Edited By jyoti choudhary,Updated: 12 Jun, 2019 01:27 PM
आईएलऐंडएफएस के बहुचर्चित घोटाले की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि समूह की वित्तीय सेवा इकाई आईएलऐंडएफएस फाइनैंशल सर्विसेज (आईएफआईएन) के तत्कालीन सीईओ ने 2012-13 में एक प्रमुख रेटिंग एजेंसी के वरिष्ठ निदेशक को करोड़ों रुपए का एक डूप्लेक्स विला...
नई दिल्लीः आईएलऐंडएफएस के बहुचर्चित घोटाले की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि समूह की वित्तीय सेवा इकाई आईएलऐंडएफएस फाइनैंशल सर्विसेज (आईएफआईएन) के तत्कालीन सीईओ ने 2012-13 में एक प्रमुख रेटिंग एजेंसी के वरिष्ठ निदेशक को करोड़ों रुपए का एक डूप्लेक्स विला रियायती कीमत पर खरीदने में मदद की थी। उस समय आईएफआईएन का कर्ज में चूक करने वाले कई ग्राहक के साथ एक घुमावदार सौदा चल रहा था।
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) की जांच में यह खुलासा पहले ही हो चुका है कि ऑडिटरों तथा स्वतंत्र निदेशकों की उस समय आईएफआईएन के टॉप मैनेजमेंट के साथ सांठगाठ थी। इसी सांठगाठ की वजह से कंपनी को नुकसान हुआ।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, आईएफआईएन और सूमह की अन्य इकाइयों को विभिन्न रेटिंग एजेंसियों से ऊंची रेटिंग मिली हुई थी क्योंकि समूह की संबंधित कंपनियों के बही-खातों को लीपापोती कर अच्छा दिखाया गया था। यह जांच रिपोर्ट एसएफआईओ द्वारा दायर पहले आरोपपत्र का हिस्सा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शिवा ग्रुप को दिए गए कुछ कर्ज के एक हिस्से को आईएफआईएन की एक देनदारी चुकाने में किया गया। जांच से पता चलता है कि 2012-13 शिवा वेंचर्स को यूनिटेक से पैसा लेना था जबकि यूनिटेक को आईएफआईएन को भी कर्ज चुकाना था।
एसएफआईओ की जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि आईएफआईएन के शीर्ष प्रबंधन ने शिवा ग्रुप की मदद के लिए यूनिटेक के शिवा वेंचर्स के बकाया कर्ज की फंडिंग की। इसी के तहत यूनिटेक को 125 करोड़ रुपए का कर्ज मंजूर किया गया जिससे वह शिवा का 80 करोड़ रुपए का कर्ज चुका सके और इसी के साथ शिवा आईएफआईएन के कर्ज का भुगतान कर सके।
इस लेनदेन में आईएफआईएन ने न केवल अपनी अडवाइजरी फीस की खुद ही फंडिंग की, बल्कि 45 करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर्ज भी मंजूर किया। हालांकि, यह सौदा पूरा होने के बाद शिवा ग्रुप के आग्रह पर उसे इस लोन के बड़े हिस्से का इस्तेमाल यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के कर्ज को चुकाने की अनुमति दी गई।