Edited By rajesh kumar,Updated: 04 Jun, 2022 03:52 PM
सर्च इंजन गूगल ने भारत के महान गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री सत्येंद्र नाथ बास को बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट में उनके योगदान को याद करते हुए शनिवार को डूडल बनाया। वर्ष 1924 में आज ही के दिन (चार जून को) उन्होंने क्वांटम फॉर्मूलेशन, अल्बटर् आइंस्टीन को भेजे थे...
गेजेट डेस्क: सर्च इंजन गूगल ने भारत के महान गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री सत्येंद्र नाथ बास को बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट में उनके योगदान को याद करते हुए शनिवार को डूडल बनाया। वर्ष 1924 में आज ही के दिन (चार जून को) उन्होंने क्वांटम फॉर्मूलेशन ,अल्बटर् आइंस्टीन को भेजे थे जिसे क्वांटम मैकेनिक्स में एक महत्वपूर्ण खोज के रूप में मान्यता मिली। गूगल ने आज सत्येंद्र नाथ बोस और ‘बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट' में उनके योगदान को सिलेब्रेट करने के लिए डूडल बनाया। बोस की प्रसिद्धि की यात्रा अध्ययन के शुरूआती चरण में ही हो गयी थी। हर दिन, उनके पिता, जो एक एकाउंटेंट थे, काम पर जाने से पहले उन्हें हल करने के लिए एक अंकगणितीय समस्या लिखते थे, जिससे बोस की गणित में रुचि बढ़ जाती थी।
महज 15 साल की उम्र में, बोस ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में विज्ञान स्नातक की पढाई शुरू कर दी थी और इसके तुरंत बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय में अनुप्रयुक्त गणित में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। दोनों डिग्रियों में अपनी कक्षा में शीर्ष पर रहते हुए, उन्होंने शिक्षा जगत में अपनी प्रतिष्ठित स्थिति को मजबूत किया। वर्ष 1917 के अंत तक, बोस ने भौतिकी पर व्याख्यान देना शुरू किया। स्नातकोत्तर छात्रों को प्लैंक के विकिरण सूत्र पढ़ाते समय, उन्होंने कणों की गणना के तरीके पर सवाल उठाया और अपने सिद्धांतों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने निष्कर्षों को प्लैंक्स लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा नामक एक रिपोटर् में प्रलेखित किया है। साथ ही इसे द फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन नामक एक प्रमुख विज्ञान पत्रिका को भी भेजा।
उनके शोध को हालांकि, अस्वीकार कर दिया गया था। उसी समय, उन्होंने अपने शोध पत्र अल्बटर् आइंस्टीन को मेल करने का साहसिक निर्णय लिया। आइंस्टीन ने वास्तव में खोज के महत्व को पहचाना- और जल्द ही बोस के फार्मूले को घटनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला में लागू किया। बोस का सैद्धांतिक पेपर क्वांटम सिद्धांत में सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक बन गया। केंद्र सरकार ने बोस को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित करके भौतिकी में उनके जबरदस्त योगदान को मान्यता दी। उन्हें विद्वानों के लिए भारत में सर्वोच्च सम्मान, राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में भी नियुक्त किया गया था।
एक सच्चे पॉलीमैथ के रूप में बोस ने इंडियन फिजिकल सोसाइटी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, इंडियन साइंस कांग्रेस और इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट सहित कई वैज्ञानिक संस्थानों के अध्यक्ष के रूप में काम किया। वह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के सलाहकार भी थे और बाद में रॉयल सोसाइटी के फेलो बन गए। बोस की विरासत के सम्मान में, कोई भी कण जो आज उनके आँकड़ों के अनुरूप है, बोसॉन के रूप में जाना जाता है। उनके काम से कई वैज्ञानिक सफलताएँ मिली हैं जिनमें कण त्वरक और गॉड पाटिर्कल की खोज शामिल है। गूगल टीम ने एक बयान में कहा,‘‘भौतिकी की दुनिया में क्रांति लाने के लिए सत्येंद्र नाथ बोस का धन्यवाद। आपकी खोज ने वास्तव में क्वांटम यांत्रिकी को हिलाकर रख दिया।''