Srimad Bhagavad Gita: ‘मैं-मैं’ के जंजाल से बच कर रहें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Mar, 2024 08:36 AM

srimad bhagavad gita

गीता के तीसरे अध्याय में कहा गया है कि ‘प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:। अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥’ अर्थात हमारे सभी कर्म वास्तव में प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं,

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Srimad Bhagavad Gita: गीता के तीसरे अध्याय में कहा गया है कि ‘प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:। अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥’

अर्थात हमारे सभी कर्म वास्तव में प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, किन्तु जो अज्ञानी होते हैं व जिनका अंत:करण अहंकार से मोहित है, वे समझते हैं कि कर्म उन्होंने ही किया, अर्थात ‘मैं करता हूं’ यह अहंकार रखके वे स्वयं को अनेक प्रकार के बंधनों में बांध लेते हैं। इसीलिए हमें बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि ‘मैं-मैं’ की बकरी नहीं बनना क्योंकि जो भी अहंकार की इस मैं-मैं में फंसते हैं, उनका जीवन अंतत: नरक समान बन ही जाता है। आखिर क्या है यह अहंकार, जो नुकसानकारी होते हुए भी हम उसे छोड़ने को तैयार नहीं होते?

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार सी.एस.लुईस ने लिखा है, ‘‘अहंकार की तृप्ति किसी चीज को पाने से नहीं, अपितु उस चीज को किसी दूसरे की अपेक्षा ज्यादा पाने से होती है।’’

वस्तुत: अहंकार का अर्थ ही अपने को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने का दावा है, इसी वजह से लोग लोभ करते हैं ताकि वे दूसरों से सम्पन्न दिखें, दूसरों को दबाने की चेष्टा करते हैं, ताकि अपनी प्रभुता सिद्ध कर सकें और दूसरों को मूर्ख बनाना चाहते हैं, ताकि स्वयं बुद्धिमान सिद्ध हो सकें। याद रखें! अहंकार सदैव दूसरों को मापदंड बना कर चलता है। दूसरों से तुलना कर अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने की वृत्ति का नाम ही अहंकार है।  

इतिहास गवाह है कि कैसे महान सभ्यताओं, शक्तिशाली राजवंशों और साम्राज्यों ने अहंकारी, अभिमानी और घमंडी शासकों के हाथों में गिरकर अपने मूल अस्तित्व को ही मिटा दिया। पुराणों में उल्लेख आता है कि देवता असुरों से जब-जब भी पराजित हुए, तो उसका कारण रहा उनका असंगठित होना क्योंकि प्रत्येक देवता को अपनी शक्ति का अहंकार रहा और इसलिए वे आपस में तालमेल नहीं बिठा सके। कहने का भाव यह है कि किसी व्यक्ति में सारे सद्गुण होते हुए भी यदि उसके भीतर अहंकार विद्यमान है तो वह उसके सद्गुणों की शक्ति को उसी प्रकार ढंक लेगा जिस प्रकार आंख में पड़ा हुआ तिनका सारी दृष्टि को ढंक लेता है।

महाभारत में इस प्रकार के कई प्रसंग आते हैं, जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के अभिमान का मर्दन किया और उसे भगवत् प्राप्ति में सबसे बड़ा अवरोध बताया। इसी प्रकार रामायण में भी नारद जी के अभिमान का प्रसंग आता है और वे अनुभव करते हैं कि अपने मिथ्या अभिमान के कारण वे भगवान से कितने विमुख होते जा रहे हैं।

अत: बेहतर होगा कि हम अहंकार रूपी इस बीमारी को परमात्मा कृपा का टीका लगाकर सदा के लिए मुक्ति प्राप्त करें, अन्यथा यह खतरनाक बीमारी हमारे जीवन को संपूर्णत: उजाड़ सकती है।

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!