एम.एस.पी. के मुद्दे से सावधानीपूर्वक निपटने की आवश्यकता

Edited By ,Updated: 03 Dec, 2021 06:08 AM

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किसान  नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। यह एक जटिल नीतिगत मुद्दा है और इससे सावधानीपूर्वक निपटने की

किसान  नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। यह एक जटिल नीतिगत मुद्दा है और इससे सावधानीपूर्वक निपटने की आवश्यकता है। सबसे पहले, यह माना जाना चाहिए कि 54 देशों में कृषि क्षेत्र 700 अरब डॉलर की सबसिडी पर जीवित है, चाहे वह अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप, जापान, चीन या कोई अन्य देश हो। चीन सबसे अधिक राशि खर्च करता है, जो अमरीका द्वारा किसानों को प्रदान की जाने वाली राशि का 4 गुणा है।

उदाहरण के लिए, अमरीका के पास 2021 कृषि क्षेत्र का बजट 146.5 अरब डॉलर से अधिक है और किसानों को 46.5 अरब डॉलर की प्रत्यक्ष आय सहायता है जो कि आबादी का 1.5 प्रतिशत है। कोविड काल में, अमरीका ने 2 दौर में किसानों को 21.5 अरब डॉलर का वितरण किया। हमारी लगभग 60 प्रतिशत आबादी कृषि में लगी हुई है और हमारी  जनसंख्या अमरीका की आबादी के 4 गुणा से अधिक है। भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो अमरीका भारत से 3 गुणा बड़ा है।

वित्तीय संसाधनों के संबंध में, भारत का अमरीका या किसी अन्य विकसित देश से कोई मुकाबला नहीं है। इसलिए, भारत के लिए किसानों को सबसिडी प्रदान करने में उतना उदार होना संभव नहीं है। उसी तरह भूमि पर मानवीय दबाव को देखते हुए भारत विकसित देशों की बराबरी नहीं कर सकता। फिर भी, देश के पास मौजूद वित्तीय संसाधनों के भीतर कृषि क्षेत्र को सबसिडी देने की आवश्यकता सर्वोपरि है। 

आय समर्थन प्रणाली के माध्यम से सबसिडी: अधिक मायने यह रखता है कि कृषि क्षेत्र को सबसिडी कैसे दी जाती है। एक तरीका यह है कि इनपुट्स पर सबसिडी दी जाए और आपूॢत-मांग संतुलन निर्धारित करने की तुलना में अधिक कीमत प्रदान की जाए। अन्य विचार आय समर्थन प्रणाली के माध्यम से सबसिडी देना है। दोनों दृष्टिकोणों के अलग-अलग निहितार्थ हैं। जहां पहला दृष्टिकोण बाजार संतुलन को विकृत करता है, दूसरा नहीं। 

उदाहरणार्थ, 1990 से 2019 तक अमरीकी कृषि फसल की कीमतों में केवल 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दूध, बीफ और पोर्क की कीमतों में मामूली वृद्धि दर्ज की गई और 3 दशकों में इसे बहुत अधिक नहीं बदला गया। इसलिए उपज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी है, जबकि आय समर्थन प्रणाली के तहत किसानों को दी जाने वाली सबसिडी में काफी वृद्धि हुई है। 

इस प्रणाली का बजट पर बोझ है, लेकिन किसानों को मुआवजा दिया जाता है और उपभोक्ताओं को मूल्य अस्थिरता का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि कीमतें आपूर्ति और मांग की स्थिति से निर्धारित होती हैं, जो सही बाजार निकासी देती है और उत्पादन पैटर्न स्वचालित रूप से बदलते खपत पैटर्न को समायोजित करता है। 

इनपुट सबसिडी और आऊटपुट मूल्य निर्धारण के मामले में, बजट पर शुल्क समान हैं। लेकिन किसानों के केवल एक छोटे हिस्से को रियायती इनपुट्स के अधिक उपयोग और उनके बड़े विपणन योग्य अधिशेष की उच्च कीमतों के माध्यम से लाभान्वित किया जाता है। छोटे और सीमांत किसानों को अलग छोड़ दिया जाता है। न तो इनपुट सबसिडी और न ही उत्पाद की उच्च कीमतें उनकी वित्तीय समस्याओं का समाधान हैं। किसान आखिरकार एक एकरूप नहीं हैं। सीमांत किसानों के पास एक एकड़ से भी कम जमीन है और कुछ किसान सैंकड़ों एकड़ में खेती करते हैं। जब सभी किसानों को एक साथ जोड़ दिया जाता है तो बड़े किसानों को लाभ होता है और छोटे और सीमांत किसान कहीं नहीं खड़े होते। 

