Nirjala Ekadashi: आज प्राप्त होगा साल भर की एकादशियों का पुण्य, पढ़ें पूरी जानकारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 May, 2023 07:32 AM

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हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी 31 मई को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 30 मई को दोपहर में 01 बजकर 07 मिनट पर होगी और इसका समापन  31 मई

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Nirjala Ekadashi 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी 31 मई को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 30 मई को दोपहर में 01 बजकर 07 मिनट पर होगी और इसका समापन  31 मई को दोपहर को 01 बजकर 45 मिनट पर होगा। साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण होने जा रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग का समय सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 06 बजे तक रहेगा।निर्जला एकादशी का पारण 01 जून को किया जाएगा, जिसका समय सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। 

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Nirjala Ekadashi Shubh Muhurat 2023: एकादशी व्रत के समापन को पारण कहा जाता है। एकादशी व्रत का पारण व्रत के अगले दिन किया जाता है। व्रत का पारण सूर्योदय के बाद करना चाहिए। मान्यता के अनुसार व्रत का पारण द्वादशी की तिथि समाप्त होने से पहले करना ही उत्तम माना गया है। द्वादशी की तिथि यदि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए तो व्रत का पारण सूर्योदय के बाद करना चाहिए। एकादशी व्रत का पारण समय : 01 जून को किया जाएगा, जिसका समय सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। 

महर्षि वेद व्यास ने भीम को बताया था एकादशी का यह उपवास निर्जला रहकर करना होता है इसलिये इसे रखना बहुत कठिन होता है। एक तो इसमें पानी तक पीने की मनाही होती है दूसरा एकादशी के उपवास को द्वादशी के दिन सूर्योदय के पश्चात खोला जाता है। अत: इसकी समयावधि भी काफी लंबी हो जाती है।

Nirjala Ekadashi puja vidhi एकादशी व्रत पूजा विधि : 
जो श्रद्धालु वर्ष भर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं, उन्हें निर्जला एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:

इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है। 

एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान के बाद सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें। इसके पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। 

इस दिन भक्ति भाव से कथा सुनना और भगवान का कीर्तन करना चाहिए।

इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफेद वस्त्र को उस पर ढक कर रखे। उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।

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इसके बाद दान, पुण्य आदि करने के बाद इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।

निर्जला एकादशी पर तुलसी पूजन का महत्व: तुलसी की पूजा हिंदू धर्म में काफी समय पहले से चली आ रही है। सभी हिंदू घरों में तुलसी के पौधे की खास पूजा की जाती है। वहीं यदि बात निर्जला एकादशी की करें तो इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का काफी महत्व होता है। तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां देवी-देवताओं का वास होता है। निर्जला एकादशी के दिन इस विधि से करें तुलसी की पूजा 

तुलसी की पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। इसके बाद तुलसी के पौधे में साफ पानी या गंगा जल चढ़ाएं।
इसके बाद दीपक जलाएं और तुलसी पर हल्दी और सिंदूर चढ़ाएं। तुलसी पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें

तुलसी मंत्र- महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्त:

Nirjala ekadashi vrat katha पौराणिक कथा 
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के संदर्भ में निर्जला एकादशी की कथा मिलती जो इस प्रकार है। हुआ यूं कि सभी पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिये महर्षि वेदव्यास ने एकादशी व्रत का संकल्प करवाया। अब माता कुंती और द्रौपदी सहित सभी एकादशी का व्रत रखते लेकिन भीम जो कि गदा चलाने और खाना खाने के मामले में काफी प्रसिद्ध थे। कहने का मतलब है कि भीम बहुत ही विशालकाय और ताकतवर तो थे लेकिन उन्हें भूख बहुत लगती थी। उनकी भूख बर्दाश्त के बाहर होती थी इसलिए उनके लिये महीने में दो दिन उपवास करना बहुत कठिन था। 

जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिए दबाव बढ़ने लगा तो वे इसकी युक्ति ढूंढने लगे कि उन्हें भूखा भी न रहने पड़े और उपवास का पुण्य भी मिल जाये। अपने उदर पर आयी इस विपत्ति का समाधान भी उन्होंने महर्षि वेदव्यास से ही जाना। भीम पूछने लगे, "हे पितामह! मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी का उपवास रखते हैं और मुझ पर भी दबाव बनाते हैं लेकिन मैं धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, दानादि कर सकता हूं लेकिन उपवास रखना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं हैं। मेरे पेट के अंदर वृक नामक जठराग्नि है। जिसे शांत करने के लिये मुझे अत्यधिक भोजन की आवश्यकता होती है अत: मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता।" 

तब व्यास जी ने कहा, भीम यदि तुम स्वर्ग और नरक में यकीन रखते हो तो तुम्हारे लिये भी यह व्रत करना आवश्यक है। इस पर भीम की चिंता और भी बढ़ गई, " उसने व्यास जी कहा, हे महर्षि ! कोई ऐसा उपवास बताने की कृपा करें, जिसे साल में एक बार रखने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो।" 

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 इस पर महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम को कहा, " हे वत्स ! यह उपवास है तो बड़ा ही कठिन लेकिन इसे रखने से तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त हो जायेगा। उन्होंने कहा कि इस उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें आचमन व स्नान के अलावा जल भी ग्रहण नहीं किया जा सकता। अत: एकादशी की तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान केशव यानि श्री हरि की पूजा करना और अगले दिन स्नान आदि कर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर, भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करना। इस प्रकार तुम्हें केवल एक दिन के उपवास से ही साल भर के उपवासों जितना पुण्य मिलेगा।" 

महर्षि वेदव्यास के बताने पर भीम ने यही उपवास रखा और मोक्ष की प्राप्ति की। भीम द्वारा उपवास रखे जाने के कारण ही निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी और चूंकि पांडवों ने भी इस दिन का उपवास रखा तो इस कारण इसे पांडव एकादशी भी कहा जाता है।

पूजा गुप्ता सपाटू
Poojagold458@gmail.com

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