Edited By Jyoti,Updated: 30 Mar, 2022 05:20 PM

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में कोई न कोई पर्व त्यौहार पड़ता ही है बल्कि कहा जाता है कि
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हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में कोई न कोई पर्व त्यौहार पड़ता ही है बल्कि कहा जाता है कि हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है। जिस कारण हर दिन का अपना अलग महत्व है। बात करें आने वाले त्यौहार की तो 02 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि का पर्व आरंभ हो रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है, जिसे गुड़ी पड़वा के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व एक ऐसा पर्व जिसके आरंभ के साथ सनातन धर्म से जुड़ी कई कथाएं आदि जुड़ी हुई हैं। अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम पहले भी आपको इससे जुड़ी कई तरह की जानकारी प्रदान कर चुके हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुड़ी पड़वा से जुड़ा इतिहास साथ ही साथ जानेंगे कि क्या है विक्रम संवत-

इससे पहले हम इतिहास की बात करें बता दें पंचांग के अनुसार, 01 अप्रैल शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 53 मिनट से से चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरू हो रही है। ये तिथि अगले दिन 02 अप्रैल शनिवार को 11 बजकर 58 मिनट तक है। ऐसे में इस साल गुड़ी पड़वा 02 अप्रैल को मनाया जाएगा।

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार हिंदू नववर्ष प्राचीन काल से चलता आ रहा है, लेकिन अगर बात करें इसके इतिहास की तो लगभग 2057 ईसा पूर्व विश्व सम्राट विक्रमादित्य ने नए सिरे से इसे स्थापित किया, जिसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस विक्रम संवत को पूर्व में भारतीय संवत का कैलेंडर भी कहा जाता था, लेकिन बाद में इसे हिंदू संवत का कैलेंडर के रूप में प्रचारित किया गया। आज भी इस हिंदू नव वर्ष को हर प्रदेश में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाड़ी, चेटीचंड ,चित्रैय,तिरूविजा, इन सभी की तिथि संवत्सर के आसपास ही पड़ती है। हालांकि मूल रूप से इसे नव संवत्सर और विक्रम संवत कहा जाता है।

विक्रम संवत क्या है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंदू पंचांग के आधार पर ही भारतीय कैलेंडर बनाई थी। इस कैलेंडर की शुरुआत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मानी जाती है। इसे नव संवत्सर भी कहा जाता है। बताया जाता है कि संवत्सर के पांच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र,सावन और अधिमास। वहीं विक्रम संवत में इन सभी का समावेश कहलाता है। कहा जाता है विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई थी जिसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे, जिस कारण उन्हीं के नाम पर ही इस संवत का नाम रखा गया है।