इसलिए सीमांत, छोटे और मध्यम किसानों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए उनको अधिमानत: आय समर्थन प्रणाली के माध्यम से सबसिडी दी जानी चाहिए। इस प्रकार, किसानों को समर्थन, उपभोक्ताओं के हित और लगातार बदलते खपत पैटर्न के साथ उत्पादन पैटर्न का समायोजन बाजार के संतुलन को विकृत किए बिना किसान की सीधी मदद से पूरा किया जाना चाहिए, जो उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है और उत्पाद को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाता है। 

एम.एस.पी. के माध्यम से सुनिश्चित बाजार मूल्य/मूल्य समर्थन को किसानों के लिए किसी अन्य आय समर्थन तरीके के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए, जिससे आपूर्ति मांग की स्थिति द्वारा निर्धारित मूल्य के माध्यम से बाजार से निकासी हो सके। एम.एस.पी. के संबंध में, अवधारणा का अर्थ है बाजार में अंतिम उपाय के तौर पर खरीदार के रूप में खड़ी सरकार। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए है कि बाजार में मंदी के कारण किसान व्यवसाय से बाहर न हो जाए। 

एम.एस.पी. को वैध बनाना सरकार के लिए आत्मघाती : कृषि लागत और मूल्य आयोग (सी.ए.सी.पी.) का अधिदेश यह है कि किसानों को सुनिश्चित मूल्य मिले, उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखा जाए और उत्पादन पैटर्न बदलते खपत पैटर्न के अनुकूल हो। इसकी आवश्यकता तब पड़ी जब देश में खाद्यान्न की कमी थी। इस प्रकार, सरकार का ध्यान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सुनिश्चित कीमतों, खरीद और वितरण के साथ खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाने पर था। यद्यपि 22 फसलों के लिए एम.एस.पी. की घोषणा की गई थी, फिर भी सरकार ने भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से केवल खाद्यान्न खरीदा और भारतीय कपास निगम के माध्यम से सरकारी जिनिंग मिलों के लिए कुछ कपास खरीदा। 

बुनियादी आवश्यकता यह है कि जब एम.एस.पी. बाजार मूल्य से अधिक हो तो इसे सरकार द्वारा खरीदा जाना चाहिए। अन्यथा, एम.एस.पी. का कोई मतलब नहीं। गेहूं, चावल और कपास को छोड़कर और कभी-कभी मोटे अनाज के लिए एम.एस.पी. को बाजार मूल्य से नीचे रखा जाता था; इसलिए कोई खरीद नहीं हुई और एम.एस.पी. निष्क्रिय रहा। मेरी राय में देश के किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करने के बाद, यदि आवश्यक हो तो सरकार को अपनी वितरण आवश्यकताओं और निर्यात को पूरा करने के लिए प्रतिस्पर्धी खरीदार के रूप में बाजार में प्रवेश करना चाहिए। इतनी सारी वस्तुओं के लिए एम.एस.पी. घोषित करने का कोई मतलब नहीं है, जो सरकार नहीं खरीदती है और न ही खरीदनी चाहिएं। 

यदि एम.एस.पी. को वैध कर दिया जाता है तो सरकार खरीदी गई उपज को बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर बेचने के लिए क्या करेगी? आखिर सरकार कोई व्यापारी तो है नहीं। एम.एस.पी. को वैध बनाना सरकार के लिए आत्मघाती होगा और किसानों व उपभोक्ताओं के हित में होगा। यह पंजाब और हरियाणा में समस्याग्रस्त क्षेत्रों में फसल पैटर्न के विविधीकरण की अनुमति भी नहीं देगा।(लेखक कृषि अर्थशास्त्री हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)-सरदारा सिंह जौहल

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