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नेताओं को सबक सिखाने निकले थे देव आनंद परन्तु...

Edited By Pardeep,Updated: 02 Nov, 2018 04:47 AM

dev anand but to teach leaders a lesson

मशहूर अभिनेता देव आनंद ने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने की पहली कोशिश 1977 में की थी। तब इंदिरा गांधी के कट्टर आलोचक रहे मशहूर वकील राम जेठमलानी ने उन्हें जनता पार्टी में शामिल होने के लिए मनाया था। राम जेठमलानी ने देव साहब से इंदिरा गांधी और संजय...

मशहूर अभिनेता देव आनंद ने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने की पहली कोशिश 1977 में की थी। तब इंदिरा गांधी के कट्टर आलोचक रहे मशहूर वकील राम जेठमलानी ने उन्हें जनता पार्टी में शामिल होने के लिए मनाया था। राम जेठमलानी ने देव साहब से इंदिरा गांधी और संजय गांधी के खिलाफ प्रचार करने का आग्रह किया। जेठमलानी के प्रस्ताव पर देव आनंद पशोपेश में पड़ गए। पूरा दिन वह सोचते रहे, घर से कहीं नहीं निकले। उनके मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे। अंतत: वह सो गए। 

जब अगले दिन देव आनंद उठे तो राजनीति में उतरने का मन बना चुके थे। उन्होंने अपनी मंशा के बारे में राम जेठमलानी को बता दिया। देव आनंद जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई के साथ मंच सांझा करने के लिए तैयार थे। दोनों को वह बहुत पसंद करते थे। उन्होंने उनके मंच से इंदिरा गांधी के खिलाफ आक्रामक भाषण भी दिया। जनता पार्टी की चुनाव में जीत हो गई  लेकिन देव आनंद का राजनीति से जी तेजी से उखडऩे लगा। यूं कहें कि राजनीति से अधिक जनता पार्टी के प्रयोग से उनका मोहभंग होने लगा था। वह राजनीतिक मंचों से परहेज करने लगे। 

उनके मन में तमाम राजनीतिक दलों के लिए गुस्सा भरने लगा था। तब तक मोरारजी देसाई और चरण सिंह दोनों प्रधानमंत्री पद से हट गए थे और 1980 में नए आम चुनाव का ऐलान हो चुका था। देव आनंद ने उस चुनाव में सभी नेताओं को सबक सिखाने की सोची। इस बार अपने दम पर राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। उस पार्टी को नाम दिया-नैशनल पार्टी ऑफ इंडिया। जब देव आनंद ने पार्टी लांच की तो उनके बहुत बड़े सपने थे। वह कहा करते थे, ‘‘जब एम.जी.आर. तमिलनाडु में मैजिक कर सकते हैं तो मैं पूरे देश में ऐसा क्यों नहीं कर सकता हूं?’’ उनके समर्थकों में जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित भी थीं। 

अपनी नवगठित पार्टी की एक बड़ी रैली देव साहब ने मुम्बई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में की। इस रैली में अपेक्षा के अनुरूप भीड़ आई थी। देव आनंद को रैली की सफलता के बाद लगा कि इससे घबराकर ही इंदिरा गांधी ने उनके पास संदेश भिजवाया था कि वे दोनों साथ मिलकर काम कर सकते हैं लेकिन देव आनंद ने साफ मना कर दिया। वह इंदिरा गांधी के साथ किसी भी सूरत में नहीं जाना चाहते थे। उन्होंने कहा, तानाशाह से वह किसी भी सूरत में हाथ नहीं मिला सकते हैं। तब देव आनंद के हौसले बुलंद थे और राजनीति में अपनी सफलता को लेकर वह आश्वस्त भी थे। 1980 के आम चुनाव से पहले उनके सपने बड़े थे। नए-नए आइडियाज के साथ वह सामने आ रहे थे। वह अपने लोगों को बताते थे कि देश को किस तरह आगे ले जाएंगे। उनका सपना था कि ऐसी राजनीति करेंगे जिससे वह प्राचीन भारत के बीच एक पुल बनेंगे। 

