अमेरिका-चीन तनाव के बीच माइक्रोसॉफ्ट का बड़ा कदम, 800 कर्मचारियों को सुनाया यह फरमान

Edited By jyoti choudhary,Updated: 16 May, 2024 01:41 PM

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चीन के साथ अमेरिका के बढ़ते तनाव के बीच दुनिया की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ा कदम उठाया है। माइक्रोसॉफ्ट ने अपने सैकड़ों चीनी कर्मचारियों को रिलोकेट होने का फरमान का सुना दिया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, माइक्रोसॉफ्ट अपने...

बिजनेस डेस्कः चीन के साथ अमेरिका के बढ़ते तनाव के बीच दुनिया की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ा कदम उठाया है। माइक्रोसॉफ्ट ने अपने सैकड़ों चीनी कर्मचारियों को रिलोकेट होने का फरमान का सुना दिया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, माइक्रोसॉफ्ट अपने चीन स्थित क्लाउड-कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस (artifical Intelligence) ऑपरेशन में लगभग 700 से 800 कर्मचारियों को देश से बाहर भेजने पर विचार करने के लिए कह रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्मचारियों, ज्यादातर चीनी नागरिकता वाले इंजीनियर्स को सप्ताह के शुरू में अमेरिका, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित कई देशों में रिलोकेट होने का ऑप्शन दिया गया है। यह कदम बढ़ते अमेरिका और चीन के संबंधों के बीच उठाया गया है। 

कंपनी ने जारी किया बयान

माइक्रोसॉफ्ट के एक प्रवक्ता ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि कर्मचारियों को आंतरिक अवसर प्रदान करना उसके ग्लोबल बिजनेस का हिस्सा है। इस महीने की शुरुआत में रिपोर्ट आई थी कि अमेरिकी कॉमर्स डिपार्टमेंट मालिकाना या बंद स्रोत एआई मॉडल के निर्यात को बैन करने के लिए एक नए रेगुलेटरी कदम पर विचार कर रहा है, जिसके सॉफ्टवेयर और जिस डेटा पर इसे ट्रेंड किया जाता है उसे गुप्त रखा जाता है। हालांकि, प्रवक्ता ने अखबार को बताया कि कंपनी इसके लिए प्रतिबद्ध है और चीन में काम करना जारी रखेगी।

अमेरिका ने किया था ये ऐलान

बता दें कि यह कदम बढ़ते अमेरिका-चीन संबंधों के बीच आया है, क्योंकि बाइडेन प्रशासन इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बैटरी, कंप्यूटर चिप्स और मेडिकल सहित चीनी आयात के विभिन्न क्षेत्रों पर नकेल कस रहा है। अमेरिका ने चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100% शुल्क, सेमीकंडक्टर पर 50% और इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी पर 25 प्रतिशत का शुल्क लगाया है। जो बाइडेन के इस कदम के बाद से ही अब दुनिया के सामने फिर से एक नए अमेरिका और चीन ट्रेड वॉर का खतरा मंडराने लगा है। अमेरिका में जब डोनाल्ड ट्रंप की सरकार थी, तब दुनिया दोनों के बीच ट्रेड वार का सामना कर चुकी है। ट्रेड वॉर का ही नतीजा था कि अमेरिका में टिकटॉक की हालत खराब हो गई थी। हालांकि बाद में सरकार बदलने के बाद वहां स्थिति में सुधार होना शुरू हुआ।

चीन बाहर जा रहीं कई विदेशी कंपनियां

बता दें कि बीते कई सालों से अमेरिका और चीन के कूटनीतिक संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है। ड्रैगन सुपरपावर अमेरिका को आंखे दिखाने लगा है। बीते महीने चीन ने अमेरिका की दो बड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, इन कंपनियों की संपत्ति को भी सीज कर दिया था। यही वजह है कि अमेरिकी कंपनियां अपने ऑपरेशन को वहां से दूसरी जगह शिफ्ट कर रही हैं। चीन से बाहर जाने का विचार करने वाली कंपनियों के लिए भारत अपनी बड़े मैनपावर, लो बजट और आकर्षक व्यापार नीतियों के साथ इन कंपनियों के लिए एक आकर्षक वैकल्पिक डेस्टिनेशन बन सकता है। इससे भारत में विदेशी निवेश और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

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