मोदी जी योजनाओं की ‘जांच’ करवाएं

Edited By ,Updated: 04 Nov, 2019 03:31 AM

get modi s schemes checked

जब से नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तब से ‘नया भारत’ बनाने के लिए उन्होंने अनेक जनोपयोगी क्रांतिकारी योजनाओं की घोषणाएं की हैं। जैसे महिलाओं को गैस का सिलैंडर, निर्धनों के घरों में शौचालयों का निर्माण, जनधन योजना, आयुष्मान भारत, स्वच्छ...

जब से नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तब से ‘नया भारत’ बनाने के लिए उन्होंने अनेक जनोपयोगी क्रांतिकारी योजनाओं की घोषणाएं की हैं। जैसे महिलाओं को गैस का सिलैंडर, निर्धनों के घरों में शौचालयों का निर्माण, जनधन योजना, आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत, जलशक्ति अभियान आदि। हर कोई मानता है कि मोदी ने एक बड़ा सपना देखा है और ये सारी योजनाएं उसी सपने को पूरा करने की तरफ एक-एक कदम हैं। यूं तो देश का हर प्रधानमंत्री आज तक जनता के हित में कई नई योजनाएं घोषित करता रहा, पर मात्र 6 वर्ष में इतनी सारी योजनाएं इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने घोषित नहीं की थीं। 

इन योजनाओं में से कुछ योजनाओं का लाभ निश्चित रूप से आम आदमी को मिला है। तभी 2019 के लोकसभा चुनाव  में मोदी को दोबारा इतना व्यापक जन समर्थन मिला। पर यह बात मोदी जी भी जानते होंगे और उनसे पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि जनता के विकास के लिए आबंटित धनराशि का जो प्रत्येक 100 रुपया दिल्ली से जाता है, वह जमीन तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 14 रुपए रह जाता है। 86 रुपए रास्ते में भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते हैं। इसलिए सारा विकास कागजों पर धरा रह जाता है। जहां मोदी जी ने देश की अनेक दकियानूसी परम्पराओं को तोड़कर अपने लिए एक नया मैदान तैयार किया है, वहीं यह भी जरूरी है कि समय-समय पर इस बात का जायजा लेते रहें कि उनके द्वारा घोषित कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कितने फीसदी हो रहा है। 

गैर पारम्परिक फीडबैक की जरूरत
जमीनी सच्चाई जानने के लिए मोदी को गैर पारम्परिक साधनों का प्रयोग करना पड़ेगा। ऐसे में मौजूदा सरकारी खुफिया एजैंसियां या सूचना तंत्र उनकी सीमित मदद कर पाएंगे। प्रशासनिक ढांचे का अंग होने के कारण इनकी अपनी सीमाएं हैं। इसलिए मोदी जी को गैर पारंपरिक ‘फीडबैक मैकेनिज्म’ का भी सहारा लेना पड़ेगा, जैसा आज से 2300 साल पहले भारत के पहले सबसे बड़े मगध साम्राज्य के शासक अशोक महान किया करते थे। जो जादूगरों और बाजीगरों के वेश में अपने विश्वासपात्र लोगों को पूरे  साम्राज्य में भेजकर जमीनी हकीकत का पता लगवाते थे और उसके आधार पर अपने प्रशासनिक निर्णय लेते थे। 

अगर मोदी जी ऐसा कुछ करते हैं, तो उन्हें बहुत बड़ा लाभ होगा। पहला तो ये कि अगले चुनाव तक उन्हें उपलब्धियों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े प्रस्तुत करने वाली अफसरशाही और खुफिया तंत्र गुमराह नहीं कर पाएगा क्योंकि उनके पास समानान्तर स्रोत से सूचना पहले से ही उपलब्ध होगी। ऐसा करने से वे उस स्थिति से बच जाएंगे जो स्थिति हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों के परिणाम आने से पैदा हुई है। जहां भाजपा को तीन चौथाई स्पष्ट बहुमत मिलने का पूर्ण विश्वास था लेकिन परिणाम ऐसे आए कि सरकार बनाना भी दूसरे के रहमो-करम पर निर्भर हो गया। ऐसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने का तरीका यही है कि अफसरशाही के अलावा जमीनी लोगों से भी हकीकत जानने की गंभीर कोशिश की जाए। यह पहल प्रधानमंत्री को ही करनी होगी। 

मथुरा का उदाहरण
ताजा उदाहरण मथुरा जिले का है। जहां 23 सितम्बर 2019 को मथुरा में 1046  कुंडों (सरोवरों) को गहरा खोदने की घोषणा राष्ट्रीय स्तर पर की गई थी। पर जब हमने इस दावे की वैधता पर प्रश्न खड़े किए तो ये दावा करने वाले घबराकर भाग गए। अगर वास्तव में ‘जलशक्ति अभियान’ के तहत 1046 कुंड खुदे होते तो दावा करने वालों को बगलें नहीं झांकनी पड़तीं। यह कहानी तो केवल एक मथुरा जिले की है और वह भी केवल एक ‘जलशक्ति अभियान’ की। अगर पूरे देश के हर जिले में प्रधानमंत्री की घोषित योजनाओं का जमीन पर मूल्यांकन किया जाए  तो पता नहीं कैसे परिणाम आएंगे? अच्छे परिणाम आते हैं तो प्रधानमंत्री का हौसला बढ़ेगा और वे मजबूती से आगे कदम बढ़ाएंगे। 

अगर परिणाम आशा के विपरीत या मथुरा में खोदे गए 1046 कुंडों के जैसे आते हैं, तो यह प्रधानमंत्री के लिए ङ्क्षचता का विषय होगा। ऐसे में उन्हें अफसरशाही पर लगाम कसनी होगी। अभी उनके पास पूरे साढ़े चार वर्ष हैं। जो कमी रह गई होगी वो इतने अरसे में पूरी की जा सकती है। साथ ही फर्जी आंकड़े देकर बयानबाजी करवाने वाली अफसरशाही के ऐसे लोग भी समय रहते बेनकाब हो जाएंगे। तब  प्रधानमंत्री को ढूंढने होंगे वे अफसर, जिनकी प्रतिष्ठा काम करके दिखाने की है, न कि भ्रष्टाचार या चाटुकारिता करने की। 

लाभ का सौदा है सोशल ऑडिट
सोशल ऑडिट करने का यह तरीका किसी भी लोकतंत्र के लिए बहुत ही फायद का सौदा होता है। इसलिए जो प्रधानमंत्री ईमानदार होगा, पारदॢशता में जिसका विश्वास होगा और जो वास्तव में अपने लोगों की भलाई और तरक्की देखना चाहेगा, वह सरकारी तंत्र के दायरे के बाहर इस तरह का ‘सोशल ऑडिट’ करवाना अपनी प्राथमिकता में रखेगा। चूंकि मोदी जी बार-बार ‘जवाबदेही’ व ‘पारदॢशता’ पर जोर देते हैं, इसलिए उन्हें यह सुझाव अवश्य ही पसंद आएगा। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले हफ्तों में हम जैसे हजारों देश के नागरिकों को प्रधानमंत्री के आदेश पर इस तरह का ‘सोशल ऑडिट’ करने के लिए आह्वान किया जाएगा। इससे देश में नई चेतना और राष्ट्रवाद का संचार होगा और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी।-विनीत नारायण
 

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