Edited By rajesh kumar,Updated: 28 Mar, 2023 09:37 PM

वकीलों के संगठन ‘‘बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन'' ने न्यायपालिका और न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़ी कॉलेजियम प्रणाली पर टिप्पणियों को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ एवं केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ उसकी जनहित याचिका खारिज करने के उच्च...
नेशनल डेस्क: वकीलों के संगठन ‘‘बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन'' ने न्यायपालिका और न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़ी कॉलेजियम प्रणाली पर टिप्पणियों को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ एवं केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ उसकी जनहित याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के फैसले को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। वकीलों के संगठन ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ फरवरी के आदेश को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है।
‘बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन' ने दावा किया था कि रिजिजू और धनखड़ की टिप्पणियों और आचरण से संविधान में विश्वास की कमी प्रदर्शित होती है। उसने धनखड़ को उपराष्ट्रपति के रूप में और रिजिजू को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने का आदेश देने की मांग की थी। वकील अहमद आब्दी ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि यह याचिका मंगलवार को उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में दायर की गई है। जनहित याचिका में दावा किया गया था कि दोनों कार्यकारी अधिकारियों द्वारा "न केवल न्यायपालिका, बल्कि संविधान पर हमला" से उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा प्रभावित हुई है।
रिजिजू ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली "अस्पष्ट और अपारदर्शी" है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था। केशवानंद भारती मामले में मूल ढांचे का सिद्धांत दिया गया था। धनखड़ ने कहा था कि उस फैसले से एक गलत मिसाल बनी। धनखड़ ने कहा था कि फैसले से गलत परंपरा की नींव पड़ी और अगर कोई प्राधिकार संविधान संशोधन की संसद की शक्ति पर सवाल उठाता है तो यह कहना मुश्किल होगा कि ‘‘वह लोकतांत्रिक देश हैं।''
उन्होंने कहा, यह सूचित किया जाता है कि याचिकाकर्ता ने बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करके प्रतिवादियों एक और दो (धनखड़ और रिजिजू ) को उनके व्यवहार, आचार और सार्वजनिक रूप से दिए गए भाषणों के आधार पर क्रमश: उपराष्ट्रपति और केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री के संवैधानिक पद पर बने रहने के लिए अयोग्य घोषत करे। याचिका में कहा गया है कि दोनों संवैधानिक पदाधिकारियों ने ‘‘अपने आचरण और सार्वजनिक रूप से दिए गए बयानों और उच्चतम न्यायालय सहित अन्य प्रतिष्ठानों पर निशाना साध कर संविधान में अपना अविश्वास जता रहे हैं तथा शीर्ष अदालत द्वारा तय कानून के प्रति बहुत कम सम्मान दिखा रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादियों एक और दो (धनखड़ और रीजीजू) ने उच्चतम न्यायालय और संविधान में जनता के भरोसे को डिगा दिया है।'' याचिका में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति और केन्द्रीय मंत्री ने शपथ ली है कि वे संविधान के प्रति सच्चे और निष्ठावान रहेंगे। जनहित याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया है, ‘‘लेकिन, उनके आचरण से भारत के संविधान में उनके विश्वास की कमी दिखती है।'' एनजीओ ने अपनी याचिका में कुछ आयोजनों/समारोहों के दौरान हस्तियों द्वारा दिए गए बयानों का संदर्भ भी दिया है। उच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका को नौ फरवरी को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘हम कोई राहत देने के पक्ष में नहीं हैं। याचिका खारिज की जाती है। कारण बाद में बताए जाएंगे।''