Shagun: इसलिए दिया जाता है शगुन राशि में एक रुपया बढ़ा कर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Jul, 2024 09:27 AM

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हमारे देश में मांगलिक अवसरों पर पुरातन काल से एक-दूसरे को या पारिवारिक सदस्यों, मित्रों को उपहार या शगुन देने की प्रथा है। यह एक सामाजिक व्यवहार है कि आप यदि किसी सामाजिक अथवा धार्मिक समारोह में जाते हैं,

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Shagun: हमारे देश में मांगलिक अवसरों पर पुरातन काल से एक-दूसरे को या पारिवारिक सदस्यों, मित्रों को उपहार या शगुन देने की प्रथा है। यह एक सामाजिक व्यवहार है कि आप यदि किसी सामाजिक अथवा धार्मिक समारोह में जाते हैं, वहां भोजन करते हैं या नहीं भी करते, एक शगुन का लिफाफा अवश्य पकड़ा कर आते हैं। उस लिफाफे में भले ही 11, 21, 51, 101, 501, 1100... या ऐसी ही किसी संख्या की धनराशि हो, आप देते अवश्य हैं। सब की कोशिश होती है कि शगुन राशि नई करंसी में ही हो। इसके लिए बैंकों में कई-कई चक्कर लगाने पड़ जाते हैं। विवाहों में पहले करंसी नोटों के हार पहनाने का बहुत रिवाज था खासकर एक रुपए के नोटों का। बाद में कई लोग दो-दो हजार रुपए के नोट आने पर इसके भी हार दूल्हे को पहनाने लगे हैं। 

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मदद करने की प्रथा
विवाहों या ऐसे ही समारोहों में पहले भी और आज भी अपने सामर्थ्य से अधिक व्यय होता आया है। ऐसे आयोजनों में गरीब से लेकर अमीर तक अपने बजट से अधिक खर्च करता है जिससे उसका आर्थिक भार कई गुणा बढ़ जाता है। इस आर्थिक भार को बांटने के लिए, शगुन की प्रथा समाज में आरंभ की गई थी ताकि कन्या के विवाह में हुए खर्चों के बोझ को मिल-बांट कर कम किया जा सके। गांवों में तो ऐसे अवसरों पर पूरा गांव, कन्या के विवाह को अपने घर का विवाह समझता था और काम से लेकर दाम तक हर तरह की मदद करता था। आज भी विवाह में दहेज व दिखावे ने सबका बजट हिलाया है जिसकी पूर्ति में काफी समय लग जाता है इसलिए शगुन पहले भी था,आज भी है।

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वृद्धि के साथ लौटाया जाता है शगुन
हर परिवार ऐसे अवसरों पर एक डायरी लगा कर रखता है जिसमें हर संबंधी या शुभचिंतक के नाम के आगे शगुन राशि और उपहार का नाम जैसे अंगूठी, हार इत्यादि लिखा जाता है और उसके परिवार में ऐसे ही अवसर आने पर दी गई शगुन राशि में कुछ और वृद्धि करके लौटाया जाता है।

आरम्भ का परिचायक है ‘एक’
इन शगुन के लिफाफों में एक बात बहुत महत्वपूर्ण रही है कि शगुन राशि सदा एक रुपया बढ़ा कर दी जाती रही है। इसके पीछे भावनात्मक, ज्योतिषीय, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक कारण रहे हैं।

जीरो अर्थात शून्य, एक अंत को दर्शाता है जबकि एक का अंक आरंभ का परिचायक है। जब हम किसी राशि में एक जोड़ देते हैं, हम इसे प्राप्तकर्ता के लिए वृद्धि की कामना करते हैं।

यदि राऊंड फिगर अर्थात 10, 100, 500 या 1000 की संख्या को गणित की दृष्टि से देखें तो ये अंक किसी भी संख्या से विभाजित हो जाते हैं जबकि 11, 21, 51,101, 501, 1100 आदि को आप विभाजित नहीं कर सकते इसीलिए ये संख्याएं ईश्वर का आशीर्वाद मानी जाती हैं। मूल राशि में एक रुपया जोड़ना एक निरंतरता का प्रतीक है ताकि हमारे संबंधों में एकसुरता और निरंतरता बनी रहे। संबंध प्रगाढ़ बने रहें।

एक और बड़ी बात ! एक रुपए के नोट की बजाय, यदि एक रुपए का सिक्का हो तो वह धातु से बना होता है जो धरती माता का एक अंश होता है और लक्ष्मी जी से जुड़ा माना जाता है। यह धन के वृक्ष का बीज माना जाता है। आपने शगुन के लिफाफों में इस सिक्के को चिपका पाया होगा।

इस एक रुपए के पीछे आपकी शुभकामनाएं छिपी होती हैं कि जिन्हें हम भेंट कर रहे हैं उनके यहां बरकत हो सुख-समृद्धि की वृद्धि हो। मंदिर या धार्मिक स्थानों पर भी इसी प्रकार की राशि का दान किया जाता है।

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शोक के समय 
दूसरी ओर किसी के स्वर्ग सिधारने पर आयोजित शोक सभा में दिवंगत की फोटो के आगे फूलों के अलावा एक थाली रखी जाती है जिसमें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए प्रत्येक व्यक्ति 10, 20, 50, 100 या ऐसी ही राशि का नोट अपूर्ति करता है- 11, 51 या 101 नहीं। 

यह भी एक सांकेतिक प्रथा है कि हम शून्य के माध्यम से एक अंत को दर्शा रहे हैं कि अब परिवार में यह दुख समाप्त हो, इसमें परिवार के दुखों में वृद्धि न हो। करंसी, सिक्के, राशि वही हैं, बस भावनाएं और अवसर अलग-अलग हैं। 

 

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