Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Jun, 2024 08:13 AM
एक बार गुजरात की राजमाता मीलणदेवी ने भगवान सोमनाथ का विधिवत अभिषेक किया। उन्होंने सोने का तुलादान कर उसे सोमनाथजी को अर्पित कर दिया। ऐसा करने के बाद उनके मन में अहंकार भर
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Religious Katha: एक बार गुजरात की राजमाता मीलणदेवी ने भगवान सोमनाथ का विधिवत अभिषेक किया। उन्होंने सोने का तुलादान कर उसे सोमनाथजी को अर्पित कर दिया। ऐसा करने के बाद उनके मन में अहंकार भर गया और वह सोचने लगीं कि मेरी तरह सोने की मोहरों से किसी ने भी भगवान का तुलादान नहीं किया होगा। इसके बाद वह अपने महल में आ गई।
रात में सोते समय उन्हें भगवान सोमनाथ के दर्शन हुए और उन्होंने उनसे सपने में कहा, “मेरे मंदिर में एक गरीब महिला दर्शन को आई है। उसके संचित पुण्यों का कोई हिसाब नहीं है। उनमें से कुछ पुण्य तुम उसे सोने की मुद्राएं देकर खरीद लो। परलोक में काम आएंगे।”
स्वप्न से जागते ही उन्होंने कर्मचारियों को मंदिर से उस महिला को राजभवन में लाने के लिए कहा। कर्मचारी उस महिला को लाए तो वह डर गई। उसे देखकर राजामाता बोलीं, “मुझे अपने संचित पुण्य दे दो, बदले में मैं तुम्हें सोने की मुद्राएं दूंगी। मैंने सुना है कि तुम्हारे पुण्य अनगिनत हैं।”
गरीब महिला बोली, “राजमाता, मुझ गरीब से भला पुण्य कार्य कैसे हो सकते हैं ? मैं तो भीख मांगती हूं। भीख में मिले चने चबाते-चबाते ही मैं तीर्थयात्रा को निकली थी।
कल मंदिर में दर्शन करने से पूर्व किसी ने मुझे एक मुट्ठी सत्तू दिए थे। उसमें से आधे मैंने भगवान को भोग लगा दिए, बाकी एक भूखे भिखारी को खिला दिए। जब मैं भगवान को ठीक ढंग से प्रसाद ही नहीं चढ़ा पाई तो मुझे पुण्य कहां से मिलेगा ?”
गरीब महिला की बात सुनकर राजमाता मीलणदेवी का अहंकार नष्ट हो गया। वह समझ गई कि खुद भूखी रहकर मुट्ठी भर सत्तू भूखे भिखारी को खिलाने वाली इस महिला से प्रसन्न होकर भगवान सोमेश्वर ने उसे अनगिनत पुण्य दिए हैं। इसके बाद उन्होंने अहंकार को त्याग दिया और नि:स्वार्थ मानव सेवा को ही अपना सर्वोपरि धर्म बना लिया।