Rani ki vav- विश्व प्रसिद्ध है ये बावड़ी, जानें इतिहास और रोचक बातें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2024 11:06 AM

rani ki vav

गुजरात के पाटण जिले में स्थित ‘रानी की वाव’ जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा का अनूठा उदाहरण है। इस बावड़ी का निर्माण वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी

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Where is Rani ki vav located- गुजरात के पाटण जिले में स्थित ‘रानी की वाव’ जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा का अनूठा उदाहरण है। इस बावड़ी का निर्माण वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव  प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति द्वारा करवाया गया था। सरस्वती नदी के तट पर बनी 7 तलों की यह वाव 64 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी तथा 27 मीटर गहरी है। इस वाव में 30 किलोमीटर लम्बी रहस्यमयी सुरंग भी है जो पाटण के सिद्धपुर में जाकर निकलती है।

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Why is Rani ka Vav important- ‘रानी की वाव’ को उत्तम वास्तुकला का जीवंत एवं बेजोड़ नमूना माना जाता है। यहां की मूर्तिकला तथा नक्काशी में राम, वामन, कल्कि जैसे विष्णु के अवतार, महिषा सुरमर्दिनी आदि को भव्य रूप में उकेरा गया है।

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22 जून, 2014 को यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में इस वाव को शामिल किया गया और जुलाई 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 100 के नोट पर इसे चित्रित किया गया है।

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Why is Rani ka Vav important- यूनेस्को ने इसे तकनीकी विकास का एक आलौकिक उदाहरण मानते हुए मान्यता प्रदान की है। इसमें जल प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था के साथ ही शिल्प कला का सौंदर्य भी झलकता है। ‘रानी की वाव’ समस्त विश्व में ऐसी इकलौती बावड़ी है जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है। यह इस बात का सबूत भी है कि प्राचीन भारत में जल प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी।

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यह वाव 11वीं शताब्दी की भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना और जल प्रबंधन में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का सबसे विकसित और वृहद उदाहरण हैं।

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Rani Ki Vav Historical Facts- भारत में बावड़ी निर्माण व इनके उपयोग का एक लम्बा इतिहास रहा है। यह कहा जा रहा है कि ये बावड़िया हमारे देश की बहुमूल्य और अभिन्न विरासत का प्रतीक हैं। जल प्रबंधन के सबसे पुराने तरीकों में से एक हैं ये बावड़िया, इन्हें संजोए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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इन ऐतिहसिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हें संरक्षित रखने हेतु जन भागीदारी आवश्यक है।

(‘जल चर्चा’ से साभार’)

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