Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Mar, 2024 08:27 AM
मन्त्रणा रूपी आंखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है। एक राजा अपने कुशल और चतुर मंत्रियों से विचार-विमर्श करके
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शत्रु की ‘कमजोरियों’ को जानो
मंत्र चक्षुषा परछिद्राण्य अवलोकयन्ति।
मन्त्रणा रूपी आंखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है। एक राजा अपने कुशल और चतुर मंत्रियों से विचार-विमर्श करके शत्रु पक्ष की कमियों को जान लेता है।
‘एकमत होना’ मंत्रणा की सफलता
त्रयाणां मेक वाक्य स प्रत्यय:।
तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है। राजा, गुप्तचर और मंत्री, इन तीनों का किसी भी विचार पर जब तक एक मत नहीं होगा, तब तक शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती, इसलिए सफलता पाने के लिए तीनों का एकमत होना परम आवश्यक है।
मंत्रियों के गुण
कार्याकार्यतत्त्वार्थदर्शनो मन्त्रिणा:।
भावार्थ : कार्य-अकार्य के तत्वदर्शी ही मंत्री होने चाहिएं। किसी भी राज्य द्वारा करने अथवा न करने योग्य कार्यों के मध्य जो व्यक्ति पूरी तरह से लाभ-हानि का अंदाजा लगा लेता है अथवा जो व्यक्ति अपनी योग्यता से इस बात का पूर्वानुमान लगा लेता है कि राजा को यह कार्य करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, वही व्यक्ति राजा का मंत्री बनने योग्य होता है।
‘मंत्रणा’ का भेद
षट्कर्णाद् भिद्यते मंत्र:।
भावार्थ : छ: कानों में पड़ने से मन्त्रणा का भेद खुल जाता है। आशय यही है कि राजा और उसके प्रधानमंत्री के अलावा जब दोनों के बीच की मंत्रणा किसी तीसरे व्यक्ति के कानों में पड़ जाती है तो उसका भेद खुल जाता है।
आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है
आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम्।
भावार्थ : जो राजा विपत्ति में काम आने वाले व्यक्ति की सही पहचान कर लेता है, वह कभी परेशानी में नहीं पड़ता क्योंकि ऐसा व्यक्ति सच्चा स्नेही और मित्र होता है।
मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है
मित्रसंग्रहणे बलं स पद्यते।
भावार्थ : जो राजा जितने अधिक अपने मित्र बना लेता है, वह उतना ही शक्तिशाली हो जाता है।