ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से 5 देशों को होगा फायदा

Edited By ,Updated: 27 May, 2016 11:18 AM

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माना जा रहा है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही अमरीका की विदेश नीति के निर्माताओं के व्यवहार में नरमी आ जाएगी। इसके विशेषज्ञ पूरा

माना जा रहा है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही अमरीका की विदेश नीति के निर्माताओं के व्यवहार में नरमी आ जाएगी। इसके विशेषज्ञ पूरा जोर लगा रहे हैं कि किसी तरह नवंबर में रिपब्लिकन उम्मीदवार की जीत को पक्का किया जाए। इस बीच मैक्सिको से दक्षिण कोरिया तक के राजनयिक ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की चेतावनी जता रहे हैं। हर कोई विश्व युद्ध के आसार पर बात नहीं कर रहा है। इसके व्यावाहारिक और स्वार्थ से जुड़े कारण हो सकते हैं, इसलिए कि कई राष्ट्रों के प्रमुख नेताओं को ट्रंप के सा​थ काम करना है। यहां द अटलांटिक डॉट कॉम के साभार से प्राप्त महत्वपूर्ण विश्लेषण को संक्षेप में दिया जा रहा है कि ट्रंप के अन्य देशों के प्रमुखों से कैसे संबंध स्थापित हो सकते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी के चुनाव जीतने के कुछ समय बाद मुंबई की यात्रा पर आए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि इस देश के प्रधानमंत्री ने लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का काम बेहतर तरीके से किया है। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि भारत में विदेश से खूब धन बरसेगा। ट्रंप के भारत के साथ व्यापारिक संबंध भी हैं, उन्होंने इस मौके पर भारत की काफी प्रशंसा की थी। ट्रंप ने भविष्य में भारत के साथ बेहतर व्यावसायिक संबंधों की संभावना जताई थी। माना जा रहा है कि ट्रंप के मुस्लिम विरोधी बयानों से भारत और अमरीका के हथियार संबंधी सौदों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। अमरीका के लिए भारत एक बड़ा बाजार है। कुछ लोगों ने कहा था कि मोदी के लिए यह नई बात नहीं हे, उन्होंने भी कभी मुस्लिम विरोधी बयान दिए थे।

संभावना व्यक्त की जा रही है​ कि आर्थिक शक्ति के रूप में उभरते चीन के प्रति ट्रंप का जो रवैया है उससे भी नई दिल्ली को लाभ होेगा। अमरीका का पुुराना मित्र पाकिस्तान भारत के लिए गंभीर समस्या है। बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान हिलेरी क्लिंटन भारत का दौरा करने के दौरान दो बार पाकिस्तान भी गई थीं। उसके साथ संबंध कायम रखने में उन्होंने काफी मेहनत की थी। दूसरी ओर, ट्रंप ने विश्व में पाकिस्तान को ईरान से भी ज्यादा खतरनाक देश घोषित किया है।

मिस्र के राष्ट्रपति अदेल-फत्ताह-एल-सिसि

संभावना जताई गई है कि ज्यादातर मुस्लिम देशों के प्रमुख नेता ट्रंप से दूर रहना पसंद करेंगे। सिसि के बारे में कहा जाता है कि मिस्र में क्रांति के बाद उन्होंने सैन्य शक्ति से देश को नियंत्रण किया हुआ है। ट्रंप उनका सहयोगी बन सकते हैं। जबकि क्लिंटन ने नम्रतापूर्वक ओबामा के इस फैसले का विरोध किया था कि अमरीका के सहयोगी हुस्नी मुबारक से दूरी बनाई जाए। वर्ष 2011 में मिस्र में हुई क्रांति के बाद मुबारक को गद्दी से हटा दिया गया था। ट्रंप मिस्र में मजबूत सरकार को समर्थन देने के पक्ष में हैं। उन्होंने वर्ष 2012 में ट्वीट किया था कि हमें उपेक्षा की बजाय मुबारक को समीप लाना चाहिए। जहां तक सिसि की बात है उन्होंने मिस्र में इस्लामिक संगठनों के खिलाफ अभियान चलाया था। अतिवादी मुस्लिमों के विरोध में ट्रंप ने जिस संघर्ष की घोषणा की थी उसमें वे अपने विचारों की समानता को देखते थे।

इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतान्यूह

इस्राइल के लिए ट्रंप अधिक महत्वपूर्ण न हों,लेकिन उनके लिए इस्राइल अहम है। हाल के दिनों में इस्राइली की नेतान्यूह सरकार का व्हाइट हाऊस से विवाद चलता रहा हे। इसमें हिेलरी क्लिंटन की भूमिका भी रही है। चुनाव अभियान के दौरान ज्यूस समुदाय के प्रति तालमेल को लेकर सवाल किए गए थे। ट्रंप ने वर्ष 2013 में नेतान्यूह की प्रशंसा मे उन्हें शानदार व्यक्ति और शानदार नेता कहा था। हालांकि इस्राइल के प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष उनके मुस्लिम विरोधी रवैये पर आपत्ति व्यक्त की थी, लेकिन ट्रंप के साथ होने वाली बैठक को रद्द करने से इंकार कर दिया था। बाद में ट्रंप ने इसे स्थगित कर दिया। दरअसल, ट्रंप ने ईरान के साथ हुए अमरीकी सौदे की आलोचना की थी और नेतान्यूह ने इसे ऐतिहासिक गलती बताया था जबकि क्लिंटन ने इसका समर्थन किया था। सवाल उठता है कि क्या नेतान्यूह ओबामा की तुलना में ट्रंप से अच्छे संबंध कायम कर पाएंगे ? 

इक्काडोरियन राष्ट्रपति राफेल कोर्रिया

इस लातिन देश को लगता है कि उसे ट्रंप का समर्थन मिलेगा, लेकिन वेनेज्यूएला, बोलिविया और यहां तक कि क्यूबा को भी अमरीका से मदद मिलने की उम्मीद है। इक्काडोर राष्ट्रपति कोर्रिया कहते हैं कि ट्रंप अपनी विचारधारा से इस देश में जोश उत्पन्न कर सकते हें। हम देख रहे हैं कि इससे यहां प्रगति के प्रवाह में तेजी आएगी। ट्रंप जीतेंगे, इस सवाल पर वह कहते हैं कि ट्रंप की यह बहुत बड़ी जीत होगी। उनका यह भी मानना है क्लिंटन की जीत से विश्व शांति के लिए बेहतर होगी, लेकिन उनकी सरकार की वाशिंगटन के साथ मादक दवाओं की नीति पर विवाद बना रहेगा। इस बारे में ट्रंप के रुख को समझने में कठिनाई होगी, लेकिन वह इन दवाओं पर अमरीका की पुरानी लापरवाही को भी समझते हैं।

नॉर्थ कोरिया के सुप्रीमा किम जांग उन

नॉर्थ कोरिया में तीसरी पीढ़ी के नेतृत्व को ट्रंप झक्की और पागलपन वाला बताते हें। मगर उनके नजरिये में वह काफी मजबूत नेता भी हैं। साथ ही, वे उसकी निर्दयता की तारीफ भी करते हैं। वह एक ऐसे नेता को देख रहे हैं जो एशिया में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अमरीका को उसकी गंभीरता की याद दिलाता है। ट्रंप जापान पर आरोप लगाते हैं कि उसके लोगों ने अमरीका के नागरिकों की नौकरियों को छीन लिया है। अमरीका ने कई वर्षों से इस देश को सुरक्षा की गारंटी दी हुई है, वह भी एकपक्षीय है। वे कहते हैं कि यदि चीन ने अमरीका पर हमला कर दिया तो जापान हमारी मदद नहीं करेगा। जापान अमरीका के कारण संपन्न हुआ है, वह चाहता है कि दक्षिएा एशिया में अमरीकी फौज तैनात करने का पूरा खर्च दक्षिण कोरिया उठाए। हम इनकी उत्तरी कोरिया से रक्षा कर रहे हैं, पर बदले में कुछ नहीं प्राप्त कर रहे। किम जानते हैं कि अमरीका के राष्ट्रपति का स्वागत कैसे करना है, लेकिन उनके सत्ता में आने से दोनों देशों के परस्पर संबंधों में अंतर आ गया है।

बहरहाल, डोनाल्ड ट्रंप के साथ कैसे तालमेल ब्ठिाना है विदेश नीति के निर्माताओं के लिए चिंता का विषय बन सकता है। राजनीति का अनुभव न होने के बावजूद अमरीका के संभावित राष्ट्रपति अपने रुख का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं।

 

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