Edited By Supreet Kaur,Updated: 23 Apr, 2018 09:40 AM
वर्ष 2016 में इंसॉल्वैंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आई.बी.सी.) और रियल एस्टेट रैगुलेशन एंड डिवैल्पमैंट (रेरा) कानूनों को लागू किया गया और इन दोनों का उद्देश्य हितधारकों को नुक्सान से बचाना था लेकिन रियल एस्टेट के मामले में ये दोनों कानून परस्पर विरोधाभासी...
नई दिल्लीः वर्ष 2016 में इंसॉल्वैंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आई.बी.सी.) और रियल एस्टेट रैगुलेशन एंड डिवैल्पमैंट (रेरा) कानूनों को लागू किया गया और इन दोनों का उद्देश्य हितधारकों को नुक्सान से बचाना था लेकिन रियल एस्टेट के मामले में ये दोनों कानून परस्पर विरोधाभासी नजर आते हैं।
उद्योग संगठन एसोचैम के जारी एक अध्ययन के मुताबिक दिवालिया कानून (आई.बी.सी.) और रेरा रियल एस्टेट से जुड़े मामलों में एक-दूसरे को कड़ी टक्कर देते नजर आते हैं। एक तरफ आई.बी.सी. रियल एस्टेट डिवैल्पर्स को ऋण देने वाले बैंकों तथा निवेशकों के हितों को सर्वोपरि मानता है तो दूसरी तरफ रेरा घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
एसोचैम के अनुसार हाल में दिवालिया कानून से गुजर रही कुछ कम्पनियों के मामले में यह विरोधाभास उभरकर सामने आया। आई.बी.सी. लेनदार और देनदार दोनों को राहत देते हुए दिवालिया कानून की प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति देता है तो रेरा घर खरीदारों को राहत देते हुए डिवैल्पर्स और बिल्डर्स को परियोजना की देरी के लिए जिम्मेदार ठहराता है।