वह लोगों के बीच जाकर सपने बेचने लगे। सपने दिखाने लगे कि मुल्क के सारे गांव साफ और व्यवस्थित शहरों में तबदील हो जाएंगे, जहां बिजली होगी, सड़क होगी, पानी होगा। मुल्क के सारे गरीब, मजदूर, कुली भी अंग्रेजी बोलने लगेंगे और बड़े लोगों के साथ उनकी दूरी समाप्त हो जाएगी लेकिन राजनीति में वह छाप नहीं छोड़ सके। ताउम्र अपनी सोच को हकीकत में तबदील नहीं कर पाने का मलाल ढोते रहे। अंत में 2007 में उन्होंने इस विजन और उसे पूरा न करने के मलाल बारे अपनी आत्मकथा में विस्तार से लिखा। 26 सितम्बर, 2007 को देव आनंद के 84वें जन्मदिन के मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उनकी आत्मकथा का विमोचन किया था। संयोग से मनमोहन सिंह का भी जन्मदिन उसी दिन होता है। उस कार्यक्रम में यू.पी.ए. की चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी मौजूद थीं। देव आनंद ने कहा कि सोनिया गांधी का नेतृत्व ऐसा है कि उनसे सब जलते हैं। 

यहां उन्होंने अपनी पार्टी को आगे न बढ़ा पाने की वजह के बारे में भी बात की। नैशनल पार्टी ऑफ इंडिया, जिसका गठन देव आनंद ने किया था, को पहला झटका तब लगा जब नानी पालकीवाला और  विजय लक्ष्मी पंडित ने उनकी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे से ऐन वक्त पर इंकार कर दिया। मशहूर वकील नानी पालकीवाला भी विजय लक्ष्मी पंडित के साथ देव आनंद की शिवाजी पार्क रैली में शामिल हुए थे। नानी पालकीवाला ने उन्हें संदेश भिजवाया कि वह राज्यसभा सांसद तो बन सकते हैं लेकिन लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। 

उन्हें दूसरा झटका तब लगा जब उनके घोषणा पत्र पर उनके ही करीबियों ने सवाल उठाते हुए कहा कि यह व्यावहारिक नहीं है। इसके अलावा उनके दल के पास चुनाव लडऩे के लिए जरूरी संसाधन भी नहीं थे। कुछ प्रभावशाली लोगों ने उनके दल को फंङ्क्षडग का भरोसा दिलाया था लेकिन वे पीछे हट चुके थे। देव आनंद को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़वाने के लिए उम्मीदवार खोजने में भी परेशानी होने लगी। देव आनंद टूटने लगे। उन्होंने अपने लोगों से कहा-अंदर से लडऩे का जुनून समाप्त होने लगा है। अब वह स्पिरिट या अंदर की आग नहीं बची और इस तरह जिस पार्टी के साथ वह देश को बदलने का सपना देखने लगे थे उसका सफर बिना चुनाव लड़े समाप्त हो गया। 

मशहूर पत्रकार राजकुमार केशवानी ने बाद में लिखा कि देव आनंद की नीयत साफ थी और उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के तमाम लोगों का सपोर्ट भी था। 14 सितम्बर, 1979 को मुम्बई की उस प्रैस कांफ्रैंस में वह मौजूद थे जहां देव आनंद ने अपनी नई पार्टी का ऐलान किया था। उस प्रैस कांफ्रैंस में वी. शांताराम, रामानंद सागर, जी.पी. सिप्पी, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, संजीव कुमार जैसे बड़े स्टार मौजूद थे। केशवानी ने कहा कि देव आनंद नए भारत का सपना बेचना चाहते थे। यह कुछ आज की तारीख में नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के कैंपेन की तरह ही था लेकिन देव आनंद की कोशिश को लोगों ने फिल्म प्रमोशन का हिस्सा समझकर खारिज कर दिया।-आर. किदवई

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