आगे बढऩे की राह आसान करेगी। दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने और मिंग साम्राज्य के पतन के बाद ब्रिटिश सरकार ने आव्रजन और ब्रिटिश राष्ट्रीयता अधिनियम बनाया ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहने वाले कई देशों के लोगों को ब्रिटेन आने में आसानी हो। 

वहीं चीन दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता। चीन ने ब्रिटेन के नागरिकता मामले पर उसका विरोध किया और चीन में ब्रिटिश राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब कर उसे चीन के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप न करने को कहा। दरअसल, चीन ब्रिटिश पासपोर्ट वाले हांगकांग के निवासियों को ब्रिटिश नहीं बल्कि चीनी नागरिक मानता है और उसका कहना है कि उन पर सारे चीनी कानून लागू होते हैं। इन्हें किसी विशेष परिस्थिति में चीनी सीमा या हांगकांग में ब्रिटिश काऊंसलर प्रोटैक्शन नहीं मिलेगा ऐसा प्रावधान चीन की सरकार ने बना दिया है जिसे लेकर हांगकांग के लोग बहुत गुस्से में हैं। पिछले वर्ष जुलाई में ब्रिटिश सरकार ने देश से बाहर रहने वाले ब्रिटिश नागरिकों को नागरिकता देने का नया तरीका ढूंढ निकाला, जिसके बाद हांगकांग के लोगों में ब्रिटिश पासपोर्ट बनवाने के लिए ब्रिटिश दूतावास के बाहर आवेदन करने वालों की संख्या में खासा इजाफा देखा गया। 

हांगकांग में 1.67 बी.एन.ओ. (ब्रिटिश नैशनल ओवरसीज़) पासपोर्ट प्रचलन में थे जो वर्ष 2020 में बढ़कर 7.33 लाख हो गए, जो 300 फीसदी से ज्यादा की बढ़त थी। ब्रिटिश सरकार को उम्मीद थी कि देश से बाहर रहने वाले 2.57 लाख  ब्रिटिश प्रवासी और उनके आश्रित अगले पांच वर्षों में इस नए कानून के तहत स्वदेश वापसी करेंगे। हांगकांग में ब्रिटिश सरकार द्वारा नागरिकता देने का नया तरीका चीन के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है जो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के नाम पर अपने ही देशवासियों का उत्पीडऩ कर रहा है और इसके बुरे नतीजे भी जल्दी ही सामने आएंगे। वहीं 1990 का ब्रिटिश राष्ट्रीय चयन योजना हांगकांग में प्रतिभाशाली लोगों की रुकने में मदद करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि नागरिकता अधिनियम कानून के तहत किसी भी प्रतिभाशाली व्यक्ति को हांगकांग छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा। 

हांगकांग के कानून के अनुसार चीन हांगकांग में किसी भी कानून में परिवर्तन वर्ष 2037 से पहले नहीं कर सकता लेकिन चीन की शी जिनपिंग सरकार हांगकांग पर अपना पूर्ण आधिपत्य जमाने की जल्दबाजी में है। अगर चीन एक सीमा से आगे जाकर हांगकांग में लोगों की आजादी की मुहिम को कुचलने की कोशिश करता है तो पूरी विश्व बिरादरी चीन के खिलाफ हो जाएगी। कोरोना के चलते पहले ही दुनिया चीन से नाराज़ बैठी है, ऐसे में चीन की दुर्गति बड़े स्तर पर होगी और संभव है कि ऐसे में हांगकांग में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करना पड़े।
 

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