रूस के खूंखार वैगनर ग्रुप जैसी प्राइवेट आर्मी बनाने का सपना पाले था अमृतपाल सिंह

Edited By rajesh kumar,Updated: 22 Mar, 2023 05:54 PM

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अमृतपाल सिंह ने रूस के खूंखार वैगनर ग्रुप जैसी प्राइवेट आर्मी ‘आनंदपुर खालसा फोर्स’ (ए.के.एफ.) बनाने का सपना पाल रखा था। बैसाखी के अवसर पर आनंदपुर साहिब खालसा फौज को साकार करने का कार्यक्रम बड़े पैमाने पर तैयार किया गया था।

श्री आनंदपुर साहिब (बलवीर संधू): अमृतपाल सिंह ने रूस के खूंखार वैगनर ग्रुप जैसी प्राइवेट आर्मी ‘आनंदपुर खालसा फोर्स’ (ए.के.एफ.) बनाने का सपना पाल रखा था। बैसाखी के अवसर पर आनंदपुर साहिब खालसा फौज को साकार करने का कार्यक्रम बड़े पैमाने पर तैयार किया गया था। बैसाखी के अवसर पर खालसा पंथ की जन्मस्थली श्री आनंदपुर साहिब में खालसा ‘वहीर’ (कूच) के माध्यम से पंजाब के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं की एक बड़ी सभा में ‘आनंदपुर साहिब खालसा सेना’ की स्थापना की घोषणा करने की अमृतपाल सिंह की योजना थी जिसे खुफिया एजैंसियों ने अपनी सतर्कता से न केवल विफल कर दिया बल्कि पंजाब के अलग-अलग जिलों में तैनात उसके एरिया कमांडरों और नेताओं को भी पंजाब पुलिस ने विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार कर लिया।

जब इस पत्रकार ने श्री आनंदपुर साहिब और रोपड़ के प्रभारी जरनैल सिंह से राष्ट्रीय पर्व होला मोहल्ला और अमृतपाल के बारे में बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कार्यक्रम तो बना लिया गया है पर इस संबंध में समाचारपत्रों में कुछ भी नहीं दिया जाए और समय आने पर भाई साहिब खालसा पंथ की जन्मस्थली श्री आनंदपुर साहिब में इसकी घोषणा करेंगे, हमें इस बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। इस पत्रकार को यह बयान देने वाले जरनैल सिंह को भी रूपनगर पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि अमृतपाल सिंह का कोई गुरु अवश्य होगा जिसके आदेश पर बैसाखी के अवसर पर समारोह आयोजित करने का कार्यक्रम बनाया गया जिसे केंद्रीय गृहमंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार की एजैंसियों ने विफल कर दिया। पंजाब पुलिस और पंजाब में कानून व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखा गया है।

खालसा पंथ का जन्म स्थान श्री आनंदपुर साहिब खालिस्तान समर्थकों के लिए विशेष है। बब्बर खालसा इंटरनैशनल के जगतार सिंह हवारा ने छिपकर आनंदपुर साहिब में डेरा डाला था। वह एक लाल साइकिल पर सब्जियां और समाचारपत्र खरीदने के लिए श्री आनंदपुर साहिब जाता था। खालिस्तान कमांडो फोर्स का मुखिया वस्सन सिंह जफ्फरवाल पंजाब पुलिस के पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी लोकनाथ आंगरा के सामने सरैंडर करने से पहले कीरतपुर साहिब में घूमता रहा। इसी प्रकार अमृतपाल सिंह ने भी अपनी भावी योजना के लिए श्री आनंदपुर साहिब को ही चुना। उल्लेखनीय है कि अमृतपाल सिंह ने खालसा पंथ की जन्मस्थली श्री आनंदपुर साहिब पहुंचने के बाद विभिन्न भाषणों में युवाओं से मार्गदर्शन करने की अपील की थी।

पाक या नेपाल भाग गया तो पकड़ में आना कठिन
खालिस्तान समर्थक और कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह पंजाब पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। पंजाब पुलिस की कई टीमों की लगातार दबिश में उसकी परछाईं तक नहीं मिली है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं अमृतपाल सिंह ने देश की सीमा लांघकर विदेश में तो नहीं शरण ले ली है। अमृतपाल के खिलाफ 6 एफ.आई.आर. दर्ज हैं और नैशनल सिक्योरिटी एक्ट (एन.एस.ए.) लगा दिया गया है। अब यदि वह किसी दूसरे देश में छिप गया है तो उसे भारत वापस लाना मुश्किल भी हो सकता है क्योंकि हमारी कई देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि ही नहीं है।

विदेश भागना कई बार अपराधियों का बच निकलने का बड़ा रास्ता बन जाता है। 4 दिनों से फरार चल रहे अमृतपाल सिंह को पकडऩे के लिए कई ठिकानों पर दबिश दी जा रही है, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं है। उसके पाकिस्तान या नेपाल में दाखिल होने की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी आशंका से बॉर्डर पर कड़ी निगरानी की जा रही है। यदि वह पाकिस्तान पहुंच गया तो फिर उसे लाना बेहद कठिन हो सकता है। नेपाल में भी उसके पहुंचने के बाद उसका पता लगाना आसान नहीं होगा।

भारत की 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इनमें अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब और रूस जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। वहीं 12 देशों के साथ हमारा एक्स्ट्राडिशन अरेंजमैंट है। इन दोनों में अंतर वही है, जो लिखित और बोले गए वादे में होता है। अरेंजमैंट में यह भी हो सकता है कि किसी कानून की आड़ में आगे चलकर देश अपराधी को दूसरे देश को न सौंपे।

पड़ोसी देशों के साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि नहीं है। इनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश, चीन, मालदीव और म्यांमार शामिल हैं। नेपाल से भी यह संधि बहुत प्रभावशाली नहीं है। अक्तूबर, 1953 में ही कोइराला सरकार के समय भारत और नेपाल ने प्रत्यर्पण संधि की थी परंतु बाद में इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की गई। 2006 के बाद से कई बार दोनों देश करार करने के निकट पहुंचे पर किसी न किसी कारण से रुक गए। इसके पीछे चीन की मंशा भी मानी जाती है। 

 

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